कागद राजस्थानी

शुक्रवार, 15 जून 2012

आभै रा पांच चितराम

आभै रा पांच चितराम
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1.
आभो
मरै मिजळो
खुद नीं बरसावै
मिनखां रो देखै
अंतस थिर पाणीं !
2.
आभो
कुंड अगन रो
पाळै सुरजड़ो
जको खदबदावै
बिना पाणीं
रेत में हांफळता
मगसा मिनख !
3.
आभो खिंडावै
अखूट सुनियाड़
रमावै उण में
चांद-सूरज-तारा
मिल पर ऐ
अधावै मिनख नै
लगोलग सारा !
4.
आभो साम्भै
काळ रा परवाना
बो ई टोरै
मुरधर माथै
जूण रो नास
जूण री आस
बिरखा नै
टोर टाळ !
5.
आभो
घर बादळ रो
सासरो बिरखा रो
बिरखा बीनणीं
आवै कियां
साव परबारी
मुरधर पीवरियै
बिनां भेज्यां ?

1 टिप्पणी:

  1. वाह ओमजी सा ! काईं बात है ! पांचू चितराम बोत ही सांतरा अ'र मन मोवणा लाग्या सा. जी सोरो होग्यो अ'र म्हें भी कीं सीख्यो. स्यात मैं भी कीं आपांरी मायाड भासा में लिख सकूं इन सरीखा चितराम.. !
    नमन !

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