कागद राजस्थानी

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

*साथै जासी प्रीत*

मद में चालै लोगड़ा , क्या ग्यानी क्या सूर ।
आब गमावै आपरी , थकां फूटरा पूर ।।
ग्यान हांडकी आपरी , ढकगै राखो आप ।
छलकत लछकत खूटसी , बणसी भूंडी छाप ।।
ग्यान कमायो आप जे, बांटो जग में जाय ।
खुद कमावै खुद खावै , बै डांगर कहवाय ।।
जग सूं पाछा जांवता, साथै जासी प्रीत ।
प्रीत बांटता जायस्यो , जग गावैला गीत ।।
हेत कमाई आपरी , बाकी कूड़ा काम ।
कूड़ करम नै छोडगै, खूब कमाओ दाम ।।
भाषा बोलै आपरी , जग में जीया जंत ।
भाषा छोडै आपरी , उण रो नेड़ो अंत ।।
मायड़ भाषा बोलतां , सीखो भाषा और ।
खुद री भाषा छोडगै, पाप करोला घोर ।।

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