कागद राजस्थानी

रविवार, 2 जून 2013

*कुचरणीं

*
एक जणों
ऊंची-ऊंची आवाज में
हाका करै हो
दारू ना पीओ रे
दारू ना पीओ रे 
दारू छोडद्‌यो !

कणीं ई नीं सुण्यो तो
हाथ-पग पटकतो बो
बोकाड़ा फाड़ण ढूक्यो
सुणो रे दुष्टो
दारूड़ी छोडद्‌यो
क्यूं म्हनैं मारणों कर्‌यो है !

उण रा बोकाड़ा सुण'र
एक जणों
साम्हैं आय'र बोल्यो
क्यूं भाई
लोगां रै दारू पीयां
थूं क्यूं मरसी
अर छोड्‌यां
थूं कियां जी सी ?
जणां बो बोल्यो
जे म्हनै नीं मिली तो
म्हैं मरस्यूं
अर जे लोगड़ा
कीं छोडसी तो ई
म्हनै मिलसी नीं 

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