कागद राजस्थानी

सोमवार, 24 सितंबर 2012

पांच पंचलडी़ [गज़ल ]


 
 
 
 
 
 
टैम कुजरबो आग्यो

टैम कुजरबो आग्यो काका ।
आम आकड़ां लाग्यो काका ।।
खेत धरम रै राखस ऊग्या ।।
कूड़ करम कुण बा'ग्यो काका ।।
भजन राम रा गावण आयो ।
घर में हरजस गाग्यो काका ।।
दिल्ली पूग्यो नेता आपणों ।
हक समूळा पचाग्यो काका ।।
मरो-क जीयो मरजी थारी ।
देस अजाद बताग्यो काका ।।
*
कोझा मारै झपीड़


कोझा मारै झपीड़ भायला ।
उपाड़ै भूंडी पीड़ भायला ।।
लोकराज धरै  भीतर अंटी।
कांईं गिणै थूं भीड़ भायला।।
भाई भतीजा बणसी राजा ।
लाम्बा भाग लड़ीड़ भायला।
थारै जाया है अमर राजवी।
बाकीस पूरी छीड़ भायला।।
हाथां लागगी  राज तळाई ।
लूंट रा कंठा बीड़ भायला ।।
*
सांची बात
सांची बात खारी लागै ।
कूड़ी बात प्यारी लागै ।1।
साच नै ओ बतावै कूड़ ।


माणस सरकारी लागै।2।
घाल कोठी ठाठ करै अब ।
पूरी खाल उतारी लागै ।3।
जनता रोवै भूखी तिस्सी।
आं नै आ हुंस्यारी लागै ।4।
नेता  घरां   नेता  जामै ।
जनता अब बिचारी लागै ।5।

*
प्रीत रा बाण
करी क्यूं देर आवण मेँ ।

आग लागगी सावण मेँ |1



बादळ   आय   भेई देह ।

आयो आनन्द गावण में ।2।



जगी आस थे आवोला ।

लागी काग उडावण मेँ ।3।

धन थारो घर मेँ खूटै ।

कांईं सार कमावण में ।4।


हाथां प्रीत लाग्या बाण ।

कांईँ सार लुकावण मेँ ।5।

*

जाग भायला

जाग सकै तो जाग भायला ।
नीँ-स लगा दे आग भायला । 
कथ मनड़ै  री   बेगो बेगो ।
क्यां भी काढै राग भायला ।
 
मत उछाळ आज  माथै राख।
नीचै  पड़गी   पाग  भायला । 
घुसग्या गोदा आंख्या सांमीं।
क्यूं लुटवावै बाग भायला । 
लाम्पो लेय लगावण चालां ।
बूजा है   अणथाग भायला।
*


रूंखड़ा
 
जड़ां छोड्या पिराण रूंखड़ा।
ऊभ्यो किणरै ताण रूंखड़ा।।
तूं तिरसायो कळपी धरती। 
 आभै में घमसाण रूंखड़ा ।।
छीँयां सटै आज पंछीड़ा ।
भूल्या मीठो गाण रूंखड़ा ।। 
थारा पान खोय बायरियो ।
रुळग्यो राणोराण रूंखड़ा ।।
बरसां थारै बांध राखड़ी ।
बळगी बेलां भाण रूंखड़ा ।।
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