कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

भूंगर कवि

लुगायां, लाठी ल्याओ ,
गूदड़ै में डोरा घालां


-ओम पुरोहित कागद
राजस्थानी लोकसाहित्य जग में सिरै। राजस्थानी लोक साहित्य में बात, ओखांणा, कैबतां अनै आड्यां अजब-गजब। साहित्य अजब-गजब तो कथणियां बी अजब-गजब। एड़ा ई अजबधणी हा भूंगर कवि। भूंगर कवि बेमेळा सबदां री भेळप सूं बेअरथी कविता लिखता। ऐ कवितावां आज भी भूंगर रा घेसळा सिरैनांव सूं लोक में भंवै। भूंगर रो जलम कद अर कठै हुयो, इण रो कोई परवाण नीं। कई विद्वान उण नै अमीर खुसरो रै बगत रो बतावै। भूंगर रो ठिकाणो कई लोग बीकानेर डिवीजन रै नोखा या रतनगढ़ नै बतावै तो कई बतावै कै भूंगर नागौर रै साठिका या भदोरै गांव रा हा। खैर कद रा या कठै ई रा हा, पण हा राजस्थान रा ई। बां आपरै घेसळां सूं राजस्थान अर राजस्थानी भाषा रो जस चौगड़दे पुगायो।
अब आप पूछस्यो कै घेसळो कांई हुवै? घेसळो हुवै बोरटी री अणघड़ जाडी अर बांकी-बावळी लकड़ी सूं बणायोड़ो चलताऊ सौटौ जकै सूं खळै में बाजरी रै सिट्टां नै कूट'र दाणा काढ़्या करै। इण नै रेरू, खोटण या घेसळो कैवै। भूंगर रा घेसळा बी इण भांत ई बांका-बावळा अर बेअरथा हुवै। हिन्दी में अमीर खुसरो, घासीराम अर वासूजी ई घेसळां माफक ढकोसळा लिख्या। इण भांत रै बेअरथै छंद नै हिन्दी में ढकोसला, परसोकला या झटूकला कैईज्यौ। आं सगळां में सिरै पण भूंगर रा घेसळा ई थरपीज्या। इणी रै पाण भूंगर नै राजस्थानी लोक साहित्य में बो मुकाम मिल्यो जकौ अमीर खुसरो नै हिन्दी साहित्य में मिल्यो।
भूंगर राजस्थानी भाषा में हंसावणियां अर बेअरथा घेसळा लिखता। आं घेसळां री खास बात आ है कै आं में बेमेळा सबद है अर छेकड़ली तुक नीं मिलै। घेसळा बेतुका होंवता थकां बी रसाल है। भूंगर नै किणी री फटकार ही कै थारी कविता में जकै दिन लारली तुक मिलसी उण दिन थारी मौत हुयसी। मौत तो हरेक नै आवै। भूंगर नै बी आवणी ई ही। पण भूंगर री मौत फटकार नै साची करगी।
एक दिन री बात। भूंगर सांढ माथै गांवतरौ करै हा। गेलै में एक सुन्नो कुओ आयो। कुए मांय कोई कूकै हो। बचाओ-बचाओ। भूंगर कुऐ में देख्यो तो एक माणस टिरै। भूंगर नै दया आयगी। माणस नै काढ़ण री जुगत बैठाई। उण सांढ नै कुओ डकावण सारू तचकाई। सांढ लखायो ही, इण सारू ताती अर बेगवान ही। सांढ एक फाळ में ई कुओ डाकगी। सांढ रै डाकतां थकां भूंगर कुए में टिरतै माणस री टांग पकड़ली। सांढ तो परलै पार पण भूंगर धै कुए में। अब भूंगर बी माणस टांग थाम्योड़ो कुए में टिरै। कवि मन इण विपदा में ई कविता कर दी जको कोठै सूं होटै आयगी- ''डाकणी ही सांढ, डाकगी कुओ। एक तो हो ई, एक और हुओ।'' बीं नै अचाणचक चेतै आई कै आज तो कविता में हुओ री तुक कुओ सूं मिलगी। आज आयगी दिखै मौत। पण उण नै लखायो कै फटकार बेअसर होयगी दिखै। फटकार रो असर होंवतो तो मर नीं जांवतो? बण इणी खुसी में ताळी बजाई कै धर'र'र-धम्म कुए रै पींदै जा पड़्यो। कुए में पड़तां ई भूंगर रो हंसलो उडग्यो। इयां निभी फटकार। भूंगर री लोक सूं विदाई हुई पण उण रो साहित्य आज बी लोक में भंवै। आओ बांचां भूंगर रा कीं घेसळा-
(1)
बरसण लाग्या सरकणा, भीजण लागी भींत।
ऊंठ सरिसा बैयग्या, दाळ रो सुवाद आयो ई कोयनीं।।

(2)
गुवाड़ बिचाळै पींपळी, म्हे जाण्यो बड़बोर
लाफां मार्यो घेसळो, छाछ पड़ी मण च्यार।
लुगायां, कांदा चुगल्यो , चीणां री दाळ-सा।।

(3)
भूंगर चाल्यो सासरै, सागै च्यार जणां।
भली जिमाई लापसी, वा रै कस्सी डंडा।।

(4)
भिड़क भैंस पींपळ चढी, दोय भाजग्या ऊंठ।
गधै मारी लात री, हाथी रा दोय टूक।
लुगायां, लाठी ल्याओ , गूदड़ै में डोरा घालां।।

(5)
चूल्है लारै के पड़्यो, म्हे जाण्यो लड़लूंक।
पूंछ ऊंचो कर'र देखां, तो टाबरां री माय।।

(6)
चरड़-चरड़ फळसो करै, फळसै आगै दो सींग।
आगै जाय'र देखूं तो, कुतड़ी पाल्लो खाय।
चरणद्यो बापड़ी नै, गाय री जाई है।।

(7)
गुवाड़ बिचाळै गोह पड़ी, म्हैं जाण्यो गणगौर।
पूंछड़ो ऊंचो कर'र देखूं तो, दीयाळी रा दिन तीन ही है।।

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