कागद राजस्थानी

सोमवार, 8 अगस्त 2011

कविता

*म्हे कुटीजता*
 
म्हे जद छोटा हा
बात बात माथै
रूस जांवता
मानता तो मानता
...नीँस कुटीज जांवता
कई बार
कुटीज जांवता तो भी
रूस जांवता
मानता ई नीँ
लाख मनायां ई !

ठाकुरजी रै भोग ताईं
आई मिठाई
चोर'र खांवता तो कुटीजता
मांगता तो भी कुटीजता
पत्थर रै भगवान रै
चढ्योड़ी मिठाई
भगवान तो नीँ
हरमेस म्हे ई खांवता
लुक बांट'र
ठाह लाग्यां
नीँ लाग्यां भी
म्हे ई कुटीजता !
पत्थर री देवळी तो
सदां ई इकसार
हांसती रैँ'वती
मा खानीँ अर म्हां खानीँ !

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