कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

राजस्थानी गांव

सुरगां सूं भी सोवणा,

राजस्थानी गांव।

-ओम पुरोहित 'कागद'

खे़डा फोगां खेजड़ां, चोखा-चोखा नांव।
सुरगां सूं भी सोवणा, राजस्थानी गांव।।
राजस्थानी संस्कृति जूनी। जूनी पण जतनां ताण। जतन सांवठा। सगळां नै सिकार। सगळां रै मनभावणा। जतनां री रिछपाळ। संस्कृति नै अंगेजण री चावना-भावना अर ध्यावना। इणी मठौठ रै पांण, आज भी जींवता ऐ जूना ऐनांण। जूण रै हर खेतर में संस्कृति री सौरम। संस्कृति रा दीठाव। खानपान हुवै या रैवास। मिंदर-देवरा हुवै या मै'ल-मा'ळिया-झूंपड़ा। ढाणी-गांव हुवै या स्हैर-परगना। सगळां में सस्कृति रा चितराम। गांव रो नांव लेवतां ई इतिहास अंगड़ाई तोडतो लखावै। गांव रो बसाव इतिहासू। इतिहास पण नांव में। आओ, आपां जाणां गांव-स्हैर अर परगनां री थरपणा रो इतिहासू मनोविग्यान।
राजस्थान रा गांवां रै नामकरण में इतिहास रो घणो महत्त। घणी'क बार धरा-धणी रै नांव सूं गांव बसै। कई बार किणी कुटुम्ब-धणी रै नांव सूं बसी ढाणी ई गांव बणै। गांव-रिछपाळ रै नांव सूं भी गांवां रा नांव थरपीजै। ठाडा-ठावा वीर, रणबंका, जूझार, राजा अर राणी रै नांव सूं गांव। चाकर-ठाकर, दास-दासी, गुमासता, पगेरू, जीवजंत, चारण, देई-देवता, भोमिया, गढ़, तळाब अर रूंखां रा नांव सूं भी गांवां रा नांव थरपीजै। पण इण थरपणा रै लारै इतिहास री औळ रैवै।
राजस्थान में ढाणी बसावण री जूनी परापरी। गांव अळगो हुवण रै कारण खेतीखड़ लोग आपरै खेत में ढाणी बसावता। धीरै-धीरै कड़ूम्बो बधतो। लाणो-बाणो पसरतो। बधतां-बधतां ढाणी गांव बण ज्यांवती। ढाणी रो नांव धरा-धणी रै नांव सूं या चलबल आळै बडेरै रै नांव सूं राखीजतो। जियां बलवीरसिंह री ढाणी, नंदराम री ढाणी, सवाईसिंह री ढाणी, खेतैआळी ढाणी। एक ई जात रै लोगां री भेळप में बसायोडी ढाणी रो नांव जातिसूचक होंवतो। जियां कै बामणां री ढाणी, खातियां री ढाणी, सारणां री ढाणी, चारणां री ढाणी, खोथांवाळी ढाणी, अराइयां वाळी ढाणी। ढाणी सूं गांव बण्यां पछै ढाणी सबद हट जावतो। जियां कै भगवानसर, धांधूसर, सुरजनसर, शेरगढ़, बामणवाळी आद। गांव रै नांव री थरपणां में भी इतिहास। जको गांव किणी तळाब रै कांठै बसै, उणरै नांव रै छेकड़ में 'सर' लागै। 'सर' आपणी भासा में तळाव रो पर्याय है। आप गीत सुण्यो हुसी- 'सरवर पाणीड़ै नै जाऊं सा, निजर लग जाय।'
इतिहास पुरख या पूजनीक, जूझार, रणबंका, राजा, राणी, आद रै नांव सूं गांव बसाइजतो तो पैली बठै तळाव खुदाइजतो। पछै थरपीजतो गांव रो नांव। बीकानेर रै राजा लूणकरणसिंह रै नांव माथै लूणकरणसर। कवि-चाकर राजिया रै नांव सूं राजियासर। राव अरजनसिंह रै नांव सूं अरजनसर। राणी मळकी रै नांव सूं मळकीसर। राणी केसरदे रै नांव माथै केसरदेसर। निहालदे रै नांव सूं निहालदेसर। कोडमदे रै नांव सूं कोडमदेसर।
इयां ई आपणै औळै-दौळै देखां तो लाधसी- टीडियासर, भोजासर, लिखमीसर, पाबूसर, सालासर, तोळियासर, करणीसर। देई-देवतावां अर संतां रै नांव माथै- गुगाणो, गोरखाणो, गुगामे़डी, बालाजी, नागणेची, रामदेवरा, पाबूसर। रूंखां रै नांव माथै- फोगां, खेजड़ां, खेजड़ली, कीकरवाळी, नीमलो, जाळवाळी, कैरांवाळी, रोहिड़ांवाळी। पसु-पांख्यां रै नांव माथै- बुगलांवाळी, हिरणांवाळी, मिरगलो।
आपां माथापच्ची करां तो आ फड़द घणी लाम्बी बण सकै। आप जागरुक पाठक हो। आ खेचळ करो देखांण। पसु-पांखी, रूंख, देई-देवता, जात, रणबंकां, जुझारुआं आद रै नांव सूं थरपीज्योडा गांवां री न्यारी-निरवाळी फड़द बणाओ।
गांव रै नांव री थरपणां में इतिहास री एक पुट और देखो। जकै गांव-कस्बै-स्हैर मांय गढ़ बण्योडा हुवै, उणरै नांव रै छेकड़ में 'गढ़' लागै। गढ़ कैवां किलै नै। जियां कै जूनागढ़, लालगढ़, अनूपगढ़, फतेहगढ़, कुम्भलगढ़, सूरतगढ़, सूरजगढ़, मेहरानगढ़, किशनगढ़, चितोडगढ़ अर अजीतगढ़। जका गांव कीं बड़ा हुवै, यानी स्हैर सरीखा, उण गांव रै छेकड़ में 'पुर' या 'नगर' लागै। करणपुर, केसरीसिंहपुर, पदमपुर, बीकमपुर, गंगापुर, सादुलपुर, श्रीगंगानगर इणरा उदाहरण है।

आज रो औखांणो
ऊजड़ खे़डा भल बसै, निरधनियां धन होय।
गियो न जोबन बावड़ै, मूवो न जीवै कोय।।
उजड़ा हुआ गांव फिर बस जाता है, निर्धन के पास धन होना भी सम्भव है, लेकिन बीता हुआ यौवन लौट कर नहीं आता और न ही मरा हुआ इंसान फिर से जीवित होता। उम्र का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हर क्षण अमूल्य है।

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