कागद राजस्थानी

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

. *म्हे अर बै*

.
[1]
म्हे तो
बरसां खाई कोनीं
धाप'र रोटी
अर बै खाग्या
म्हारी बोटी-बोटी !
[2]
म्हे
घालता रैया बोट
अर
बै छापता रैया नोट
म्हारै पल्लै आज
साल दर साल है
बोट ई बोट
अर बांरै पल्लै
अकरा अकरा नोट !

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय कागद जी, सादर प्रणाम !
    मुझे आपका ब्लॉग पढकर बेहद खुशी हुई . सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ़ आपका ओज़ सराहनीय हैं बहुत खुब़ लिख़ा हैं आपने ....मायड़ भाषा की कड़वी रचनाओं को कागद पर उतारने के लिए कोटिशः धन्यवाद. माफी चाहता हूँ क्योंकि इस कागद पर यह टिप्पणी आपणीं भाषा में नहीं कर पाया, फिर भी राजस्थानी की माँ का जाया हूँ और मायड़ भाषा से स्वभाविक लग़ाव हैं |

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