![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq3HUrYIZ819ciEhRwfPSaBHaYWc3bbAtSeCeT3UjG40cT6JcUBkBiwfTdLMgO6XcvCRh6ikloPKKlokMOyUptSxJHJpTZTQTh5khmQNpGyVLhSrhreLnEBjode7zT5qVv5a0IV-NkfW1R/s1600/9696845799_cf30209667_o.gif)
चावड़ी बिना मावड़ी , कूड़ो लागै लाड ॥
गुलफ़ी जमगी नाक में , बिन घोचै रै आज ।
अदरख आळी चावडी़ , आज बचासी लाज ॥
आज बणा दे गुलगुला , सागै कीं गुळराब ।
जे कीं तळै पकोडि़या , पग देऊंला दाब ॥
फ़ीणी-केसर घालगै , पावो दूध गिलास ।
कंठा उतरै दूधडो़ , बचै बचण री आस ॥
चिट-चिट छोलूं मूंफ़ळी , झट-पट लेऊं चाब ।
बिच-बिच खाऊं रेवडी़ , पूछो मत ना साब॥
मोटी-मोटी सिरखडी़ , गूदडो़ धस्सैदार ।
भीतर बैठ्या तापल्यां , सिगडी़ धूंवैदार ।।
आवै साम्हीं मावडी़ ,ओळ्यूं थांरी डाक ।
धर हाथां में देंवती , बाटकी गूंदपाक ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें