कागद राजस्थानी

शनिवार, 21 जनवरी 2012

एक कविता


♥ भोत अंधारो है ♥
होया करै जेड़ो
है दिन
चोगड़दै पण भंवै
साव अंधारो
सुरजी नै चिडावंतो !

कुण देखै सूई
जठै लुकग्या हाथ
दिखै ई नीं
खुद रै पगां रो कादो
भोत अंधारो है
थकां सुरजी !

है तो सरी सुरजी
आभै में पकायत
है कठै पण ठाह नीं
फिरग्या आडा
जळबायरा बादळिया !

इयां तो
ढबै नीं सुरजी
निकळसी एक दिन
बादळियां नै फटकार
पळपळावंतो
आभै रै सूंवै बिचाळै !

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