कागद राजस्थानी

बुधवार, 30 मई 2012

स्व. गौरव पुरोहित री दो राजस्थानी कवितावां

म्हारै सुरगवासी बेटै गौरव पुरोहित री 
दो  राजस्थानी कवितावां । 
5 फरवरी 2005 नै 21 वर्ष री उमर  में 
बो तो गयो परो पण छोडग्यो कीं इण भांत यादां :-
*म्हे टाबर*
म्हे जद
हा टाबर
मायत म्हांनै
कैंवता काच्चर !

बडा होया तो
बाई चिड़कली
म्हैं बळद !

कित्ती सोरफ दी
मायतां बाई नै
एक दिन
बाई सारु
आग्या पांख
बाई उडगी फुर्र
बैठगी दूजी डाळी !

म्हे बळद
हाल बळद
घर में करां थड़ी
मायत ढूंढै
म्हांरै पगां सारु
पराया दावणां !
*करज*
हाल बिसांईं है
कई दिनां री
हाल चुकावणीं
करजी है
कई जणां री
पण
आया है जका
जासी एक दिन ।

दांत है जित्तै
जीमस्यां
डील है जित्तै
पचास्यां म्है भी
अन्न-जळ
ऐ भी करजा ई है
चूकै या चढै
ठाह नीं पण किणीं नै !

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