कागद राजस्थानी

बुधवार, 1 जून 2011

गणगौर पूजा

गणगौर पूजा :गौरी-शंकर री पूजा
-ओम पुरोहित’कागद’


नोरते रै तीजै दिन यानी चैत रै चानण पख री तीज नै गौरी-शंकर री पूजा होवै। गौरी मात जगदम्बा यानी पार्वती। पार्वती रा धणी शंकर। इण दिन आं दोन्यां री पूजा ईसर-गणगौर रै रूप में होवै। पार्वतीजी शंकर नै वर रूप पावण सारू तप करियो। शंकरजी राजी होया। वरदान मांगण रो कैयो। पार्वतीजी शंकरजी नै ई वर रूप मांग्यो। पारवती री मनसा पूरण होई। बस उणीज दिन सूं कुंवारी छोरियां मनसा वर पावण सारू ईसर-गणगौर पूजै। सुहागणां धणी री लाम्बी उमर सारू पूजै।गणगौर री पूजा चैत रै अंधार पख री तीज सूं सरू होवै। होळका री राख सूं छोरियां बत्तीस पिंडोळिया बणावै। घर में थरपै अर सोळै दिनां तांणीं गणगौर पूजै। सोळै दिनां तांई भागफाटी उठ दूब ल्यावै। बाग-बाड़ी में गावै-

'बाड़ी आळा बाड़ी खोल, बाड़ी री किवाड़ी खोल, धीवड़्यां आई दूब नै।
'दूब लेय घरां आवै। माटी का काठ री गणगौर री देवळ नै दूब सूं काचै दूध रा छांटा देवै। राख री पिंडोळ्यां माथै कूं-कूं री टिक्की लगावै। कुंवार्यां अर सुहागणां भींत माथै कूं-कूं अर काजळ री टिक्की काढै। गावै-

'टिक्की राम्मा क झम्मा, टिक्की पान्ना क फूलां।
'कांसी री थाळी में दई, पाणी, सुपारी अर चांदी री टूम धर दूब सूं गणगौर नै संपड़ावै। गावै-

'केसर कूं-कूं भरी ऐ तळाई, जामें बाई गवरां ऐ न्हाई।
 'आठवैं दिन ईसर बाई गवरजा नै लेवण सासरै ढूकै। इण दिन छोरियां कुम्हार रै घर सूं पाळसियो अर माटी ल्यावै। घरां माटी सूं ईसर, ढोली अर माळण बणावै। सगळी देवळ नै गणगौर भेळै पाळसियै में बैठावै। आगलै आठ दिन तक बनौरा काढै। दाख, काजू, बिदाम, मिसरी, मूँफळी, पतासा सूं दोन्यां री मनावार करै। सौळवैं दिन दायजै रो समान- दूब अर पुहुप भेळा करै।

जीमण सारू बाजरी रा ढोकळा बणावै। ढोकळा चूर'र सक्कर बुरकावै अर ऊपर धपटवों घी घालै। जीमा-जूठी पछै बाई गवरजा नै आज रै दिन सासरै पधरावै। नदी, तळाब का कूवै नै सासरो मानै। भेळी होय ईसर-गणगौर री सवारी गाजै-बाजै सूं काढता थकां बठै ढूकै। देवळ्यां नै विद्या दीरीजै। कूवै, नदी का तळाब में पधरावै।गवर पूजण आळ्यां सोळै दिन ऐकत राखै। इण दिन बरत खोलै। पग रै आंटै सूं ढोकळा जीमै। सुहागणां ब्यांव रै बाद गणगौर रो अजूणौ करै। अजूणै में ढोकळां री ठोड़ खीर-पू़डी अर सीरो बणै अर सौळै सुहागणां नै नूंत जीमावै।
गणगौर पूजा आखै राजस्थान में। उदयपुर री घींगा गवर, बीकानेर री चांदमल डढ्ढा री गवर नामी। उदयपुर रा महाराजा राजसिंह छोटी राणी नै राजी करण सारू चानण-पख री तीज री जाग्याँ अंधार-पख री तीज नै गणगौर री सवारी काढी। ओ काम धिंगाणै करीज्यो। इण सारू धींगा गवर बजै। बूंदी रा राजा जोधासिंह हाडा सम्वत में चैत रै चानण-पख री तीज नै गणगौर री देवळ अर आपरी जोड़ायत भेळै नाव चढ तळाब में सैर करै हा। अचाणचक नाव पळटी अर दोन्यूं धणी-लुगाई गणगौर समेत डूबगया। बस इणी दिन सूं बूंदी में गणगौर पूजण रो बारण। बूंदी में कैबा चालै-
"हाडो ले डूब्यो गणगौर !"

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