कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी

म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी
-ओम पुरोहित 'कागद'कानाबाती- 9414380571
फागण बजै मदन-मास। कामदेव रो धरती पर वास। बसंत पंचमी सूं सरूआत। भळै कामदेव अर रति रा करतब। लोग-लुगायां रै मन पर धणियाप। सुरसत तजै रसना। आय बिराजै कामदेव अर रति। लोग-लुगायां री बूरीज्योड़ी काम-चेतना कोठै सूं होटै आवै। मोट्यार इण भड़ास नै डफ री ताल अर धमाळ में काढै। छोरै नै छोरी यानी मै'री बणावै। मै'री भेळा नाचै। फीटा बोलै। फीटा गावै। भाठां सूं खेलै। गई रात तांईं माल्ला ऊंचावै। छैल कबड्डी खेलै। 'हाड़ मिरकली हड़ियो चोर, हड़ियै री मां नै लेयग्या चोर' रमै। गधै-गधड़ी री सवारी करै। भोजायां साथै रिगळ करै। भांत-भांत सूं मन री हबडास काढै। लुगायां पण लारै क्यूं रैवै। देवर-भोजायां में कोरड़ा, लट्ठ, डोलची सूं फागण रमीजै।
मोट्यार आपरी दब्यो
ड़ी भावना धमाळां में काढै। धमाळ अर चंग री थाप माथै नाचता काढै। इणी भांत लुगायां लूर गाय'र मन री हबड़ास काढै। लूर राजस्थानी लोकगीत-निरत। फगत लुगायां रो। होळी माथै ई गाईजै। लूर मतलब मन री लहर। लूर गावै छोर्यां-छापर्यां, जवान-बू़ढी-डोकर्यां अर बीनण्यां। लूर सारू गांव सूं कीं अळगी जावै। गौरवैं भेळी हुवै। गोळ घेरियो बनावै। नाचै-गावै- 'खेत तो खड़ियोड़ो पड़ियो, धरती धान मांगै रे।' लुगायां चंग, खड़ताळ, खंजरी, थाळी-बेलण अर ताळी बजावै। एक जणी मिनख बणै। उणसूं सगळी लुगायां किलोळ्यां करै- 'धोती में लांग है तो घाघरै में नाड़ो रे, खदबद बोलै राबड़ी गायां में पाड़ो रे, जमानो बोदो रे, हां हां जमानो बोदो रे, अखन कंवारी ले भागो जवान जोधो रे।' कंवारी पण परणावण सावै छोर्यां गावै-

'ए मां काकीजी नै कैयी कै मनै चू़डलो मंगाइद्यै ए
म्हैं रमण जास्यूं लूरड़ी

ए मां भावज नै कैयी कै मनै रखड़ी मंगाइद्यै ए

म्हैं खेलण जास्यूं लूरड़ी।'

लूर खेलण सारू लुगायां दो दळ बणावै। एक दळ गांवतो-नाचतो दूजै दळ री लुगायां सा'मीं जावै। सा'मली लुगायां गांवती-नाचती उणरो पडूत्तर देवै। पैलड़्यां नै पाछी आपरै पाळै ढुकावै। उण घड़ी रै गीतां मांय बांकी-बावळी बातां। फीटा इसारा होवै- 'काजळियो काढूं तो म्हारै नैणां पाणी आवै रे, ओढणियो ओढूं तो कोई लारै पड़ जावै रे, बालम रांडापो, हां रे बालम रांडापो, रामजी हराम होग्यो रे बालम रांडापो।'
लूर रै खेल में सवाल-जवाब होवै। एक दळ बोलै- 'बाई ए आटी-डोरा-कांगसी, सीस गुंथावा जाय।' दूजो दळ ऊथळो देवै- 'सा'मा मिलग्या सायबा कोई छाती धड़का खाय।' दूजो सवाल- 'बाई ए गोरी ऊभी गोखड़ै कोई गज-गज लाम्बा केस।' ऊथळो- 'साजन फेरी दे गया सजी कर जोगी को भेष'
लूर रमती लुगायां नै गांव रा मोट्यार छाना-छाना देखै। सांवळा होटां, मूंछ पाटता मोट्यार सगळां सूं आगै। पण जे किणी लुगाई री निजर उण माथै पड़ ज्यावै तो मत पूछो! बा गत बणै उणरी कै कई साल बो तो नांव ई नीं ल्यै लूर रो।
लूर नै लूअर, लूवर, लूरड़ी, लोहर, लूमर अर लूम्बू भी कैवै। लूर लगोलग दोय हजार बरसां सूं धुर मध्य एशिया में गाईजै-नाचीजै। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, अर उजबेकिस्तान में लूर री गूंज। मध्य एशिया अर हिंदुकुश परबत रै ताळ सूं ओमान नदी नै लांघतां लूर ढूकी मेसोपोटामिया रै सुमेरियन नाचां में। पच्छम रा सम्राट मिहिरकुल अर भारत रा खिलजी सम्राट अल्लाउदीन खिलजी रै दरबार में भी लूर रा रंग बरसता। गिरासिया अर नागजाति इण री खेवणहार। अब जणां मायड़भासा राजस्थानी में ई बीखो तो लूर रै खूटण-टूटण-छूटण नै कुण ढाबै?

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