कागद राजस्थानी

रविवार, 1 अप्रैल 2012

सबद गळगळा


]><[ पै'ली अर अब ]><]

1.रिस्ता
पै'ली होंवंता
खून रा रिस्ता
पण अब
रिस्तां रो
खून होवै !

2.आदमी


पै'ली आदमी

भगवान नै ढूंढतो
पण अब
भगवान
आदमी नै ढूंढै !

3.धरम


पै'ली

धरम री जड़
सदा हरी राखता
पण अब
धरम री जड़
संकै नीं उपाड़ता !

4.भगवान


पै'ली भगवान

भाठां तांईं में रैंवता
पण अब
राम निकळग्यो
सगळां रो !

5.राजप्रमुख


पै'ली

राजप्रमुख
राज करता
पण अब
राजप्रमुख
अकाज करै !

[ म्हारै 1994 में छप्यै कविता संग़्रह "सबद गळगळा"रै पृष्ठ 78,79 अर 80 सूं]

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