कागद राजस्थानी

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

*अकरा दूहा*

तोल परा अकडोडिया, बैचै बैठ दुकान ।
आम बतावै आकड़ा, है नीं चतुर सुजान ।।
पाटै काटै रातड़ी, मैडम खींचै कान ।
जीमण ढूकै सायबो . है नीं चतुर सुजान ।।
खबरां राखै जगत री, घर रो कोनीं ध्यान ।
घर में जावै रात नै, है नीं चतुर सुजान ।।
घट घट री बातां घड़ै, घड़ घड़ फाड़ै थान ।
खुद री ढाबै बातड़ी, है नीं चतुर सुजान ।।
मीठो भावै मोकळो , खारो लागै धान ।
फाको मारै खांड रो , है नीं चतुर सुजान ।।

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