दस पूंछ आळा दूहा
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[१]
सरदी आई सायबा,गाभा बधग्या डी’ल ।
थांरी आसां कूकतां,आंख्यां बणगी झील ॥
सरदी में नुहासी के ॥
[२]
चाय बणाऊं सायबा,घालूं अदरख लूंग ।
खीचड़ रांधूं कूटवों, भेळ बाजरी मूंग ॥
पछै दळसी छाती पर ॥
[३]
खेतां हरखै बाजरी,धरती करै रचाव ।
थारै आयां सायबा, ढूंढो करै बणाव॥
थारै काचरी तळीजै ॥
[४]
भल आया थे सायबा,आंगण ढूक्यो चाव ।
घिरती फ़िरती नाचती,मन में उठै उमाव ॥
नोटडि़या ल्यायो दिखै ॥
[५]
थां बिन सूनां सायबा,गांव गुवाडी़ खेत ।
टाबर सेकै रोजगा , म्हानै थारो हेत ॥
ल्यो रमाओ टाबरिया ॥
[६]
थारै आयां सायबा, बोल्या डेडर मोर ।
आभै चमकी बीजळी,बादळ गाज्या जोर ॥
फ़ेर तो पक्की रांद मंडगी ॥
[७]
काग उडा़या सायबा ,थांरी आवण आस ।
कागै मनस्या पूरदी ,प्राण पांगरया ल्हास ॥
आ लागी कागलै री ॥
[८]
थारै सारू सायबा , राता पै’रूं बेस ।
सुरमो सारूं आंख में,बीणी गूंथूं केस ॥
फ़ेर काढ़्सी अक्कल तो॥
[९]
सेजां पोढो़ सायबा , छाती लेऊं भीड़ ।
सुणगै आखर प्रेम रा,मेटूं मन री पीड़ ॥
अब कोनीं बचै लाडी ॥
[१०]
सूरज चढियो सायबा ,बेजां सोणो पाप ।
चाय बणाऊं सांतरी ,चूल्हो बाळो आप ॥
अब किस्सै कूए में पड़सी ॥
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