कागद राजस्थानी

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

*बै दिन*

दिन तो बै हा
जद भेळा बैठ जीमता 
एक थाळी भाई-भाई
मा जीमांवती म्हे जीमता
धापता ई कोनीं
आखती होय मा कैंवती
पेट है का कूओ
धापै ई कोनीं मरज्याणां
अर फेर रात नै
दूख जांवतो जे पेट तो
मा थुथकारा घालती
मिर्च उवारती
खुद नै गाळां काढती-
म्हारी निजर लागगी
म्हारी ई लागी है टोक
पछै कोई रोक नीं सकतो
मा री आंख्या रा बा'ळा !

बीस मांचा ढळता
सोंवता जद बाखळ में
आधी रात ताईं
कहाण्यां सुणांवता
एक रै बाद एक
नित नवी-नवी
घर रा बडेरा
म्हे सोंवता
हंकारा भरता-भरता
दिन तो बै ई हा !

अब सोवां म्हे
आप-आपरै कमरां में
टाबर कठै ई
म्हे कठै ई
हरेक कमरै में
भूंसै टीवी
सगळा देखै लुकत में
आप-आपरै
मनभांवता प्रोग्राम
जिण रै आगै
दरकार ई नीं
कोई हंकारै री !

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