छम छम करती
लोहड़ी आई-ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थानी धरा उच्छबां री खान। बा'रा म्हीनां उच्छब। देई-देवतां रा। भौमिया-पितरां रा। मौज-मस्ती रा। रीत-प्रीत रा। रुत-कुदरत रा। खेती-बाड़ी रा। रास-रम्मत रा। तिथ-तिंवारां रा। म्हीनै में तीसूं दिन तिंवार। अै तिंवार मिनखाजूण में मस्ती रा रंग भरै। इस्यो ई एक तिंवार, सकरांत रो तिंवार। जिणनै मकर-सक्रांति भी कैवै। सूरज भगवान माघ म्हीनै में धरती रै दिखणाधै अधगोळ सूं उतराधै अधगोळ में आवै। मकर रासि सूं मेळ करै। इणी दिन उतराधै अधगोळ में गरमी सरू हुवै। मानता है कै इणी म्हीनै सूत्या देव जागै। देवै जका देवता। देव सरीखी परकत, मतलब कुदरत मिनखां नै सौरफ री सौगात देवै। ठंड सूं पिंड छु़डावै। गरमी पसारै। फसलां माथै कूंपळां फूटै। फूल आवै। इणी कोड में सकरांत रो तिंवार आखो राजस्थान मनावै।लोहड़ी आई-ओम पुरोहित 'कागद'
सुहागणां तिल सकरिया लाडू, घेवर, मोतीचूर रै लाडू माथै रिपिया मैल'र सासू नै परोसै। सासू आसीस देवै। भावज देवर नै घेवर अर जेठ नै जळेबी परोसै। सुहागणां कोई न कोई आखड़ी, मतलब संकळप लेय'र किणी जिन्स रा चवदै नग जेठाणी, देवराणी, नणंद, काकी सासू, भुआ सासू, मासी सासू, मामी सासू, बडिया सासू अर बामणां नै दान करै। सुरजी री पूजा करै। भोजायां सासरै रै टाबरां नै मूंफळ्यां, रेवड़्यां, गज्जक अर तिल सकरिया बांटै। सनातनी पख बतावै कै इण दिन किरसणजी नै मारण सारू कंश लोहिता नांव री राखसणी नै गोकळ भेजी। लोहिता नै किरसणजी खेल-खेल में ई पाधरी करदी। इण घटना री याद में लोहड़ी मनाइजै। सिंधी समाज भी सकरांत सूं एक दिन पै'ली इण तिंवार नै 'लाल लोही' रै मिस मनावै।
राजस्थान अर पंजाब रा आपस में रोटी-बेटी रा नाता। आं नातां साथै संस्कृति अर भाषा रा मेळ-मिलाप होया। इणी रै पांण पंजाब सूं वैसाखी अर लोहड़ी रा तिंवार राजस्थान पूग्या। आज आखै राजस्थान में मकर सक्रांति सूं एक दिन पै'ली लोहड़ी रो तिंवार मनाइजै। लोहड़ी रै दिन, दिनूगै-दिनूगै बास-गळी रा टाबर भेळा होवै। घरां सूं लकड़ी-छाणां मांगै। उछळता-कूदता गावै- ''लोहड़ी-लोहड़ी लकड़ी, जीवै थारी बकरी, बकरी में तोत्तो, जीवै थारो पोत्तो, पोतै री कमाई आई, छम-छम करती लोहड़ी आई।'' लकड़ी-छाणां भेळा कर'र रातनै चौपाळ में लोहड़ी मंगळावै। लोहड़ी री धूणी माथै आखो गांव भेळो हुवै। सिकताव करै। मूंफळी, रेवड़ी, गज्जक अर तिल-सकरिया खावै। लोहड़ी री आग में तिल अरपण करै। पंजाबी लोग-लुगायां गावै- ''आ दलिदर, जा दलिदर, दलिदर दी जड़ चूल्हें पा।'' इणी भांत राजस्थानी लोग बोलै- ''तिल तड़कै, दिन भड़कै।''
पंजाबी री लोककथा है। एक बामण रै कुंवारी कन्या ही। नांव हो सुन्दर-मुन्दरी। बा भोत फूटरी ही। उणनै एक डाकू उठाय'र लेयग्यो। दुल्लै भट्टी नै ठाह पड़ी। दुल्लो भट्टी जको मुसळमान हो। बण बीं कन्या नै डाकू सूं छु़डाई अर एक बामण रै बेटै साथै परणाई। साथै सेर सक्कर भी भेंट करी। इण भलै मिनख नै आज भी लोग याद करै। टाबर दुल्लै भट्टी रा गीत गा-गा'र लोहड़ी सारू बळीतो भेळो करै- ''सुंदर-मुंदरिये...हो, तेरा कौण बिचारा....हो, दुल्ला भट्टी वाळा....हो, दुल्ले धी ब्याही...हो, सेर सक्कर पाई...हो, कु़डी दा लाल पिटारा...हो।''
जिकै पंजाबी घर में नूंवी बीनणी आवै, बीं में न्यारी-निरवाळी लोहड़ी मनावै। बीनणी रै पी'रै सूं मूंफळ्यां, रेवड़्यां, गज्जक, तिलकुट्टा, घेवर, फीणी आवै। लोहड़ी री धूणी माथै बांटीजै। लोहड़ी रा गीत गाईजै। अजकाळै नूंवा लटका-झटका भी बपराईजै। डी.जे. लगाय'र घर रा सगळा जणां नाच-तमासा करै।
आज रो औखांणोनीर निवाणां-धरम ठिकाणां।
नीर ढलान की ओर और धर्म अपनी ठौर।
जल की हिफाजत के लिए उपयुक्त स्थान कुआँ है। उसी प्रकार धर्म या पुण्य भी उचित पात्र और स्थान को देखकर किया जाना चाहिए, अन्यथा उसका फल उलटा हो जाता है।
संसार में प्रत्येक वस्तु के लिए अपनी ठौर निर्धारित है।
नीर ढलान की ओर और धर्म अपनी ठौर।
जल की हिफाजत के लिए उपयुक्त स्थान कुआँ है। उसी प्रकार धर्म या पुण्य भी उचित पात्र और स्थान को देखकर किया जाना चाहिए, अन्यथा उसका फल उलटा हो जाता है।
संसार में प्रत्येक वस्तु के लिए अपनी ठौर निर्धारित है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें