कागद राजस्थानी

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

*म्हे भोत राजी होंवता*

बाखळ में सोंवता
आंख्यां में भरता 
समूळो आभो
आभै में पळकतो
चंदो मामो अटल
अणगिणत तारा
तारां में बसता
बिछड्रया सारा
मा बतांवती
उण तारै में देख
थांरो नानो जी है
उण में है नानी
थांरा दादा-दादी भी
थांनै देखै
देख्या धूमस ना कर्‌या
बिराजी होवैला सारा
अर फेर म्हे सगळा
तारां नै गोखता
आदरभाव सूं
जद टूटतो कोई तारो
मा कैंवती
थां में सूं कोई
कूड़ बोल्यो है
दादो जी रिसाण होग्या
बै आवै है नीचै
थांरी स्यामत है अब
अर म्हे डर'र
मुंडो ढक सो जांवता !

दिनूगै पूछता
रात दादो जी कांई कैयो
मा कैंवती
दादो जी कैंवै हा
टाबर तो स्याणा है
बोला बाला सूत्या है
मा री बात सुण
म्हे भोत राजी होंवता !

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