कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

बोल्यां है मिणियां,

बोल्यां है मिणियां,
माळा राजस्थानी
-ओम पुरोहित 'कागद'
नदियां रै जळ सूं ई समंदर भरीजै। भरियो समंदर ई सोवणो लागै। बिना जळ तो समंदर एक दरड़ो। मोटो समंदर बो ईज। जकै में घणी नदियां मिलै। भासा भी समंदर होवै। बोलियां होवै नदियां। बा ईज भासा लूंठी जकी में घणी बोलियां। आ बात बतावै भासा विग्यानी। आपरी निजर है कीं भासा तणी बोलियां। उड़िया-24, बंगाली-15, पंजाबी-29, गुजराती-27, नेपाली-6, तमिल-22, तेलगु-36, कन्नड़-32, मलयालम-14, मराठी-65, कोंकणी-16, हिन्दी-43, अंग्रेजी-57 अर आपणी राजस्थानी में 73 बोलियां। अब बताओ दिखांण कुणसी भासा लूंठी? किणी भासा रो सबदकोस बोलियां रै सबदां री भेळप सूं सामरथवान बणै। जकी भासा में बोलियां कम। उणरो सबदकोस छोटो। आपणी मायड़भासा राजस्थानी रो सबदकोस दुनिया रो सै सूं मोटो। राजस्थानी भासा में एक एक सबद रा 500-500 पर्यायवाची। एक सबद रा इत्ता पर्यायवाची किणी भासा में नीं लाधै। भासा विग्यानी जार्ज ग्रियर्सन 'लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' में, डॉ. एल.पी. टेस्सीटोरी 'इंडियन एंटीक्यूवेरी' में अर डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी 'पुराणी राजस्थानी' में राजस्थानी नै दुनिया में सैसूं बेसी ठरकै आळी भासा बताई है।
हरेक भासा में बोलियां होवै। एक भासा मुख सुख सूं बोलीजै। एक भासा बोली री ओळ में बोलीजै। पण अकादमिक भासा रो ठरको न्यारो। हिन्दी तो घणा ई लोग बोलै। हरेक री हिन्दी न्यारी-न्यारी। पण भणाई में पूरै देस री एक ई हिन्दी। जकी में पोथ्यां छपै। बा हिन्दी एक। आपणै पड़ोसी पंजाब नै ल्यो। पंजाब री राजभासा पंजाबी। पंजाबी में पटियाळवी, दोआबी, होशियारपुरी, मलवई, मांझी, निहंगी, भटियाणी, पोवाधि, राठी, गुरमुखी, सरायकी आद 29 बोलियां। पण बठै जका राजकाज रा दफ्तरी हुकम, अखबार-पत्रिकावां अर भणाई री पोथ्यां निकळै, बै एक इज भासा में निकळै। बा है मानक पंजाबी। राज रा हुकम सूं ई किणी भासा रो मानक थरपीजै। इकसार कायदो बणै। जकै दिन आपणी राजस्थानी राजकाज री भासा थरपीजसी। उण दिन मानक राजस्थानी भी थरपीजसी। सगळै दफ्तरां, अखबारां, पत्रिकावां अर पोसाळां री पोथ्यां में एक ई भासा चालसी। बा होसी मानक राजस्थानी। जद तक ओ काम नीं होवै, बठै तक लोग आप-आपरी बोली में लिखै। इण में हरज भी नीं है। अब देखो, पंजाब रै हर अंचल में न्यारी-न्यारी बोलियां बोलीजै। पण विधानसभा, कोट-कचे़ड्यां, पोसाळां, जगत-पोसाळां अर अखबार-पत्रिकावां में राज री थरपियोड़ी मानक पंजाबी ई बपराइजै। पंजाब रै भी हरेक लेखक री भासा में उणरै अंचल री महक भी आयबो करै। आवणी जरूरी है। इणसूं भासा रो फुटरापो बधै। आपणै राजस्थानी लेखकां री भासा में भी आपरै अंचल रो लहजो झलकबो करै। आपां हरेक अंचल री भासा रो सवाद चाखां। तो ठाठ ई न्यारा। बगीचै री सोभा भांत-भंतीला फूलां सूं ई बध्या करै। एक ई रंग-सुगंध रा फूलां रो किस्यो मजो।
राजस्थानी में भी मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाती, वागड़ी, हाड़ोती, भीली, ब्रज अर मारवाड़ी समेत 73 बोलियां। आं सगळी बोलियां नै भेळ'र ई राजस्थानी भासा बणै। जकी भासा में जित्ती बेसी बोलियां, बित्ता ई क्रिया रूप। क्रिया विशेषण, कारक। विशेषण पर्यायवाची होया करै। हिन्दी में 'है' होवै, पण राजस्थानी में 'है', 'सै', 'छै', 'छ' आद कई रूप। हिन्दी में आपां कैवां- आपका। पण राजस्थानी में आपरो, आपनो, आपजो अर आपगो मिलै। राजस्थानी में कई जग्यां 'स' नै 'ह' बोलै। जियां साग नै हाग। सूतळी नै हूतळी। सीसी नै हीही। सासू नै हाहू। सात नै हात। अर सीरै नै हीरो। कोलायत सूं जैसलमेर तक री पट्टी नै मगरो कैवै। ल्यो मगरै री बात बताऊं। दोय मगरेची बंतळ करै-
-होनिया, हुणै है कांई?
-हां, हूणूं हूं नीं, हैंग बातां।
-होनिया यार, हाहू नै हौ बोरी हक्कर होमवार नै भेजणी है। बोरी हीड़ दे नीं। लै हूवो-हूतळी।
-हूं बी हरहूं रै तेल री हो हीही हूहरै नै भेजणी है। म्हनै तो ओहाण ई नीं।
अर अबार सुणो जनकवि कन्हैयालालजी सेठिया री कविता री ओळ्यां-
मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, वागड़ी, हाड़ोती मरुवाणी,
सगळां स्यूं रळ बणी जकी बा, भासा राजस्थानी।
रवै भरतपुर अलवर अलघा, आ सोचो यांताणी!
हिन्दी री मा सखी बिरज री, भासा राजस्थानी।
जनपद री बोल्यां है मिणियां, माळा राजस्थानी।
आज रो औखांणोबोलै ज्यांरा बिकै बूमड़ा*, नींतर जवार पड़ी खोखा खाय।
बोले जिसके बिकें बूमड़े, नहीं तो ज्वार पड़ी रह जाय।
वाचाल व्यक्ति केवल अपनी जीभ के जोर पर बेइंतहा लाभ उठाता है, वरना चुप रहने वालों का अच्छा माल भी बिन बिका पड़ा रहता है।
*अनाज के ऊपर वाले छिलके।

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