कागद राजस्थानी

गुरुवार, 6 जून 2013

*मन रै मतै*

मन में बसै कोई
आवण नै बारै
देख सुन्याड़
खस्सै बो ई
बस नीं चालै
पण चालै आंगळ्यां
रेत में मंडै
मन रै मतै
ओळ्यूं रा चितराम
पछै मचै होड
धोरां री पाळ
कुचमादी बायरै साथै
घरां पूगतां-पूगतां
बायरो ई जीतै
ओळ्यूं लुक जावै
रेत सूं उठ
अंतस रै ऊंडै कोठार
ठिकाणै पूग
आंसू रै परवानै
देवै पूगण रा समचार !

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