कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

बासीड़ा

म्हारै टाबरियां नै ठंडा

झोला देई म्हारी माय

-ओम पुरोहित 'कागद'
राजस्थान में बारै म्हीना त्योहार। रुत रा त्योहार पण लूंठा अनै अरथाऊ। गरमी, सरदी, बसंत अर बरसाळै री मैमा निराळी। बरतां रा खान-पान ई रुत मुजब। रुत बदळण अर दूजी रुत आवण रै बिचाळै रा बरत। नूंई रुत नै सै'न करण रा बरत। आखातीज, सकरांत, निरजळा इग्यारस, सावणी तीज, भादू़डै री तीज अर बासीड़ा बी ऐड़ा ई त्योहार। राजस्थान सारू बासीड़ां री मैमा मोकळी। आखो राजस्थान धोकै। सीतळा-बासीड़ा-सेडळ रूपा काळका री ध्यावना करै।
सीतळा अष्टमी ई बासीड़ां रो त्योहार। ओ त्योहार चैत रै अंधार पख री आठ्यूं नै आवै। पण सोरफ सारू होळी रै बाद पैलै सोमवार का बिस्पतवार नै भी धोकण री छूट। नवदुर्गा में सूं मा 'कालिरात्रि' यानी काळका माता नै ई लोक में सीतळा माता कैवै। मा काळका रै गधै री सुवारी। उणी भांत सीतळा माता री सुवारी भी गधो। मा काळका पड़तख काळ रूप। बिरमा-बिस्णू अर महेश ई डरै। भूत-प्रेत, रोग-बिजोग, काळ-अकाळ, देव-मिनख अर राखस रो तो डोळ ई कांईं
काळका माता रै सीतळा माता रूप री भी आ ई मैमा। इणी कारण राजस्थान्यां री मानता कै सीतळा माता नै धोक्यां अबखो नीं पड़ै। इण दिन बरत राखै। मानता कै बरत करणियां रै कुटुम्ब-कबीलै में तातो ताव, पीळियो, हाडतोड़ बुखार, बांसणियां-दुखणिया, आंख रोग, गुरांदणी, बड़ी माता, छोटी माता, ऊपरलै रा रोग अर भूत-प्रेत री मार नीं हुवै।
बासीड़ां सूं पैलै दिन भोग बणाईजै। मीठा चावळ, खीर, भांत-भांत री पू़ड्यां, छिलका मूंग री दाळ, कढ़ी, राबड़ी, कांजीबड़ा, दई बड़ा, सांगरी, फोफळिया, कैरिया-कूमटा, भे, मोठोडी, गुवार फळी रा साग, मूंग-मोठ-बाजरी रो रंधीण, दई, पापड़, मोठ-बाजरी रा बी'रा भोग सारू त्यार करीजै। बासीड़ां रै दिन रसोई में घर-धिरयाणी घी सूं हाथ रा छापा छापै। छापां माथै रोळी-चावळ चिरचै। पुहुप चढ़ावै। दीयो चेतन करै। धूप-बत्ती करै। हाथा जोड़ी कर सीतळा माता सूं अरज करै-

'म्हारै टाबरियां नै ठंडा झोला देई म्हारी माय।
म्हारै टाबरियां रा सगळा जतन पुराई म्हारी माय।।'

गीत रै बीच में घर रै सगळै टाबरां रा नाम ई लेवै। झांझरकै ई बास-गळी री लुगायां भेळी होवै। थाळी में पूजा रो समान- रोळी, मोळी, कूं-कूं, चावळ, काजळ, टिक्की, होळका री राख री सात पिंडोळ्यां, जळ रो लोटियो, धूप-अगरबत्ती अर पुस्प सजावै। भोग सारू बणाई बासी रसोई थाळी में सजावै। घर रै सगळां रा हाथ लगुवावै। हाथां उंचाया गीत गांवत्या सीतळा माता रै मिंदर पूगै। पूजा करै। भोग लगावै। पाछी घरां आय पिंडोळ्यां पळींडै थरपै। घर रा सगळा बठै धोक लगावै। पूजा रो जळ आंख्यां लगावै। लुगायां चौक माथै भी पूजै। मोठ-बाजरी रै बी'रां माथै रिपियो राख सासू नै भेंटै। पगां लागै। सासू आसीस देवै- 'दूधां न्हावो-पूतां फळो।' पछै सगळी लुगायां सीतळा माता री कथा सुणै। जीमै अर बरत खोलै।

शीतळा माता री कथा
राम जी भला दिन देवै तो... एक ही बूढळी। ठंडो ई खांवती, ठंडो ई पींवती। ठंडो ई पै'रती अर ठंडो ई बोलती। बासी खांवती। बासीड़ा धोकती। पूरो परवार निरोगो। एक दिन गांव पाटै उतरग्यो आग में सगळां रा घर बळग्या। पण डोकरी रो घर बंचग्यो। लोगां पूछ्यो- डोकरड़ी इयां-किंयां? के टूणा-कामण करया? डोकरी बोली- म्हनै तो सीतळा माता तूठ्या है। म्हैं तो बासीड़ा धोकूं। बासी खाऊं। सीतळा माता रा बरत करूं। म्हारी अर म्हारै परवार री रिछपाळ सेडळ माता करी है। छेकड़ में कथा कैवण वाळी बोलै- 'हे सेडळ माता! हे सीतळा माता!! जियां डोकरी नै तूठी, बिंयां ई सगळां नै तूठी!'

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