कागद राजस्थानी

रविवार, 18 सितंबर 2011

ताज़ी कवितावां

*बम बम कुदेव*
 
देस मेँ अब
देवां रो नीं
कुदेवां रो बास्सो है
... अब हर हर री जाग्यां
डर डर उच्चारिजै ।
दिल्ली भी अब
बिल्लीबारी होयगी
इणीज कारण
चौगड़दै ऊंदरा थड़ी करै
बै तो अब
दरबार ताणीँ ढूकग्या
अर दरबारी
इणी डर मेँ सूकग्या !
नेतावां रा गाभा
धोळा ई हा
अब तो डील भी
धोळा होग्या
पै'ली सुणता कोनी हा
पण अब बोळा होग्या !
 
 
*म्हे अर बै*
 
[1]
म्हे तो
बरसां खाई कोनीं
... धाप'र रोटी
अर बै खाग्या
म्हारी बोटी-बोटी !
[2]
म्हे
घालता रैया बोट
अर
बै छापता रैया नोट
म्हारै पल्लै आज
साल दर साल है
बोट ई बोट
अर बांरै पल्लै
अकरा अकरा नोट !
[] ढब बादळ []

जा रै डोफा बादळ
कदै ई इयां ई
... बरस्या करै
बरसा बरसा पाणीं
थूं तो ले लियो
मिनख रो पाणीं
फिरै बापड़ो
अब गाणीँ माणीं !

टपकती टपकती
छेकड़ टपक ई गई
भींता बिचाळै छात
भींतां लुळी
उठावण नै
पण पसरगी
आंगणैं मेँ
सूंएं बिचाळै छात !

ढब !
अब ढब बादळ
भीँत चिणावां
उठावां छात
बणावां बात
थारै तांईं
आगै सारु !

हिन्दी राष्ट्र भाषा नहीं-अखबारों में देखो

  
  
 -: अठै भी बांचो :-
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5498466.cms


"राजस्थानी भाषा समृद्ध : श्री औंकार सिंह लखावत

"राजस्थानी भाषा समृद्ध : संविधान की आठवीं सूची में जोडें" राज्य सभा में पैली आळा सांसद श्री औंकार सिंह लखावत रो डंको


श्री औंकार सिंह लखावत-मैं आज एक विशेष उल्लेख के द्वारा उन आठ करोड़ लोगों की भाशा की ओर जो संविधान की आठवीं अनुसूची में अभी तक शामिल नहीं हुई है,ऐसी राजस्थानी भाषा को को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने के नाते एक उल्लेख करना चाहता हूं । जिस देश का साहित्य यदि उज्ज्वल और दैदीप्यमान न हो तो एक साहित्यकार ने कहा है-"दीपै वांरा देश,ज्यांरा साहित जगमगै ।"
जिस देश का साहित्य जगमगाता हो,वह देश अपने आप में जगमगाता है ,और इस लिए संस्कृति की जो मौलिक अभिव्यक्ति है,उसकी भाषा संवाहक होती है । बिना खुद की जुबान के राष्ट्र ,प्रदेश या व्यक्ति के स्वाभिमान का होना बडा़ असम्भव काम है और इस लिए मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि, भारतीय भाषाओं के शब्द भंडार से हिन्दी बहुत समृद्ध हुई है । दुर्भाग्यवश पांच दशक बीत जाने के बाद स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का वर्ष आ गया फ़िर भी इन पच्चास वर्षों के अन्दर जिस राजस्थानी भाषा के अन्दर आज़ादी के गीत लिखे गए थे,जिन गीतों को, जिस साहित्य को सुन कर लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए,आज उस राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अन्दर मान्यता नहीं मिली । इस कारण से राजस्थानी साहित्य बहुत उपेक्षित हो रहा है । हम मीरा के गीत ,उसके पद को ठीक प्रकार से नहीं समझ पा रहे है । नरहरि दास,बांकीदास,चंदरबरदाई,राजिया के दूहे, और पृथ्वीराज की कविताओं का हम अभी तक इंतजार कर रहे हैं । एक विजयदान देथा ज़रूर हैं, जिनकी कहानियां सुन कर हम देश-देशान्तर में गौरव का अनुभव करते हैं । इस लिए मैं आप से निवेदन करना चाहता हूं कि, चाहे राजस्थान हो,चाहे महाराष्ट्र हो, चाहे पश्चिम बंगाल हो, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश, असम में बसे हुए लगभग 8  करोड़ के आसपास राजस्थानी भाषा का उपयोग करने वाले लोग हैं, जिनकी मातृभाषा आज संविधान की आठवीं सूची का इंतजार कर रही है । मैं निवेदन करना चाहता हूं कि राजस्थान वासियों का और राजस्थान की भाषा बोलने वालने वालों का हक छीनने का कोई औचित्य प्रकट नहीं होता । राजस्थानी भाषा का जहां तक सवाल है, इसका अस्तित्व आठवीं शताब्दी में आया, और इस में लिखे हुए ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं । मैं लगभग दो लाख किलोमीटर इस देश में घूमां हूं ।मैंने लगभग साढे़ चार हज़ार ऐसी पांडुलिपियां एकत्रित की हैं , जिन में राजस्थानी के जैन साहित्य से ले कर वीरगाथा काल का साहित्य उपलब्ध हैं ।

राजस्थानी को मान्यता से हिन्दी समृद्ध होगी

हिन्दी साहित्य का आदिकाल चंदरवरदाई से प्राम्भ होता है । आज वह साहित्य , वह गाथा अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रही है। कर्नल टोड से ले कर ग्रियर्सन, टैस्सेटोरी, ठाकुर रविन्द्रनाथ टैगौर, मदन मोहन मालवीय, सुनीति कुमार चाटुर्ज्या, के.एम. मुंशी,भोलानाथ तिवारी ने भी राजस्थानी भाषा की समृद्धि की सराहना की है । एक भाषा के लिए चार तत्वों की बात कही गई है जिसको आठवीं अनुसूची में जोडा़ जा सकता है । वह भाषा है क्या ? उसके लिए सब से पहले आवश्यक है शब्दकोश । राजस्थानी में 15 से अधिक शब्दकोश हैं ।  
पद्मश्री सीताराम लालस ने जो शब्दकोश लिखा उसके सात वोल्यूम हैं , सात हज़ार पृष्ठ हैं और तीन लाख से अधिक उस के अन्दर शब्द हैं । जबकि हमारे देश की किसी भी भाषा में इस से कम शब्द हैं ।

मै चुनौती के साथ इस सदन में कहता हूं कि दुनिया की सारी भाषाओं का इतिहास उठा कर देख लें, राजस्थानी के जितने शब्द हैं , जितना यहां का शब्द्कोश है, किसी भाषा के अन्दर नहीं है । यदि यह तीन लाख वाला शब्दकोश आठवीं अनुसूची में जाएगा तो हमारी हिन्दी उस से समृद्ध होगी ।


एक दूसरा निवेदन करना चाहता हूं कि,हमारे यहां जो विदेषी भाषाएं हैं, उन विदेशी भाषाओं का भी मैंने सबका अध्ययन किया समालोचनात्मक दृष्टि से ,तुलनात्मक दृष्टि से किया है । मुझे दुनिया की किसी भी भाषा का इस से बडा़ शब्दकोश आज तक नहीं मिला । जहां तक व्याकरण का प्रश्न है, राजस्थानी में व्याकरण की बहुतायत है ।राजस्थानी भाषा में व्याकरण 14 वीं शताब्दी में प्राम्भ हो गया था । जर्मन के विद्वान कैलाग ने राजस्थानी की व्याकरण लिखी ।डाक्टर टैस्सीटोरी ने 1916 में राजस्थानी व्याकरण लिखी । डा. सुनीति कुमार चटुर्ज्या ने 1947 मे  राजस्थानी व्याकरण लिखी और शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बहल ने 1980 मे राजस्थानी की व्याकरण लिखी !

लिपि का जहां तक सवाल है,आज भी मुडि़या लिपि और महाजनी लिपि राजस्थानी के लिखने के लिए है लेकिन हम ने देवनागरी को अपनाया है । हिन्दे,संस्कृत,मराठी,कौंकणीं, और नेपाली को भी देवनागरी लिपि में लिखा जाता है ।
राजस्थानी के लिखने के सम्बन्ध मेंलिपि भी है । समृद्ध साहित्य का जहां तक सवाल है, वीरगाथा काल का साहित्य,भक्ति काल का साहित्य,शृंगार का साहित्य और नीति माहित्य के अन्दर भंडार हैं हमारे पास ।  
मैं निवेदन करना चाहता हूं कि सिंधी को जब मान्यता मिले थी तो उसके बोलने वाले 20 लाख लोग थे । नेपाली को जब मान्यता मिली तो उसके बोलने वाले 15 लाख लोग थे । कौंकणीं जब मान्यता मिली तो उसके बोलने वाले उस समय 11 साढे़ 11 लाख लोग थे । राजस्थानी के 8 करोड़ बोलने वाले लोग हैं । मैं आपकी मार्फ़त निवेदन करना चाहता हूं कि बोलियों का जहां तक सवाल है  तमिल में 22 बोलियां ,तेलगू में 36, कन्नड़ में 32, मलयालम में 14, मराठी में 65 कौंकणीं में 16, उडिया में 24, बंगाली में 15, हिन्दी में 43, पंजाबी में 29, गुजराती में 25 और राजस्थानी में 73 बोलियां हैं । भाषा की ड्रुष्टि से हम सब से ठीक हैं ।
श्रीमती इंदिरा गांधी के सामने जब वे प्रधानमंत्री थीं ,यह प्रश्न आया । श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा,मैं उनको कोट कर रहा हूं -जब राजस्थानी के लोगों ने कहा कि आप आशीर्वाद दीजिए तो श्रीमती गांधी ने कहा-" राजस्थानी भाषा को प्रोत्साहन दिया जाए। इस में आशीर्वाद की क्या बात है ? प्रोत्साहन के पक्ष में मैं खुद हूं । प्रोत्साहन तो मिलना ही चाहिए ।" यह बात 24 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी ने कही । बात आई श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के सामने ,जो आज प्रधानमंत्री हो गए हैं , तो उन्होनें कहा-" राजस्थानी एक बहुत समृद्ध भाषा है,जिस से देश प्रेम की बात सीखने को मिलती है । इसको संविधान की मान्यता मिलती है तो हिन्दी को इस से कोई नुक्सान नहीं होगा, परन्तु राजस्थानी के विकास से पूरे विश्व साहित्य में हिन्दी को विस्तार मिलेगा । मैं मन से चाहता हूं कि राजस्थानी को संविधान में मान्यता मिले । सिंधी भाषा को जब मान्यता का प्रश्न आया तो मैंने राज्य सभा में उसकी जोरदार हिमायत की । मै आपको विश्वाश दिलाता हूं कि जब संसद में राजस्थानी  के संवैधानिक मान्यता का मामला आएगा तो मैं और मेरी पार्टी के लोग इसका पूरा समर्थन करेंगे ।"
श्री लाल कृष्ण आडवाणी  [ जो अब गृह मंत्री है ] ने 10अक्टूबर 1987 को एक साक्षात्कार में कहा था कि " मैं राजस्थानी भाषा के पक्ष में हूं ।------भविष्य में जब भी राजस्थानी का मुद्दा उठेगा तो मैं राजस्थानी भाषा के मामले में राजस्थानियों का पक्ष लूंगा ।"
इस लिए  मैं निवेदन करना चाहता हूं किम आज राजस्थान में आंदोलन हो रहा है । आज इसको आठवीं अनुसूची में जोड़ने  को ले कर लोगों का मन उद्वेलित हो रहा है । इस लिए इसको आठवीं अनुसूची में जोडा़ जाए-----

सरसुति रै   भंडार री  ,  बडी़ अपूरब बात ।
ज्यूं खरचै त्यूं त्यूं बढै,बिन खरचै घट जात ।।

[ राज्य सभा सांसद श्री औंकार सिंह लखावत  जी री हालिया छपी थकी पोथी " बोल सांसद बोल युग चारण बन कर बोल" सूं साभार }
प्रकाशक-तीर्थ पैलेस प्रकाशन, 125 हैलोज रोड , पुष्कर ,जिला अजमेर [राजस्थान]

पुस्तक-बोल सांसद बोल युग चारण बन कर बोल
प्रकाशक- तीर्थ पैलेस प्रकाशन, 125 हैलोज रोड , पुष्कर ,जिला अजमेर [राजस्थान]
पानां -  152
मोल-150 रिपिया
फ़ोन नम्बर-0145-2773999, 5121021, 2773168
Email--teerthpalacep@gmail.com


ऊंदी कविता

*रोळगदोळ अड़ंगो*
 
[ ऐक ]
बकरी ब्याई,इंडा ल्याई ।
लाडू बांट्या,ऊद बिलाई।।
नाचण ढूक्या,ऊंदर-चूसा ।
भेड पकड़ी,आय कसाई ।।
... चिलखां मिलगै,नाळ काटी।
कीड़ी मांगी,आय बधाई ।।
मार झपट्टो,इंडा फोड़्या ।
बां सूं निकल्या,च्यार सिपाई।।
सिपला बेटा,मांग्या रिपिया।।
पल्लै कोयनीँ,आन्ना पाई ।।
मंत्री उण रो, काको सागी ।।
दाबो बातां,म्हारा भाई ।।
[ दो ] 
म्हैँ एक छोरै नै कैयोः राजस्थानी मेँ लिख्या करो ! 
बण भच्च देणीँ सी लिख्यो--हम्बै !
म्हैँ कैयो-ओ कांईँ है ?
छोरो बोल्यो-राजस्थानी !
म्हैँ बोल्यो-हम्बै !
छोरो फेर बोल्यो- हम्बै कांईँ ? .......ओ तो हम्बै ई है !
... तीजै पूछ्यो-ओ कांईं...........हम्बै-हम्बै ?
म्है बोल्यो-राजस्थानी !
तो तीजो बोल्यो-हम्बै ! 
जे आ ई राजस्थानी है तो म्हैँ ई लिख सकूं !
म्हैँ बोल्यो-हम्बै ! तो लिख्या कर फेर !
बो बोल्यै-हम्बै !
 

बुधवार, 7 सितंबर 2011

राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी, उदयपुर के 'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम में

संवाद : श्री दुलाराम सारण
Posted: 22 Aug 2011 04:30 PM PDT
कवि बनाए नहीं जा सकते और यह ऐसा चेहरा है कि जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता। सही अर्थों में कवि वह होता है जो अपनी विशिष्टाओं का अंहकार नहीं पालता। कुछ कवि हमारे बीच ऐसे हैं जो इसका अहसास कराते हैं कि कवि किसी दूसरे लोक का प्राणी नहीं होता वरन हम सब के बीच का एक सामान्य आदमी ही होता है। एक ऐसे ही विनम्र सौम्य शांत सरल स्वभाव के कवि है हम सब के प्रिय और आदरणीय श्री ओम पुरोहित ’कागद’। कागद जी को व्यक्तिगत रूप से जो जानते हैं वे सहमत होंगे कि आप कविताओं में जिस जीवन-राग की बात करते हैं वहीं जीवन-राग जीवन में स्वीकारते हैं, और बहुत कुछ भीतर छिपा कर भी बाहर से सदैव सर्वानुकूल सहज मिलते हैं। इसी क्रम में यह भी कहा जा सकता है कि थिरकती है तृष्णा काव्य संग्रह में जो चित्र और दृश्य हमें शब्दों से देखने को मिले हैं वह राजस्थान ही नहीं समग्र हिंदी कविता में एक विशिष्ट स्वर के कारण सदैव रेखांकित किए जाते रहेंगे।
      कविता के विषय में बात करते समय यहां एक प्रसंग स्मृति में आ रहा कि मैंने भाई कागद जी से कविताओं के विषय में एक सवाल किया था कि आपको समाज में राजस्थानी कवि के रूप में अधिक सम्मान मिला या हिंदी कवि के रूप में ? तब उनका जबाब था कि राजस्थानी वाले राजस्थानी का नहीं हिंदी का मानते और हिंदी वाले हिंदी का नहीं राजस्थानी का मानते। तो मित्रों सचमुच यह त्रासदी रही है। किंतु जब हम कागद जी के समग्र साहित्य का सावधानी पूर्वक अवलोकन करते हैं तो लगता है कि यह कवि हिंदी और राजस्थानी का कवि नहीं वरन एक संपूर्ण भारतीय कवि है। क्या अकाल चित्र और कालीबंगा पर आधारित कविताएं किसी एक भाषा तक ही ठहरती है, नहीं इन व्यापक जन सरोकारों को समय किसी सीमा में नहीं बांध सकता। भाषाओं का क्षेत्र इतना विशाल है कि कहां क्या हो रहा है हम सब कुछ नहीं जान सकते हैं, श्री ओम पुरोहित की अकाल से जुड़ी कुछ कविताओं का गुजराती अनुवाद मैंने राजकोट प्रवास के दौरान वहां की प्रख्यात साहित्यिक पत्रिका कविता में देखा था, लेकिन जब कवि से बात की तो पता चला कि उन्हें इसकी खबर ही नहीं की गई! क्या सभ्यता और संस्कृति अपने किसी विशेष क्षेत्र तक ही अपना महत्त्व रखती है? नहीं, क्षेत्र की सीमाएं और आंख की अपनी सीमा हमारी अपनी है...
      कवि श्री ओम पुरोहित कागदकी राजस्थानी कविता-यात्रा का में आरंभ से ही पाठक रहा हूं और पिछले साठ वर्षों की राजस्थानी कविता का आकलन करते समय मैंने आपको राजस्थानी के टोप टेन कवियों में एक माना है। यहां उस आलेख का मूल अंस आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूंगा-
"इसै समै / कविता बांचणौ / अनै लिखणौ / किणी जुध सूं स्यात ई कम हुवै ।" (कविता) ओम पुरोहित कागदरा छव कविता संग्रह प्रकाशित हुया है- अंतस री बळत(१९८८), कुचरणी (१९९२), सबद गळगळा (१९९४), बात तो ही (२००२) आंख भर चितराम (२००)  अर पंचलड़ी (२००) आं रचनावां में कवि री सादगी, सरलता, सहजता अर संप्रेषण री खिमता देखी जाय सकै। कवि राजस्थानी कविता रै सीगै नैनी कविता री धारा नै नुवै नांव दियो-कुचरणीअर केई अरथावूं कुचरणियां रै पाण आधुनिक राजस्थानी री युवा-पीढ़ी री कविता में आपरी ठावी ठौड़ कायम करी है। कविता नै प्रयोग रो विसय मानण वाळा केई कवियां दांई ओम पुरोहित कागदरी केई कवितावां में प्रयोग पण देख्या जाय सकै है अर एक ही शीर्षक माथै केई-केई कवितावां सूं उण विसय नै तळां तांई खंगाळणो ई ठीक लखावै। कवि रो कविता में मूळ सुर अर सोच मिनखा-जूण अनै मिनख री अबखायां-अंवळ्या खातर है जिण में कवि ठीमर व्यंग्य ई करण री खिमता राखै।
      इसी क्रम में मैं मेरे द्वारा लिखी गई एक टिप्पणी भी लगे हाथ प्रस्तुत कर दूं जो मैंने कवि कागद जी के राजस्थानी काव्य संग्रह- आंख भर चितराम के लिए लिखी थी-
      राजस्थानी कविता में पैलो लांठो बदळाव मौखित परंपरा सूं लिखित रूप में कविता रो ढळणो हो। आज आपां कविता में दूजो लांठो बदळाव इंटरनेट री धमक पछै देख सकां। कविता रो तीजो दौर है जिण में कविता आपरै नुंवै सरूप में चितरामां रै उणियारै नुंवै-नुवै दीठावां री जुगलबंदी कर रैयी है। बगत रै साथै आगै बधण वाळा कवियां में एक नांव ओम पुरोहित "कागद" रो है। "आंख भर चितराम" कविता-पोथी इक्कीसवीं सदी री टाळवीं पोथी इण सारूं मानीजैला कै कवि ओम पुरोहित "कागद" आपां सांमीं जाण्यां-अणजाण्यां जिकां चितराम राख्या है बै बुणगट में साव नुंवा है। आपरी भासा अर रचाव रै पाण कवि राजस्थानी कविता रो एक इसो आंटो काढ्यो है जिको आज रै जुग री जरूरत है। कमती सूं कमती सबदां में कविता रचणी अर उण पछै भासा में लय नै साधणो घणो अबखो काम मानीजै, खासियत जाणै कवि नै इण कविता-संग्रै री अमूमन सगळी कवितावां में किणी वरदान रूप हासल हुयोड़ी है। ओम पुरोहित "कागद" री कविता में राजस्थान री धरती आपरै रूपाळै रंग-रूप में सज-धज उतरी है। कवि आपरै आसै-पासै रा दीठाव रचती बगत जिका चितराम कविता में कलम सूं कोरिया है बै आपां रै अठै री धरती सूं जुड़्या थका नै घणा रूपाळा लखावै जैड़ा है। अठै री धरती माथै बिखरी छटवां नै कवि हियै सूं अंगेजी है। कवि आपरी कलम री कोरणी सूं जिका चितराम रचण री आफळ करी है बै घणा मनमोवणा अर किणी मूंढै बोलतै रंगीन फोटूवां दांई कवितावां में आपां नै निगै आवै। लोक अर जन सूं जुड़ाव रा केई केई चितरामां भेळै काळीबंगा माथै लिख्योड़ी कवितावां री लड़ी इण पोथी री न्यारी निरवाळी ठौड़ बणावैला। पतियारो है कै झींणी संवेदना सूं सजी इण पोथी रो राजस्थानी कविता जातरा में जोरदार स्वागत हुवैला।
      अकादमिक रूप से कुछ कहें तो कवि श्री ओम पुरोहित कागद का जन्म 05 जुलाई 1957 को केसरीसिंहपुर, श्रीगंगानगर में हुआ। आपकी प्रकाशित कृतियां हैं- मीठे बोलो की शब्द परी(१९८६), धूप क्यों छेड़ती है (१९८६), आदमी नहीं है(१९९५), थिरकती है तृष्णा (१९९५) सभी हिन्दी कविता-संग्रह। तथा अंतस री बळत(1988), कुचरणी(1992), सबद गळगळा(1994), बात तो ही (2002)' कुचरण्यां (2002) पंचलडी (२०१०) आंख भर चितराम(२०१०) राजस्थानी कविता-संग्रह । इन के अतिरिक्त जंगल मत काटो (नाटक-२००५), राधा की नानी (किशोर कहानी-२००६), रंगों की दुनिया (विज्ञान कथा-२००६), सीता नहीं मानी(किशोर कहानी-२००६), जंगीरों की जंग (किशोर कहानी-२००६) तथा संपादक के रूप में सर्वविदित है कि राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की मासिक पत्रिका जागती जोतका संपादन किया और वर्षों पहले किंतु आज भी चर्चित मरुधरा (विविधा-१९८५) का संपादन किया। दैनिक भास्कर गंगानगर के सतंभ आपणी भाषा आपणी बात के लिए आपने विविध विषयों पर अनेकानेक आलेख लिखे।
      हिंदी और राजस्थानी के साथ साथ आपको पंजाबी भाषा में भी समान गति प्रदान है। आपने कुछ कविताएं पंजाबी में भी लिखी हैं। पुरस्कार और सम्मान की बात करें तो आदमी नहीं हैपर राजस्थान साहित्य अकादमी का सुधीन्द्र पुरस्कार’, ‘बात तो ही पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की ओर से काव्य विधा का गणेशी लाल व्यास उस्ताद पुरस्कार मिला अनेक संस्थाओं द्वार मान सम्मान के क्रम में प्रमुख है-  भारतीय कला साहित्य परिषद, भादरा का कवि गोपी कृष्ण दादाराजस्थानी पुरस्कार, जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ की ओर से कई बार सम्मानित, सरस्वती साहित्यिक संस्था (परलीका) की ओर सम्मानित। सम्प्रति में आप  शिक्षा विभाग, राजस्थान में प्रधानाध्यापक पद पर सेवारत है, यहां उल्लेखनीय सब से महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अंतरजाल के अंतर्गत - कागद हो तो हर कोई बांचे ब्लॉग बेहद चर्चा में रहा है और फेसबुक पर राजस्थानी की अलख आपने ही जगाई है। मैं सर्वप्रथम जिस सहजता और सरलता की बात कर रहा था उसका सबसे बड़ा प्रमाण कि कवि ओम पुरोहित कागद आपको फेस बुक पर सर्वसुलभ रूप में मिलते हैं, मैं यदि यह भी कह दूं कि केवल एक मात्र वरिष्ठ कवि ओम पुरोहित ही है जिनकी ऐसी और इतनी व्यापकता अंतरजाल पर हम देख सकते हैं।
      लेखक से मिलिए कार्यक्रम में आपकी रचनाओं पर विशद चर्चा मैं नहीं कर रहा हूं क्यों कि मुझे लगता है यहां यह अनुकूल मंच नहीं है, फिर अभी। इस कार्यक्रम में तो लेखक खुद अपनी बात कहते हैं- अपनी सृजन यात्रा का ब्यौरा विस्तार से सुनाएंगे साथ ही कुछ चयनित रचनाओं का पाठ और सवाल-जबाब जैसे कार्य भी शेष है। अपनी व्यक्तिगत विवशताओं के चलते मैं आपके मध्य नहीं हूं जिसका मुझे खेद है। एक बार यहां आप सभी के समक्ष क्षमा याचना के साथ मैं कवि कागद जी को अपना प्रणाम लिखता हूं।
-नीरज दइया
२० अगस्त, २०११
Posted: 22 Aug 2011 04:32 PM PDT
चूरू। राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी, उदयपुर के 'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम में रविवार को नगरश्री सभागार में हनुमानगढ़ के कवि ओम पुरोहित ‘कागद’ ने कहा कि सृजन मन से निकलता है। प्रयास करने पर रचनाओं का निर्माण नहीं होता, वे तो सायास आती हैं और बहती चलती हैं। एक मायने में कवि का सृजन मनोभावों का प्रकटीकरण ही होता है। हिन्‍दी साहित्‍य संसद की सहभागिता वाले इस आयोजन में बोलते हुए कवि ओम पुरोहित ‘कागद’ ने कहा कि उनके लेखन में इतने उतार-चढ़ाव रहे हैं कि उन्‍हें वे कई स्‍तरों में समझने की कोशिश करते रहते हैं। तीन कालखंडों में रचनाओं को विभक्‍त करते हुए अकादमी के सुधीन्‍द्र पुरस्‍कार से सम्‍मानित कवि कागद ने कहा कि जैसे उनके मन में भाव रहे वैसे रचनाओं के स्‍तर पर निर्वाह हुए। पुस्‍तक 'थिरकती है तृष्‍णा' से अपने अकाल चित्रों को जब कागद ने प्रस्‍तुत किया तो श्रोता भावविभोर हो गए। कागद ने कालीबंगा पर केन्द्रित अपनी रचनाओं को पाठ कर साक्षात जींवतता प्रस्‍तुत की। 
कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए साहित्‍यकार भंवरसिंह सामौर ने कहा कि रचनाकार जिन क्षणों को जीता है उन्‍हीं में घुलमिलकर सृजन करता है। कवि निज को प्रस्‍तुत नहीं करता अपितु वह तो सर्व को आकार देता है। तभी तो पाठक एवं श्रोताओं को लगता है कि कवि हमारी बात कह रहा है। 
मुख्‍य अतिथि के रूप में बोलते हुए बालिका महाविद्यालय चूरू के निदेशक सोहनसिंह दुलार ने कहा कि जहां विसंगति होती है कवि के प्रहार वहीं होते हैं, और यही वजह कि कवि स्‍थानीयता की सीमाएं लांघ जाता है और सर्वदेशीय घोषित होता है। 
कार्यक्रम में हिन्‍दी साहित्‍य संसद के अध्‍यक्ष और कवि प्रदीप शर्मा ने कहा कि राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी धन्‍यवाद की पात्र है कि उन्‍होंने ऐसे कवि का नाम सुझाया जो कि वाद और विमर्शों से परे जन का कवि है।
अतिथियों द्वारा मां सरस्‍वती की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण से शुरू हुए कार्यक्रम में हिन्‍दी साहित्‍य संसद के सचिव सुनीति कुमार शर्मा ने स्‍वागत भाषण दिया। कवि ओम पुरोहित कागद का साहित्‍यकार नीरज दइया द्वारा लिखित परिचय विरेन्‍द्र लाटा ने प्रस्‍तुत किया। धन्‍यवाद कार्यक्रम संयोजक विजयकांत शर्मा ने दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. सुरेन्‍द्र सोनी ने किया।
और  

शनिवार, 3 सितंबर 2011

राम जी री डोकरी


 ** बुड्ढी माई **




 

समूळो राजस्थान ऐक ई संस्कृति अर परापर रो धणीँ है । भाषा ई समूळै राजस्थान री ऐक ई है अर बा है आपणीँ राजस्थानीँ ! इण भाषा मेँ 73 बोल्यां है पण चीज बस्त अर जीव जन्त नांव ऐक ई है । न्यारी न्यारी बोल्यां मेँ उच्चारण भेद है । मुहावरा, कहावत, लोककथा, लोकगीत, लोकभजन , लोकदेवता , तीज त्यूंआर तो ऐक सा ई है आपणै राजस्थान मेँ । 73 बोल्यां रै ताण आपणै खन्नै ऐक ई चीज रा 500-500 पर्यायवाची है । इत्ता पर्यायवाची दुनियां री किणीँ भाषा मेँ नीँ लाधै । आ आपणीँ भाषा राजस्थानी री त्यागत है । 
ऐक छोटो सो बरसाती कीडो ! नांव बूढी माई !    ओ कीडो़ बिरखा रै दिनां चोमासै में निकळै । लाल -लाल ! मखमल रो फ़ोवो सो ! देख्यां जीव हरखै ! 
आ बरसाळै मेँ निकळै । आसोज सूं लेय'र भादवै तांईं यानी समूळै चौमासै । बिरखा होई नीँ क आ आई नीँ !इण रा अलेखूं नांव ! आपां अठै इण रा नाआं रा जिकर करां देखाण-



ल्यो अब इण जीव रा नांव बताऊं-
* राजस्थानी मेँ -
1.बुड्ढ़ी माई
2.सावण री डोकरी
3.बुड्ढ़ी नानी
4.तीज
5.मखमली बाई
6.ममोल
8. ममोलियो
9.ममोलण
7.इंद्राणीं

* हिन्दी मेँ-
1.वीरबहूटी
2.इंद्रवधु

*अंग्रेजी मेँ-
रेडवेलवेटमाइट
* जीव विज्ञान मेँ-
संधिपाद विभाग री लूना श्रेणीँ मेँ वरुथि वर्ग मेँ द्रोम्बी डायोडी परिवार के डायनाथोम्बियम वंश रो ऐक जीव । कीड़ो ।

* खास बात-
1.इण रै पांसळ्यां नीँ होवै
2. चौमासै मेँ इंडा देवै
3.बचिया 24 घंटा मेँ इंडा सूं बाअंडै आ जावै
4.इण रै आठ पग होवै
5.ओ कीड़ो यानी बुड्ढ़ी माई भोत संकाळु जीव होवै

6. बुड्ढ़ी माई खास कर असाढ मेँ दिखै पण समूळै चौमासै री धिराणीँ बजै 


बात बात मेँ कित्ती जोरगी बात होयगी । बुड्ढ़ी माई रा कित्ता नांव साम्हीं आग्या । आप ई लिख्या तो कई भायां फोन कर कर'र बताया । आओ बुड्ढ़ी माई रै नांवां री ऐक और लिस्ट बांचां-
1.लाल गाय
2.सावण री डोकरी
3.लाल डोकरी
4.राम जी री डोकरी
5.इन्द्र-वधु
6.इंद्रगोप
7.वीरधूटी
8.मामोलो
9.ममोलो
10.मामलियो
11.ममूलियो
12.ममोलियो
13. वीर-बहूटी 

 "वीरबहूटी" रो मायनो
वीर=योद्धा
बहूटी=वधु
[] बुड्ढी माई माथै राम स्वरूप किसान रो दूहो-
बूढी माई आ नहीं, झूठो बोलै जग्ग।
इन्दराणी रै नाथ रो, पड़ग्यो होसी नग्ग।
[] म्हारा ई दूहा-
अंबर इंदर गाजियो, धरती करै बणाव ।
मखमल गाभा पै'रगै, डोकरी पूरै चाव ।।
बूढी माई आयगी, देख भरंता ताल ।
इंदराणी री नाथ सूं , पड़गी जाणै लाल ।।
अंबर लालां मोकळी,बरसै सागै मेह ।
म्हारै खेतां ड़ोकरी , राखै कतरो नेह ।।

मायड़भाषा रा दूहा

मायड़भाषा रा दूहा

आक चाबतां बापजी, होया चौसठ साल ।
आम्बा कदसी चूसस्यां, ऊभो ऐक सुआल ।1।
मुंडा म्हारा सील है, बोलां कीकर राज ।
.मन री मनड़ै दाबगै , रोवां गूंगा आज ।2।
भाषा थारी कैद में, करो कनीँ आजाद ।
खोलां मन री गांठड़ी, देवां घण लखदाद ।3।
सगळा प्रदेस आपरी , भाषा राखी टाळ ।
म्हारी भाषा मांगतां, क्यूं काढो थे गाळ ।4।
डांगर कांटा कागला , बोलै खुद रा बोल ।
भूंडा म्हारा भाग है , मुंडो सकां न खोल ।5।
 भागी चीड़ी कागला, बोलै मायड़ भास ।
निरभागी म्हे मिनखड़ा, बोलण छूटी आस ।6।
विधान सभाज आपरी, चुणां घाल खुद बोट ।
बोलै भाषा आपरी,बजै बठै बै ठोठ ।7।
हिन्दी होवो हिन्दवाणी, बणो हिंद री ताज ।
राजस्थानी मत राखो , भाषा सूं मो'ताज ।8।
भाषा म्हारी स्यान है, भाषा है सिणगार ।
भाषा म्हारी आंतड़ी , भाषा है रुजगार ।9।
बो दिन कद तक आवसी, बोलां मायड़ भास ।
बोलां भाषा ओपरी, रोटी लागै घास ।10।

्ताजा कविता

 ताजी कविता
[] ढब बादळ []

जा रै डोफा बादळ
कदै ई इयां ई
...बरस्या करै
बरसा बरसा पाणीं
थूं तो ले लियो
मिनख रो पाणीं
फिरै बापड़ो
अब गाणीँ माणीं !

टपकती टपकती
छेकड़ टपक ई गई
भींता बिचाळै छात
भींतां लुळी
उठावण नै
पण पसरगी
आंगणैं मेँ
सूंएं बिचाळै छात !

ढब !
अब ढब बादळ
भीँत चिणावां
उठावां छात
बणावां बात
थारै तांईं
आगै सारु !

कुचरणीं

** कुचरणीँ **
 
1.
हाल
घूंघट काढै दादी
कठै है अजादी |
2.
कोई सासू
हाल नीँ देवै
भू नै अजादी !
 
3.
थकां जीन्स
नेतावां नै
पै'रणीं पड़ै खादी |

-फेसबुक-
 
अदबदी कामणगारी
थोबड़ा पोथी
जकी मेँ बातां 
निग्गर थोड़ी
पण ज्यादा थोथी !
 
-ब्लाग-
 
ईं सदी रो
स्सै सूं मोटो रोग !
 
-ई-मेल-
 
ऐक और
फीमेल
जकी
बणा राख्या है
लोगां नै रेल !
- पै'लो सुख -
 
पै'लो सुख
निरोगी काया
इण बात माथै 
.ऐक जाम और भाया !

- लेखक -

 
दळियो दळण आळी मसीन
जकी
दळियो दळ्यां राखै
अब चावै
किणीँ नै भावै या नीँ भावै
उण री से'त माथै
कोई फरक नीँ आवै !
 
- पंखो -
 
करतां ई खटको
पंखो करै लटको 
- रिस्ता -
अंगरेज देग्या
दो सबद
अंकल अर अंटी
...जकां बजा दी
सगळै रिस्तां री घंटी ।

- चसमो -

 
लूंठो बेईमान
खाल खावै
नाक री
अर
हाजरी भरै
आंख री ।

- फोन -

 
लूंठो चुगलखोर
जको
इन्नै री बात
बिन्नै करै
अर लोग
इण चुगलखोरी रा
पईसा भरै ।
- सीटी -
 
सीटी सूं
लुगाई झट पट जावै
आ बात
.आज समझ आवै
जद रसोई मेँ जोड़ायत
कूकर आगै थम जावै !

- ग़ज़ल -


प्रेमी रै मुंडै सूं
सुण'र ग़ज़ल
प्रेमिका होगी पज़ल
सोचण लागी
ओ मरज्याणोँ तो
आभै मेँ जासी
म्हां सारु
चांद तारा ल्यावण नै
फेर तो
कई बरस लागसी
पाछो आवण मेँ
कांईँ सार है
ओ रिस्तो निभावण मेँ !
* रेल रा खेल *
 
रेल रा
भूंडा खेल
...मुसाफ़रां नै
मारयां बिनां
छोडै नीँ गेल !

* जातरा *

 
जातरा सारु
चडो तो हो
रेल गाडी
पण
घरां कियां पूगस्यो
लाडी ?

* मुआवजो *

 
जे
आपनै चाईजै
घणोँ मुआवजो
तो भाया
रेल सूं
गांवतरै जावज्यो !

* हादसा *

 
जे
रेल हादसा टळै
तो रेलिया भष्टाचार री
दाळ कियां गळै ?

* रेल मंत्री *

 
कोई देखो रे
भारत री जन्मपत्री
कद मिलसी
भारत नै रेलमंत्री ?
 
* पुलिस-१ *
 
मिनखां रा
सळ काढण आळी उस्तरी
...जकी घणीं तप्यां पछै
बाळ देवै
इणीं खातर
भला मिनख
इण री तपत देख
पईसां रो छांटो देय’र
दूर सूं ई टाळ देवै !

* पुलिस-२

मारणों गोधो
जकै रै आगै
भाज्यां ई
पार पडै़
खड़्यो रै’यां
मार पडै़ !

* ठाणों *

कटखावणै देवता रो थान
जकै नै धोक्यां खतरो
अर नीं धोक्यां घणों खतरो
थाणै रै गेलै सूं पग रोको
जे अकल है तो
इण नैं
लारली गळी सूं धोको !
 
*बाबो*
 
लीला आक
कियां चाबां
...बाबो तो
घणों ई कै’वै दाबो
पण
जींवतै नै कियां दाबां !

* टाबर *

 
सगळा टाबर
खुद नै समझै
बाप बराबर !

* आलू *
 
मटर
टमाटर
गोभी साथै
राखै यारी
है नीं बेटो चालू ?

* साक्षरता *

 
गांव में
आई साक्षरता
बूढिया पढै
काम सूं डरता !

*मा*
 
सांस आवै दोरा
पण मा घालै
गूदडां में डोरा !

- सगाई -

सगाई में
...सग्गा ई मिलै
बीन-बीनणीं नीं !
जिण तरै
ठगाई में
ठग्गां रो काम
उणीं तरै
सगाई में
सगां रो काम !

- जोग-संजोग -
म्हैं कै’यो-
म्हारी बींटी गमगी
बां कै’यो-
जोग री बात है !
म्हैं कै’यो-
म्हारी बींटी लाधगी
बां कै’यो-
संजोग री बात है !
म्हैं कै’यो-
बींटी ना गम्मीं,ना लाधी
धक्कै सूं फ़ोडा़ पड़ग्या
बींटी तो खूंजै में ई पडी़ ही !
बां कै’यो-
जोग-संजोग री बात 
* पंच *
 
काम
कित्तो ई होवै
भलांईँ टंच
...राजी नीं होवै
कदै ई पंच !

* प्रमुख *
 
बण्यो प्रमुख
गयो दुख
अर
आयो सुख !
 
- दादी -

दादै नै
...कांईं ठाह
कठै लाधी
टाबरां रै खेलण री
आ प्यादी !

- दादो -

सो में
पांच घटै
दादो हाल
मूंजडी़ बटै !

- मासी -

लागै
मा सी
पण
सांची बात
बापू जी
क्यूं बतासी !

- साळी -

ऐक रूंख री
दो डाळी
ऐक जोडा़यत
दूजी साळी !

- साळो -

जे है
सासरै में साळो
तो लाडी
फ़ेर थे
कांईं भाळो ?
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