कागद राजस्थानी

शनिवार, 16 जुलाई 2011

सतलडी़

* सतलडी़ *



देर करी क्यूं आवण मेँ ।

आग लागगी सावण मेँ |1



बादळ आय भेई देह ।

आयो आनन्द गावण में ।2।



जगी आस थे आवोला ।

लागी काग उडावण मेँ ।3।

धन थारो घर मेँ खूटै ।

कांईं सार कमावण में ।4।


हाथां प्रीत लाग्या बाण ।

कांईँ सार लुकावण मेँ ।5।


पै'ली छांट पूगो घरां ।

सावण ढूक्यो खावण में ।6।


गाड़ी पकड़ो सीधा सट ।

कोनीँ सार सुस्तावण मेँ ।7।

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