कागद राजस्थानी

शनिवार, 26 जनवरी 2013

दूहा,

सूरज दिख्यो न तावड़ो, ठंडी आई रात ।
धंवर रोसै काळजो , किण विध बणसी बात।।
सूरज लुकग्यो भायला, धंवर सिरखड़ी ओढ ।
काया धूजै मानवी,सून्नो होग्यो भोड ।।
भाफां छोडै राफल्यां, अंतस ठंडो ठार ।
भीतर कुणसो बैठग्यो, धूणीं जबर जगा'र ।।
चूल्है जगै न बास्ती, लकड़ न झालै लाय ।
आधी बीत्यां रातड़ी , बाबो मांगै चाय ।।
सणै पैंटड़ी सोयग्या,दो-दो सिरखां न्हाख ।
सरदी डाकण ना ढबी, जतन खूटग्या लाख ।।

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