सात राजस्थानी कवितावां :ओम पुरोहित "कागद"
1-भाषा
भाषा
पिराण
जड़ अर चेतन री
अरथावै
निराकार नै
करण साकार !
भाषा खूटै
रुळै
जड़ - चेतन
चेतन-जड़
थकां आकार !
*
2-सबद
सबद संचरै
अरथावण मनगत
मन भरमीजै
अरथां
सुवारथां
कोरै चितराम
ऊजळै भरम !
*
3-मनगत
मन री गत
नीं उकरै
सबदां !
मन री
मन में
थपै-उथपै गत !
*
4-बगत
इकसार नीं
बगत
बगत-बगत
बदळै बगत !
बगत खूटै
बगत ई बचै
बतळावण बगतसर
बगत री बात !
*
5-बतळावण
च्यारूं कूंट सरणाटो
सरणाटै सूं
सरणाटै री बतळावण
सुणै कुण ?
सरणाटै रै आर सरणाटो
सरणाटै रै पार सरणाटो
थारै म्हारै बीच
त्यार सरणाटो !
आओ सीखां
भाषा
सरणाटै री !
*
6-आकार
कुण साकार
कुण निराकार
थकां भूख
भूख ई
पसरै-सांवटीजै !
भूख
अन्न री
धन्न री
मन री
ग्यान री
ध्यान री
परमाण री
कदै’ई निराकार
कदै’ई साकार
भंवै जगती में
भंवती भूख !
*
7-तप
तप मांगै
भख
तन्मन रो !
तपै धोरी
अखूट तप
जपै पाणी
फ़गत पाणी
पाणी निराकार
पाणी साकार
बो पाळै
ध्यावना-चावना
पण
तिरस पड़तख !
*
[] ओम पुरोहित "कागद"
24-दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम- 335512
1-भाषा
भाषा
पिराण
जड़ अर चेतन री
अरथावै
निराकार नै
करण साकार !
भाषा खूटै
रुळै
जड़ - चेतन
चेतन-जड़
थकां आकार !
*
2-सबद
सबद संचरै
अरथावण मनगत
मन भरमीजै
अरथां
सुवारथां
कोरै चितराम
ऊजळै भरम !
*
3-मनगत
मन री गत
नीं उकरै
सबदां !
मन री
मन में
थपै-उथपै गत !
*
4-बगत
इकसार नीं
बगत
बगत-बगत
बदळै बगत !
बगत खूटै
बगत ई बचै
बतळावण बगतसर
बगत री बात !
*
5-बतळावण
च्यारूं कूंट सरणाटो
सरणाटै सूं
सरणाटै री बतळावण
सुणै कुण ?
सरणाटै रै आर सरणाटो
सरणाटै रै पार सरणाटो
थारै म्हारै बीच
त्यार सरणाटो !
आओ सीखां
भाषा
सरणाटै री !
*
6-आकार
कुण साकार
कुण निराकार
थकां भूख
भूख ई
पसरै-सांवटीजै !
भूख
अन्न री
धन्न री
मन री
ग्यान री
ध्यान री
परमाण री
कदै’ई निराकार
कदै’ई साकार
भंवै जगती में
भंवती भूख !
*
7-तप
तप मांगै
भख
तन्मन रो !
तपै धोरी
अखूट तप
जपै पाणी
फ़गत पाणी
पाणी निराकार
पाणी साकार
बो पाळै
ध्यावना-चावना
पण
तिरस पड़तख !
*
[] ओम पुरोहित "कागद"
24-दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम- 335512
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें