कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

राजस्थानी गांव

सुरगां सूं भी सोवणा,

राजस्थानी गांव।

-ओम पुरोहित 'कागद'

खे़डा फोगां खेजड़ां, चोखा-चोखा नांव।
सुरगां सूं भी सोवणा, राजस्थानी गांव।।
राजस्थानी संस्कृति जूनी। जूनी पण जतनां ताण। जतन सांवठा। सगळां नै सिकार। सगळां रै मनभावणा। जतनां री रिछपाळ। संस्कृति नै अंगेजण री चावना-भावना अर ध्यावना। इणी मठौठ रै पांण, आज भी जींवता ऐ जूना ऐनांण। जूण रै हर खेतर में संस्कृति री सौरम। संस्कृति रा दीठाव। खानपान हुवै या रैवास। मिंदर-देवरा हुवै या मै'ल-मा'ळिया-झूंपड़ा। ढाणी-गांव हुवै या स्हैर-परगना। सगळां में सस्कृति रा चितराम। गांव रो नांव लेवतां ई इतिहास अंगड़ाई तोडतो लखावै। गांव रो बसाव इतिहासू। इतिहास पण नांव में। आओ, आपां जाणां गांव-स्हैर अर परगनां री थरपणा रो इतिहासू मनोविग्यान।
राजस्थान रा गांवां रै नामकरण में इतिहास रो घणो महत्त। घणी'क बार धरा-धणी रै नांव सूं गांव बसै। कई बार किणी कुटुम्ब-धणी रै नांव सूं बसी ढाणी ई गांव बणै। गांव-रिछपाळ रै नांव सूं भी गांवां रा नांव थरपीजै। ठाडा-ठावा वीर, रणबंका, जूझार, राजा अर राणी रै नांव सूं गांव। चाकर-ठाकर, दास-दासी, गुमासता, पगेरू, जीवजंत, चारण, देई-देवता, भोमिया, गढ़, तळाब अर रूंखां रा नांव सूं भी गांवां रा नांव थरपीजै। पण इण थरपणा रै लारै इतिहास री औळ रैवै।
राजस्थान में ढाणी बसावण री जूनी परापरी। गांव अळगो हुवण रै कारण खेतीखड़ लोग आपरै खेत में ढाणी बसावता। धीरै-धीरै कड़ूम्बो बधतो। लाणो-बाणो पसरतो। बधतां-बधतां ढाणी गांव बण ज्यांवती। ढाणी रो नांव धरा-धणी रै नांव सूं या चलबल आळै बडेरै रै नांव सूं राखीजतो। जियां बलवीरसिंह री ढाणी, नंदराम री ढाणी, सवाईसिंह री ढाणी, खेतैआळी ढाणी। एक ई जात रै लोगां री भेळप में बसायोडी ढाणी रो नांव जातिसूचक होंवतो। जियां कै बामणां री ढाणी, खातियां री ढाणी, सारणां री ढाणी, चारणां री ढाणी, खोथांवाळी ढाणी, अराइयां वाळी ढाणी। ढाणी सूं गांव बण्यां पछै ढाणी सबद हट जावतो। जियां कै भगवानसर, धांधूसर, सुरजनसर, शेरगढ़, बामणवाळी आद। गांव रै नांव री थरपणां में भी इतिहास। जको गांव किणी तळाब रै कांठै बसै, उणरै नांव रै छेकड़ में 'सर' लागै। 'सर' आपणी भासा में तळाव रो पर्याय है। आप गीत सुण्यो हुसी- 'सरवर पाणीड़ै नै जाऊं सा, निजर लग जाय।'
इतिहास पुरख या पूजनीक, जूझार, रणबंका, राजा, राणी, आद रै नांव सूं गांव बसाइजतो तो पैली बठै तळाव खुदाइजतो। पछै थरपीजतो गांव रो नांव। बीकानेर रै राजा लूणकरणसिंह रै नांव माथै लूणकरणसर। कवि-चाकर राजिया रै नांव सूं राजियासर। राव अरजनसिंह रै नांव सूं अरजनसर। राणी मळकी रै नांव सूं मळकीसर। राणी केसरदे रै नांव माथै केसरदेसर। निहालदे रै नांव सूं निहालदेसर। कोडमदे रै नांव सूं कोडमदेसर।
इयां ई आपणै औळै-दौळै देखां तो लाधसी- टीडियासर, भोजासर, लिखमीसर, पाबूसर, सालासर, तोळियासर, करणीसर। देई-देवतावां अर संतां रै नांव माथै- गुगाणो, गोरखाणो, गुगामे़डी, बालाजी, नागणेची, रामदेवरा, पाबूसर। रूंखां रै नांव माथै- फोगां, खेजड़ां, खेजड़ली, कीकरवाळी, नीमलो, जाळवाळी, कैरांवाळी, रोहिड़ांवाळी। पसु-पांख्यां रै नांव माथै- बुगलांवाळी, हिरणांवाळी, मिरगलो।
आपां माथापच्ची करां तो आ फड़द घणी लाम्बी बण सकै। आप जागरुक पाठक हो। आ खेचळ करो देखांण। पसु-पांखी, रूंख, देई-देवता, जात, रणबंकां, जुझारुआं आद रै नांव सूं थरपीज्योडा गांवां री न्यारी-निरवाळी फड़द बणाओ।
गांव रै नांव री थरपणां में इतिहास री एक पुट और देखो। जकै गांव-कस्बै-स्हैर मांय गढ़ बण्योडा हुवै, उणरै नांव रै छेकड़ में 'गढ़' लागै। गढ़ कैवां किलै नै। जियां कै जूनागढ़, लालगढ़, अनूपगढ़, फतेहगढ़, कुम्भलगढ़, सूरतगढ़, सूरजगढ़, मेहरानगढ़, किशनगढ़, चितोडगढ़ अर अजीतगढ़। जका गांव कीं बड़ा हुवै, यानी स्हैर सरीखा, उण गांव रै छेकड़ में 'पुर' या 'नगर' लागै। करणपुर, केसरीसिंहपुर, पदमपुर, बीकमपुर, गंगापुर, सादुलपुर, श्रीगंगानगर इणरा उदाहरण है।

आज रो औखांणो
ऊजड़ खे़डा भल बसै, निरधनियां धन होय।
गियो न जोबन बावड़ै, मूवो न जीवै कोय।।
उजड़ा हुआ गांव फिर बस जाता है, निर्धन के पास धन होना भी सम्भव है, लेकिन बीता हुआ यौवन लौट कर नहीं आता और न ही मरा हुआ इंसान फिर से जीवित होता। उम्र का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हर क्षण अमूल्य है।

स्यावड़ माता सहाय करी,

स्यावड़ माता सहाय करी,

अन्न-धन सूं भंडार भरी

-ओम पुरोहित 'कागद'
धीरज-धरम अर आस्था राजस्थान्यां री पिछाण। खेती पण अठै री आन-बान अर स्यान। खै राजस्थान री जीयाजूण खेती सूं पळै। कैबा चालै- खेती खसमा सेती। पण राजस्थान रो किरसो खुद नै खेती रो खसम नीं मानै। उणरी आस्था कै 'देव तूठै तो खेती ठूठै'। खेत अर खेत री कांकड़ में देई-देवतावां रा थान थरपै। आपरै बडेरां रा थान। बोरड़ी, खेजड़ी या जाळ तळै भोमियां, भैरूवां अर खेतरपाळां रा थान। मन में पण स्यावड़ माता। कई लोग पण स्यावड़ी माता भी कैवै। खेती सरू करती बगत सूं लेय'र खळै तक स्यावड़ माता धोकै। 'स्यावड़ माता सहाय करी, अन्न-धन सूं भंडार भरी'। कई ठोड़ बोलीजै- 'स्यावड़ माता सत करियै, बीज म्होड़ो भळ करियै'।

किरसो मानै कै फगत स्यावड़ धोक्यां धान नीं वापरै। हाड़-तौड़ मेहणत करणी पड़ै। 'जको खट्टै, बो मोठ पट्टै।' आ भी मानता है कै हाड़-तौड़ मेहणत करणियै किरसै नै स्यावड़ माता तूठै। ईं सारू राजस्थानी करसो हाड़-तौड़ मेहणत करै। अर स्यावड़ माता नै धोकै। कागडोड या डोडकाग अनै सोनचिड़ी रै दरसण नै स्यावड़ माता रा पड़तख दरसण मानै। आं रै दरसण नै सुभ मानै। दरसण वेळा जकी चीज हाथ आवै, बा भेंट करै। और नीं तो पैरियोड़ा गाभा मांय सूं सूत री तांत काढ'र बीं दिस में अरपित करै, जिण दिस डोडकाग या सोनचिड़ी बैठी होवै। ऐ पंखेरू हरी डाळी माथै बैठ्या डाडा सुभ मानीजै। दरसण सूं कोड चढै अर मेहणत में दूभरिया लागै। डोडकाग सूं सीख लेवै कै खेती में डोड-चेष्टा करियां ई फळ मिलसी।
खेती सरू करतां किरसो स्यावड़ धोकै। खळो काढतां कोड करै। खळै री वेळा डाभ री स्यावड़ बणावै। गाभा नीं पैरावै। पण डाभ सूं बणायोड़ी उघाड़ी स्यावड़ माता रै डील माथै लोह री बसत बांधै। इणनै धान री ढिगली में राखै। धान री ढिगली गाभै सूं ढकै। ढिगली रो मूंडो दिखणादै राखीजै। अन्न काढणियो उतरादै कानी मूंडो राखै। धान बोरां में भरै। जठै तक धान नीं भरीजै। बठै तक सगळा मून रैवै। एक जणो इकलग ढिगली कानी देखतो रैवै। खळो सळट्यां पछै स्यावड़ माता रै नांव माथै गरीब-गुरबां अर सवासण्यां नै अन्नदान करीजै।
स्यावड़ माता पण ही कुण? मार्कण्डेय पुराण रै त्हैत रचिज्योड़ी दुर्गा सप्तशती में शाकम्भरी देवी रो बखाण आवै। विद्वान बतावै कै दुर्गा रूप माता शाकंभरी रो ई राजस्थानी रूप स्यावड़ी या स्यावड़ माता है। किरसाणां री लुगायां स्यावड़ माता रा बरत करै। बरत आळै दिन भेळी हुय'र कथा सुणै- एक किरसै रै गणेशजी रो इष्ट हो। उणरो बिसवास कै खेती रा सगळा काम गणेश भगवान री किरपा सूं हुवै। एक दिन गणेशजी किरसै नै समझायो, तूं स्यावड़ माता नै धोक। खेती में बधेपो हुसी। पण बो नीं मान्यो। गणेशजी नै धोकतो रैयो। एक दिन गणेशजी स्यावड़ माता नै साथै लेय'र किरसै रै खेत ढूक्या। स्यावड़ माता रा गाभा एकदम मैला हा। गणेशजी बोल्या- आपरा गाभा उतार'र म्हनै देवो। म्हैं सारलै तळाव में धोय ल्याऊं। स्यावड़ माता खळै में बड़'र गाभा उतारया। गणेशजी नै झलाया। गणेशजी गाभा लेय'र इस्या गया कै आज आवै। बो दिन अर आज रो दिन। स्यावड़ माता किरसाणां रै खळै री ढेरी में वास करै। किरसाणां रै अन्न-धन बपरावै।
इण कथा री आण में आज भी डाभ री स्यावड़ माता बणाय'र खळै री ढेरी में राखीजै। पग-पग माथै धोकीजै। खेत में जद बाजरी रा च्यार सिट्टा भेळा दिखै तो स्यावड़ माता रो पधारणो मानीजै। हळोतियै री बगत स्यावड़ माता अर गणेशजी धोकीजै। हळ री पै'ली ओड काढती वेळा आं नै गु़ड, लापसी अर सीरो चढ़ाइजै। स्यावड़ माता सूं अरदास करीजै- 'हे स्यावड़ माता सहाय करी, सगळां रै भाग रो अन्न दीजै। गायां रै भाग रो, चिड़ी-कमे़डी रै भाग रो। हाळी-बाळदी रै भाग रो, बैन-सवासणी रै भाग रो। राजा-प्रजा रै भाग रो।'
खळो काढती वेळा कोई बेतियाण नीं आवै इण सारू एक कैवै, 'हरे स्यावड़ माता!' दूजो कैवै, 'स्यावड़ माता ढिग करै'। खळै रै एक पासै स्यावड़ थरपै। गोबर रो थान बणावै। च्यार सिट्टां नै उण माथै स्यावड़ माता रै रूप थरपै। गुळ-घूघरी चढावै। धान री ढिगली गाभै सूं ढक'र राखीजै। ढिगली रै च्यारूंमेर राख सूं लिछमीजी रै नांव सूं कोर काढीजै। किरसो आज भी समूळ चावना-भावना सूं स्यावड़ धोकै। खेती रा नूंवा लटका-झटका बपरांवता मोट्यार-किरसाणां में पण आ भावना मौळी पड़ रैयी है।

आज रो औखांणो
फिरै सो चरै, बंध्यो भूखो मरै।घर पर बैठै रहने से पेट नहीं भरता। करम का ही महत्त्व

आपणा इलाका : आपणा नांव


आपणा इलाका : आपणा नांव-ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थान जूनो प्रदेश। जूनी मानतावां। जूनो इतिहास। जूनी भाषा। जूनी परापर। परापर एड़ी कै आज तक इकलग चालै। खावणै-पीवणै, उठणै-बैठणै अनै बोवार री आपरी रीत। रीत में ठरको। ठरकै में इतिहास री ओळ। ग्यान-विग्यान अर भूगोल री ओळ। बात-बोवार अर नांव में राजस्थानी री सौरम। इण सौरम रो जग हिमायती। आजादी सूं पैली राजस्थान में घणा ठिकाणा। घणा ई राज। राजपूतां रा राज। इणी पाण राजपूताना। राजा राज करता पण धरती प्रजा री। प्रजा राखती नांव धरती रा। नांवकरण में ध्यान धरती रै गुण रो। राजवंश, फसल, माटी, पाणी, फळ, पसु-पखेरू धरती रा धणी। आं री ओळ में थरपीजता इलाकै रा नांव।
बीकानेर रा संस्थापक राव बीकाजी रै नांव माथै बीकाणो। बीकाणै में बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, भटिंडा, अबोहर, सिरसा अर हिसार। राव शेखाजी रै नांव माथै शेखावाटी। शेखावाटी में चूरू, सीकर अर झुंझुणू। मारवाड़ में जोधपुर, पाली जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर। मेवाड़ में उदयपुर, चितोड़ , भीलवाड़ा अर अजमेर। बागड़ में बांसवाड़ा अर डूंगरपुर। ढूंढाड़ में जयपुर, दौसा, टोंक, कीं सवाईमाधोपुर। हाड़ौती में कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़, कीं सवाईमाधोपुर। मेवात में अलवर, भरतपुर। जैसलमेर में माड़धरा, हनुमानगढ़ नै भटनेर, करोली-धोलपुर नै डांग, अलवर नै मतस्य, जयपुर नै आमेर, अजमेर नै अजयमेरू, उदयपुर नै झीलां री नगरी, जैसलमेर नै स्वर्णनगर, जोधपुर नै जोधाणो अर सूर्यनगरी, भीलवाड़ा नै भीलनगरी, बीकानेर नै जांगळ अर बागड़ भी कैईजै। राजस्थान रै हर खेतर रा न्यारा-निरवाळा नांव। कीं नांव बिणज-बोपार माथै। कीं नांव जमीन री खासियतां रै पाण। बीकाणै में भंडाण, थळी, मगरो अर नाळी जे़डा नांव सुणीजै। ऐ हाल तो बूढै-बडेरां री जुबान माथै है। बतळ में उथळीजै। पण धीरै-धीरै बिसरीज रैया है। आओ आपां जाणां आं नांवां री मैमा।

भंडाण
भंडाण बीकानेर जिलै री लूणकरणसर, बीकानेर अर कीं कोलायत तहसील रै उण गांवां नै कैवै जकां रै छेकड़ में 'ऐरा' लागै। जियां- हंसेरा, धीरेरा, दुलमेरा, खींयेरा, वाडेरा।
भंडाण रा मतीरा नांमी होवै। मीठा। अठै री आल जबर मीठी होवै। आल लाम्बै मतीरै नै कैवै। भंडाण री गायां-भैंस्यां, भेड-बकरयां अर ऊंट नांमी। भंडाण रो घी, मावो अर मोठ नांमी। मतीरो भंडाण रो सै सूं सिरै। अठै रै मतीरै सारू कैबा है-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा।
बीकाणा थारै देस में, बड़ी चीज मतीरा।।
थळी
थळी चूरू जिलै रै रतनगढ़ अर सुजानगढ़ रै खेतर नै थळी कैवै। इण खेतर रा लोग थळिया। थळी री बाजरी, मोठ, काकड़िया, मतीरा नांमी हुवै। थळी री बाजरी न्हानी अर मीठी होवै। थळी रा वासी मोटो अनाज खावै। काम में चीढा अनै जुझारू अर तगड़ा जिमारा होवै। थळी सारू कैबा है-
खाणै में दळिया, मिनखां में थळिया।
मगरो
बीकानेर जिलै री कोलायत तहसील अर इणरै लागता जैसलमेर रा कीं गांवां नै मगरो कैवै। अठै री जमीन कांकरा रळी। मगर दाईं समतळ। पधर। इण कारण नांव धरीज्यो मगरो। मगरै रा ऊंट, गा-भेड अर बकरी नांमी। कोलायत धाम भी मगरै में पड़ै।

नाळी

हनुमानगढ़, सूरतगढ़, पीळीबंगा, अनूपगढ़, विजयनगर अर हरियाणा रै सिरसै जिलै रै गांवां नै नाळी कैवै। अठै बगण आळी वैदिक नदी सुरसती जकी नै अजकाळै घग्घर भी कैवै। इण नदी खेतर नै नाळी कैईजै। इण इलाकै रो नांव नाळी क्यूं थरपीज्यो। इण सूं जुड़ियोड़ी एक रोचक बात है। आओ बांचां-
जद घग्घर में पाणी आंवतो। बीकानेर रा राजा नदी पूजण हनुमानगढ़ आंवता। एकर राजाजी हनुमानगढ़ आयोड़ा हा। लारै सूं एक जणो अरदास लेय'र महलां पूग्यो। राजाजी नीं मिल्या। पूछ्यो तो लोगां बतायो, नदी पूजण गया है। बण पूछ्यो, नदी के होवै? एक कारिंदै जमीन माथै माटी में घोचै सूं लीकटी बणाई। लोटै सूं उण में पाणी घाल्यो। बतायो, नदी इयां होवै। बण कैयो, डोफा! आ क्यांरी नदी ? आ तो नाळी है, नाळी। बस उण दिन रै बाद इण इलाकै रो नांव नाळी पड़ग्यो। नाळी रा चावळ, कणक अर चीणा जग में नांमी। नाळी री जमीन घणी उपजाऊ होवै।

आज रो औखांणो
बूढळी रै कह्यां खीर कुण रांधै?
बुढ़िया के कहने से खीर कौन पकाए?
साधारण या आम आदमी की बजाय श्रीमंतों के आदेश की ही सर्वत्र अनुपालना होती है।

सिव-सिव रटै, संकट कटै

सिव-सिव रटै, संकट कटै
-ओम पुरोहित 'कागद'

तीन महादेव बिरमा-बिसणु-महेस। ऐ तीन देव एड़ा, जकां रै मां-बाप रा नांव किणी ग्रंथ मांय नीं लाधै। आं में ओ भेद भी नीं कै तीनां में सूं कुण पैली परगट हुयो। रिषि-मुनि सोध-सोध थक्या। छेकड़ आदि-अनादि-अनन्त कैय'र पिंड छुडायो। इण में सूं भगवान महेस नै देवां रो देव महादेव बतायो। इणी महादेव रै बिरमा-बिसणु रै बीच ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटण री रात नै कैवै- स्योरात। आ फागण रै अंधार-पख री चवदस नै आवै। मानता है कै जको इण दिन बरत राखै। अभिसेक करै। गाभा, धूप अर पुहुपां सूं अरचना करै। जागण करै। 'ऊँ नम: शिवाय' पांचाखर रो जाप करै। रूद्राभिषेक, रूद्राष्टाध्यायी अर रूद्री पाठ करै। बो शिव नै पड़तख पावै। उणमें सूं विकारां रो खैनास व्है जावै। उणनै परमसुख, शांति अर अखूट सुख मिलै।
स्योरात नै शिवपुराण में महाशिवरात्रि, इणरै बरत नै बरतराज कैयीज्यो है। स्योरात जम रो राज मिटावण वाळी। शिवलोक ढुकावण वाळी। मोक्ष देवण वाळी। सातूं सुख बपरावण वाळी। पाप अर भै नास करण वाळी मानीजै।
राजस्थान सूरवीरां री धरा। शिव अर सगति री मोकळी ध्यावना। अठै गढ़ां अर किलां में माताजी, भैरूंजी अर शिवजी रा मोकळा मिंदर। धरणीधर महादेव, शिवबाड़ी, गोपेश्वर महादेव, जैनेश्वर महादेव (बीकानेर), नीलकंठ महादेव (अलवर), हरणीहर महादेव (भीलवाड़ा), मंडलनाथ महादेव, सिद्धनाथ महादेव, भूतनाथ महादेव, जबरनाथ महादेव (जोधपुर), गुप्तेश्वर महादेव, परसराम महादेव (पाली), एकलिंगनाथजी (उदयपुर), ताड़केश्वर महादेव, रोजगारेश्वर महादेव, गळताजी (जयपुर), शिवमंदिर (बाड़ोली), पाताळेश्वर महादेव, पशुपतिनाथ महादेव (नागौर), रा मिंदर नांमी। महादेवजी रा इण मिंदरां में महाशिवरात्रि रा मेळा भरीजै।
अर अबार बांचो, एक लोककथा-

मैणत-सार

एकर मादेवजी दुनियां माथै घणो कोप कीधो। खण लियो कै जठा तांईं आ दुनियां सुधरै नीं, तठा तांईं संख नीं बजावै। मादेवजी संख बजावै तो बरसात व्है। काळ माथै काळ पड़िया। पांणी री छांट ई नीं बरसी। दुनियां घणी कळपी। घणो ई पिरास्चित करियो। पण मादेवजी आपरै प्रण सूं नीं डिगिया।
एक मादेवजी अर पारवतीजी गिगन में उडता जावै हा। कांईं देख्यो कै एक जाट सूखा में ई खेत खड़ै। परसेवा में घांण व्हियोड़ो। लथौबत्थ। भोळै बाबै मन में इचरज करियो कै पांणी बरसियां नै तो बरस व्हिया, पण इण मूरख रो ओ कांई चाळो! विमांण सूं नीचै उतरया। चौधरी नै पूछ्यो- बावळा, बिरथा क्यूं आफळै? सूखी धरती में क्यूँ पसीनो गाळै? पांणी रा तो सपनां ई को आवै नीं। चौधरी बोल्यो- साची फरमावो। पण खड़ण री आदत नीं पांतर जावूं, इण खातर म्हैं तो आयै साल सूड़ करूं, खेत जोतूं। जोतण री जुगत पांतरग्यो तो म्हैं पाणी पड़ियां ईं नीं जै़डो। बात महादेवजी रै हीयै ढूकी। मन में बिचार करियो... म्हनै ई संख बजायां नै बरस बीत्या। संख बजांणो भूल तो नीं गियो। खेत में ऊभा ई जोर सूं संख पूरियो। चौफेर घटा ऊमड़ी। आभै में गड़गड़ाट माची। अणमाप पांणी पड़्यो। जठै निजर ढूकै, उठी जळबंब-ई-जळबंब!


आज रो औखांणो
सिव-सिव रटै, संकट कटै।
किसी देवी-देवता का अस्तित्व हो-न-हो, पर मन की प्रबल भावना की शक्ति अदम्य होती है। शिव-शिव के निरंतर जाप से संकट टल जाते हैं या उनसे सामना करने की ताकत स्वत: बढ़ जाती है।

भाषा खूट्यां आप री,

भाषा खूट्यां आप री,
ईं बचैलो मान
-ओम पुरोहित 'कागद'

परी भासा पिछाण बणावै। भासा गमै तो पिछाण गमै। होड़-ठिकाणां रा नांव। गांवां रा नांव। चीज-बस्त रा नांव। भासा पाण चालै। भासा खुरै या मिटै तो ठोड़-ठिकाणां, गांव-सैर अर चीज-बस्त रा नांव खुरै-मिटै। दूजी भासा रै राज में नांव बदळै। अंग्रेजां री टैम कोलकाता सूं कलकत्ता, चैन्नई सूं मद्रास, बैंगलूरु सूं बंगलोर अर मुम्बई सूं बोम्बे या बम्बई होग्या। ओ बदळाव बठै री मायड़भासा री संकड़ाई अर अंग्रेजी रै बिगसाव पेटै होयो। ड़ा उदाहरण इतिहास में पण भरियोड़ा है। आ ई हालत आज राजस्थान री है। अठै री मूळ भासा राजस्थानी माथै धूळ जमाय दी। हिन्दी-अंग्रेजी रै प्रभाव में आय'र ठोड़-ठिकाणां, गांव-सैर अर चीज-बस्तां रा नांव ओळ-पंचोळा होयग्या। अब ऐड़ा नांव ना हिन्दी रा रैया, नां राजस्थानी रा।
आपणै अठै मूंग-मोठ-चीणां री दाळ होंवती। पण आ दाळ, दाळ सूं दाल होयगी। चावळ सूं चावल, बळीतै सूं बलीतो, कळ सूं कल, फळ सूं फल, बळ सूं बल, झळ सूं झल, टाळ सूं टाल, नाळी सूं नाली, फळी सूं फली, काळ सूं काल, पाणी सूं पानी, दळियै सूं दलिया, कांधळ सूं कांधल, बणीरोत सूं बनीरोत, बीकाणो सूं बीकानो, कांधळोत सूं कांधलोत होग्या। ऐड़ा उदाहरण है। आप कीं मैणत करो अर फड़द बणाओ।
इणी भांत गांव-सैरां रा नांव ओळ-पंचोळा होग्या। बिगड़ीयोड़ा नांव बांच-बांच हांसी भी आवै अर झाळ भी। पण करां कांई। किण रै आगै कूकां। आओ देखां, आपणी निजरां साम्हीं कांईं रैयो। कींया खुर रैयी है आपणी मायड़ भासा राजस्थानी। गांव रा नांव आपां बोलां कांई हां अर लिखां कांई हां। गांव सैरां रा नांव बदळतां-बदळतां एहलकारां रै हाथां राज रै कागदां में कींया चढग्या।
आपणो गांव धोळीपाळ हो। धोळी यानी सफेद। पाळ यानी 'बट' का रेत री भींत। बदळ'र होग्यो धोलीपाल। अब कठै रैयो धोलीपाल में धोळीपाळ रो अरथ? इयां ई परळीका सूं परलीका, जसाणा सूं जसाना, कमाणां सूं कमाना, दुलमाणां सूं दुलमाना, दीपलाणा सूं दीपलाना, पीळीबंगा सूं पीलीबंगा, काळीबंगा सूं कालीबंगा, अयाळकी सूं अयालकी, गोरखाणा सूं गोरखाना, ढाळिया सूं ढालिया, भिराणी सूं भिरानी, फेफाणा सूं फेफाना, गाढवाळो सूं गाढवालो, किळचू सूं किलचू, रूणीचै सूं रूनीचा, काळियां सूं कालियां, डबळी सूं डबली देखतां-देखतां ई बणग्या। राज रै कागदां में चढग्या। कीं रै कह्यां बदळ्या? कोई ठाह नीं। अब पण पाछा कींया बदळीजै। इण सारू खेचळ री पण दरकार। पाठक आप-आप रा गांवां रा नांव संभाळो। सागी जूनो अर इतिहासू नांव सोधो अर सूची बणाओ। आपरो इतिहास अंवेरण में संको क्यां रो!

भाषा राखै देस री, आन-बान अर स्यान।
भाषा खूट्यां आप री, नईं बचैलो मान।।

बासीड़ा

म्हारै टाबरियां नै ठंडा

झोला देई म्हारी माय

-ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थान में बारै म्हीना त्योहार। रुत रा त्योहार पण लूंठा अनै अरथाऊ। गरमी, सरदी, बसंत अर बरसाळै री मैमा निराळी। बरतां रा खान-पान ई रुत मुजब। रुत बदळण अर दूजी रुत आवण रै बिचाळै रा बरत। नूंई रुत नै सै'न करण रा बरत। आखातीज, सकरांत, निरजळा इग्यारस, सावणी तीज, भादू़डै री तीज अर बासीड़ा बी ऐड़ा ई त्योहार। राजस्थान सारू बासीड़ां री मैमा मोकळी। आखो राजस्थान धोकै। सीतळा-बासीड़ा-सेडळ रूपा काळका री ध्यावना करै।
सीतळा अष्टमी ई बासीड़ां रो त्योहार। ओ त्योहार चैत रै अंधार पख री आठ्यूं नै आवै। पण सोरफ सारू होळी रै बाद पैलै सोमवार का बिस्पतवार नै भी धोकण री छूट। नवदुर्गा में सूं मा 'कालिरात्रि' यानी काळका माता नै ई लोक में सीतळा माता कैवै। मा काळका रै गधै री सुवारी। उणी भांत सीतळा माता री सुवारी भी गधो। मा काळका पड़तख काळ रूप। बिरमा-बिस्णू अर महेश ई डरै। भूत-प्रेत, रोग-बिजोग, काळ-अकाळ, देव-मिनख अर राखस रो तो डोळ ई कांईं
काळका माता रै सीतळा माता रूप री भी आ ई मैमा। इणी कारण राजस्थान्यां री मानता कै सीतळा माता नै धोक्यां अबखो नीं पड़ै। इण दिन बरत राखै। मानता कै बरत करणियां रै कुटुम्ब-कबीलै में तातो ताव, पीळियो, हाडतोड़ बुखार, बांसणियां-दुखणिया, आंख रोग, गुरांदणी, बड़ी माता, छोटी माता, ऊपरलै रा रोग अर भूत-प्रेत री मार नीं हुवै।
बासीड़ां सूं पैलै दिन भोग बणाईजै। मीठा चावळ, खीर, भांत-भांत री पू़ड्यां, छिलका मूंग री दाळ, कढ़ी, राबड़ी, कांजीबड़ा, दई बड़ा, सांगरी, फोफळिया, कैरिया-कूमटा, भे, मोठोडी, गुवार फळी रा साग, मूंग-मोठ-बाजरी रो रंधीण, दई, पापड़, मोठ-बाजरी रा बी'रा भोग सारू त्यार करीजै। बासीड़ां रै दिन रसोई में घर-धिरयाणी घी सूं हाथ रा छापा छापै। छापां माथै रोळी-चावळ चिरचै। पुहुप चढ़ावै। दीयो चेतन करै। धूप-बत्ती करै। हाथा जोड़ी कर सीतळा माता सूं अरज करै-

'म्हारै टाबरियां नै ठंडा झोला देई म्हारी माय।
म्हारै टाबरियां रा सगळा जतन पुराई म्हारी माय।।'

गीत रै बीच में घर रै सगळै टाबरां रा नाम ई लेवै। झांझरकै ई बास-गळी री लुगायां भेळी होवै। थाळी में पूजा रो समान- रोळी, मोळी, कूं-कूं, चावळ, काजळ, टिक्की, होळका री राख री सात पिंडोळ्यां, जळ रो लोटियो, धूप-अगरबत्ती अर पुस्प सजावै। भोग सारू बणाई बासी रसोई थाळी में सजावै। घर रै सगळां रा हाथ लगुवावै। हाथां उंचाया गीत गांवत्या सीतळा माता रै मिंदर पूगै। पूजा करै। भोग लगावै। पाछी घरां आय पिंडोळ्यां पळींडै थरपै। घर रा सगळा बठै धोक लगावै। पूजा रो जळ आंख्यां लगावै। लुगायां चौक माथै भी पूजै। मोठ-बाजरी रै बी'रां माथै रिपियो राख सासू नै भेंटै। पगां लागै। सासू आसीस देवै- 'दूधां न्हावो-पूतां फळो।' पछै सगळी लुगायां सीतळा माता री कथा सुणै। जीमै अर बरत खोलै।

शीतळा माता री कथा
राम जी भला दिन देवै तो... एक ही बूढळी। ठंडो ई खांवती, ठंडो ई पींवती। ठंडो ई पै'रती अर ठंडो ई बोलती। बासी खांवती। बासीड़ा धोकती। पूरो परवार निरोगो। एक दिन गांव पाटै उतरग्यो आग में सगळां रा घर बळग्या। पण डोकरी रो घर बंचग्यो। लोगां पूछ्यो- डोकरड़ी इयां-किंयां? के टूणा-कामण करया? डोकरी बोली- म्हनै तो सीतळा माता तूठ्या है। म्हैं तो बासीड़ा धोकूं। बासी खाऊं। सीतळा माता रा बरत करूं। म्हारी अर म्हारै परवार री रिछपाळ सेडळ माता करी है। छेकड़ में कथा कैवण वाळी बोलै- 'हे सेडळ माता! हे सीतळा माता!! जियां डोकरी नै तूठी, बिंयां ई सगळां नै तूठी!'

म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी

म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी
-ओम पुरोहित 'कागद'कानाबाती- 9414380571
फागण बजै मदन-मास। कामदेव रो धरती पर वास। बसंत पंचमी सूं सरूआत। भळै कामदेव अर रति रा करतब। लोग-लुगायां रै मन पर धणियाप। सुरसत तजै रसना। आय बिराजै कामदेव अर रति। लोग-लुगायां री बूरीज्योड़ी काम-चेतना कोठै सूं होटै आवै। मोट्यार इण भड़ास नै डफ री ताल अर धमाळ में काढै। छोरै नै छोरी यानी मै'री बणावै। मै'री भेळा नाचै। फीटा बोलै। फीटा गावै। भाठां सूं खेलै। गई रात तांईं माल्ला ऊंचावै। छैल कबड्डी खेलै। 'हाड़ मिरकली हड़ियो चोर, हड़ियै री मां नै लेयग्या चोर' रमै। गधै-गधड़ी री सवारी करै। भोजायां साथै रिगळ करै। भांत-भांत सूं मन री हबडास काढै। लुगायां पण लारै क्यूं रैवै। देवर-भोजायां में कोरड़ा, लट्ठ, डोलची सूं फागण रमीजै।
मोट्यार आपरी दब्यो
ड़ी भावना धमाळां में काढै। धमाळ अर चंग री थाप माथै नाचता काढै। इणी भांत लुगायां लूर गाय'र मन री हबड़ास काढै। लूर राजस्थानी लोकगीत-निरत। फगत लुगायां रो। होळी माथै ई गाईजै। लूर मतलब मन री लहर। लूर गावै छोर्यां-छापर्यां, जवान-बू़ढी-डोकर्यां अर बीनण्यां। लूर सारू गांव सूं कीं अळगी जावै। गौरवैं भेळी हुवै। गोळ घेरियो बनावै। नाचै-गावै- 'खेत तो खड़ियोड़ो पड़ियो, धरती धान मांगै रे।' लुगायां चंग, खड़ताळ, खंजरी, थाळी-बेलण अर ताळी बजावै। एक जणी मिनख बणै। उणसूं सगळी लुगायां किलोळ्यां करै- 'धोती में लांग है तो घाघरै में नाड़ो रे, खदबद बोलै राबड़ी गायां में पाड़ो रे, जमानो बोदो रे, हां हां जमानो बोदो रे, अखन कंवारी ले भागो जवान जोधो रे।' कंवारी पण परणावण सावै छोर्यां गावै-

'ए मां काकीजी नै कैयी कै मनै चू़डलो मंगाइद्यै ए
म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी

ए मां भावज नै कैयी कै मनै रखड़ी मंगाइद्यै ए

म्हैं खेलण जास्यूं लूरड़ी।'

लूर खेलण सारू लुगायां दो दळ बणावै। एक दळ गांवतो-नाचतो दूजै दळ री लुगायां सा'मीं जावै। सा'मली लुगायां गांवती-नाचती उणरो पडूत्तर देवै। पैलड़्यां नै पाछी आपरै पाळै ढुकावै। उण घड़ी रै गीतां मांय बांकी-बावळी बातां। फीटा इसारा होवै- 'काजळियो काढूं तो म्हारै नैणां पाणी आवै रे, ओढणियो ओढूं तो कोई लारै पड़ जावै रे, बालम रांडापो, हां रे बालम रांडापो, रामजी हराम होग्यो रे बालम रांडापो।'
लूर रै खेल में सवाल-जवाब होवै। एक दळ बोलै- 'बाई ए आटी-डोरा-कांगसी, सीस गुंथावा जाय।' दूजो दळ ऊथळो देवै- 'सा'मा मिलग्या सायबा कोई छाती धड़का खाय।' दूजो सवाल- 'बाई ए गोरी ऊभी गोखड़ै कोई गज-गज लाम्बा केस।' ऊथळो- 'साजन फेरी दे गया सजी कर जोगी को भेष'
लूर रमती लुगायां नै गांव रा मोट्यार छाना-छाना देखै। सांवळा होटां, मूंछ पाटता मोट्यार सगळां सूं आगै। पण जे किणी लुगाई री निजर उण माथै पड़ ज्यावै तो मत पूछो! बा गत बणै उणरी कै कई साल बो तो नांव ई नीं ल्यै लूर रो।
लूर नै लूअर, लूवर, लूरड़ी, लोहर, लूमर अर लूम्बू भी कैवै। लूर लगोलग दोय हजार बरसां सूं धुर मध्य एशिया में गाईजै-नाचीजै। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, अर उजबेकिस्तान में लूर री गूंज। मध्य एशिया अर हिंदुकुश परबत रै ताळ सूं ओमान नदी नै लांघतां लूर ढूकी मेसोपोटामिया रै सुमेरियन नाचां में। पच्छम रा सम्राट मिहिरकुल अर भारत रा खिलजी सम्राट अल्लाउदीन खिलजी रै दरबार में भी लूर रा रंग बरसता। गिरासिया अर नागजाति इण री खेवणहार। अब जणां मायड़भासा राजस्थानी में ई बीखो तो लूर रै खूटण-टूटण-छूटण नै कुण ढाबै?

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