आपरी भाषा सूं कुण नै लगाव नीं हुवै ! पण इण लगाव नै मन में राख्यां पार नीं पडै़ । इण लगाव रो परगटीकरण टैमसर होयां ई उण भाषा रो मान बधै । साहित्यिक अनै दूजी यात्रावां रै दौरान म्हनै ओ लखाव होयो । दूजै प्रांतां रा लोग आपरी मायड़भाषा सूं कित्तो हेत राखै-देख’र म्हारी आंख्यां खुलगी । कई सुआल ऊभा होग्या म्हां साम्हीं । म्हन्नै लखायो ,आपां तो आं बिचाळै भोत ई निबळा हां ।
पाडो़सी प्रांत पंजाब में म्हूं देख्यो बठै पंजाबी भाषा में कोई च्यार दरजण नेडी़ मासिक पत्रिकावां अर इत्ता ई ई दैनिक अखबार अनै पखवाडि़या अखबार निकळै । अचरज तो ओ जाण’र होयो कै किणी भी पत्रिका री सद्स्य संख्या दस हज़ार सूं कम नीं , अपूठा पच्चास-पच्चास हज़ार तक सदस्य है । बजारां में अर बुक स्टालां माथै पंजाबी भाषा री पत्रिकावां अर पंजाबी साहित्य धडा़-धड़ बिकै । लोग मांग’र चाव सूं खरीदै । पंजाबी साहित्य री पोकेट बुक्स री बिक्री तो किणी भी भारतीय भाषा रै साहित्य री बिक्री सूं कित्ती ई बेस्सी है । पंजाबी साहित्य अर पत्रिकावां नै खरीदण में बठै रा लोग आपरी स्यान समझै । ऐडो़ ई लगाव म्हैं महाराष्ट्र,गुजरात,तमिलनाडू,बंगाल,केरल,आंध्रप्रदेश अर गोवा में भी देख्यो ! बंगाल में तो लोग ब्या, सगाई,जन्मदिन अर दूजै मौकां माथै साहित्यिक किताबां भेंट करै । ओ देख’र जीव सोरो होयो । पण मन रो मोरियो पगां खानी देख’र भोत रोयो ।
म्हन्नै पंजाब रो भाषा प्रेम भोत दाय आयो । पंजाब रा लोग आपरा सगळा विज्ञापन आपरी ई भाषा पंजाबी आळी पत्रिकावां में देवै । विज्ञापन सूं पत्रिकावां रो आधार बधै । पंजाब में पंजाबी री कोई पत्रिका री छपाई हळकी नीं । सामग्री रा तो कै’वणां ई कां ईं ! आछै चीकणै कागदां माथै रंगीन छपाई देख’र रळी आवै कै ऐडी़ पत्रिकावां राजस्थानीं में क्यूं नीं ? जद कै पंजाब सूं कित्ता ई लूंठा-तुर्रमखां विज्ञापनदाता अर साहित्य सृजक राजस्थान री धरती रा है । देश रा नामीं-गिरामीं औद्योगिक घराणां में सौ में सूं सत्तर इणी राजस्थान री धरती रा जाया जलम्या है अर आ खास बात कै आं सगळां री मायड़भाषा राजस्थानी ई है । आं रा साल में लाखां करोड़ रिपियां रा विज्ञापन देश-विदेश री हिन्दी अंग्रेजी पत्रिकावां में छपै । पण राजस्थानी री पत्रिकावां निकळतां-निकळतां ई धन रै अभाव में दम तोड़ देवै । अठै री जागतीजोत, माणक , राजस्थली, नैणसी जैडी़ पत्रिकावां टसकती-टसकती निकळै ।
ओळमो ,वरदा ,वैचारिकी ,मरूभोम ,राजस्थान भारती , सिरजण ,तटस्थ , विश्वम्भरा , राजस्थानी गंगा , गोरबन्द , परम्परा , मरूभारती , मरूवाणी , अमरज्योति , मनभावन , लाडेसर , हरावळ , चामळ , नेगचार , राजस्थानी रत्नावली , देस-दिसावर , जलम भोम , पंचराज , आगीवाण , मारवाडी़ हितकारक , राजस्थान , राजस्थानी , चारण , कुरजां , वाणी , हेलो , म्हारो देश , सरवर , मरवण , मूमल , सिद्धश्री , कचनार , बिणजारो , गणपत , झुण्झुणियों , ओळख , लूर , आद मासिक , दोमाही तिमाही राजस्थानी पत्रिकावां राजस्थानी रो झंडो उठायो पण खरची खूटगी अर छपाई छूटगी ! लखदाद है उण सम्पादकां नै जका आज भी आपरै बूकियां रै पाण लगोलग राजस्थानी पत्रिकावां दोरी-सोरी काढ रै’या है ! निवण है बां नै !
राजस्थानी पत्रिकावां रा पाठक घणकरासीक लेखक ई है ।लेखकां नै मानदेय पेटै मुत में पत्रिका मिलै ।राजस्थान रा घणकरा लोगां नै ठाह ई कोनीं कै राजस्थानी भाषा में इतरी पत्रिकावां निकळै ! पत्रिकावां आम आदमी तांईं नीं पूगै । उपभोक्ता संस्कृति रै इण दौर में उणीज पत्रिका नै विज्ञापन मिलै जकी आम आदमी तांईं पूगै अर उण री प्रसार संख्या हज़ारां-लाखां म एं हुवै । विज्ञापन मोकळा मिल्यां ई पत्रिका चीकणै अर रंगीन कागद माथै छप सकै । नींस दो-च्यार अंकां रै बाद ई सम्पादक नै पत्रिका बन्द करणीं पडै़ ।
आज रै ईण जुग में जकी भाषा में पत्रिका ,अखबार या छापा कम निकळै उण भाषा रो भविख ऊजळो कियां होय सकै ? आज किणीं री हिम्मत नीं कै बो राजस्थानी भाषा में दैनिक अखबार निकाळ लेवै । पण जद तक दैनिक अखबार नीं निकळै अर उण री प्रसार संख्या लाखां तांईं होय’र आम आदमी तांईं नीं पूगै उण घडी़ तांईं आ आस ई निरमूळ है कै राजस्थानी भाषा रै प्रति जनचेतना जागसी ! आज तो भाषा री बैतरणीं बूढियां रै ताण चाल रै’ई है । टाबरिया तो आपणी राजस्थानी नै हिन्दी अर अंग्रेजी रै आंटै में दे ई दी !
इण घडी़ निकळ रै’ई पत्रिकावां , अखबारां , कालम चलावणियां अखबारां अर छापां नै मदद अनै पाठकां री दरकार है । पत्रिकावां रो प्रचार लेखक कर सकै । लोगां नै पाठक बणावण री खेचळ कर सकै अर करणीं भी चाईजै । राजस्थान रा प्रवासी उद्योगपति अर बौपारी चेतै अर आपरी मायड़भाषा री पत्रिकावां नै मौकळा विज्ञापन देवै । राजस्थान रा बौपारी , उद्योगपति अर दूजा धनबळी लोग पंजाब-बंगाल-गुजरात-तमिलनाडू-आंध्रप्रदेश-उडी़सा-केरल-करनटक रै बौपारी अनै उद्योगपतियां जियां आपरा विज्ञापन आपरी मायड़भाषा में अर आपरी मायड़भाषा ई में निकळण आळी पत्र-पत्रिकावां नै देवण री धार लेवै तो क्रांति आय सकै । पत्रिकावां अनै अखबार ई पांगर सकै अर मायड़भाषा रो भी बळ बधै । आं री प्रसार संख्या ई बधै अर लेखकाम-साहित्यकारां री हिम्मत ई बधै !
आओ आपां सगळा मिल इण माथै चींत करां ।
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