कागद राजस्थानी

मंगलवार, 31 मई 2011

सवाल आपणा अजब-गजब

सवाल आपणा अजब-गजब-ओम पुरोहित 'कागद'
जठै जकी भासा में भणाई हुवै बठै उणीज भासा में ग्यान-विग्यान अर गणित हुवै। कोई भासा खुरण ढूकै तो उणरो व्याकरण, ग्यान-विग्यान अर गणित भी सांवटीजण लागै। आपणै देस में संस्कृत भासा बौवार में नीं रैयी तो वैदिक गणित अर ज्योतिर्विग्यान भी अदीठ हुयग्या। आजादी सूं पै'ली राजस्थान री रियासतां में भणाई राजस्थानी भासा में होवती। उण घड़ी गणित, विग्यान, सामाजिक ग्यान, इतिहास आद सगळा राजस्थानी में होवता। अंग्रेज आया तो भणाई में पच्छम री रेळपेळ होयगी। आजादी पछै तो जाबक ई बदळाव आयग्यो। पण बूढै-बडेरां री जुबान माथै हाल मुहारणी-पावड़ा तिरै। टाबरां नै रमावता-बिलमावता ऐ डैण आज भी बिसरी बातां सुणावै। टाबरां नै बुलावै- 'पन्दरै ऐकै पन्दरै, पन्दरै दूणा तीस। तिंयाड़ा-पैंताळा, चौकां साठ। पांज पिचेतर, छक्कड़ा नब्बै। सत्त पिचड़ोत्तर, अट्ठां बीसे। नब्बड़ पैंतीसे, पंदरा दहाया डोढ सै!'
गिणती-पहाड़ां री राग सुणनजोग हुवै। राग में गायोडा पहाड़ा चटकै ई कंठां हुवै। टाबरां सूं कटवां पहाड़ा पूछै, 'बताओ किसै पहाड़ै में तीनूं भाई एकसा?' टाबरां री बोली बंद। तो खुद ई बतावै डोकरो, सैंतीस रै पहाड़ै में एका, दूवा अर तीया एक सा भाई हुवै। सैंतीस तीया एक सौ इग्यारा (१११), सैंतीस छक्का दोय सौ बाईस (२२२) अर सैंतीस नौका तीन सौ तैंतीस (३३३)। पण अब कुण याद करै सैंतीस तक रा पहाड़ा। पाव, आधो, पूणो, सवायो, डोढो, ढूंचो तक रा पहाड़ां री रागां न्यारी-निरवाळी। राजस्थान री पौसाळां सूं राजस्थानी भासा अळगी होयी तो ऐ रागां भी जावती रैयी। अब री भणाई जूना लोगां रै अर जूनी पढाई आज रै टाबरां रै भेजै को ढूकै नीं। राजस्थानी रो गणित तो और भी निरवाळो। कटवां पहाड़ा अर कटवां गिणती रा जोड। अल-जबर, अकल-चरख अर लीलावती रा सवाल। अल-जबर में बीज गणित रा सवाल हुवै। अल-जबर स्यात अंग्रेजी आळो 'एलजेबरा' ई है। अल-जबर रा दोय सवाल आपरी निजर-
()
आधी रोकड़ ब्याज में, चौथाई बाजार।
हंसा-पांती सौळवां, पोतै पांच हजार।।
(२)
आधी पड़ी कीचड़ में, नवों भाग सींवार।
बावन गज बारणै पड़ी, कैवो सिल्ला विस्तार।।
इणी भांत अकल-चरख रा सवाल है। आं सवालां नै सुणतां अकल चरखै चढ़ जावै। ऊथळो ढूंढण में भोडकी भुंवाळी खावण लागै। दोय सवाल देखो-
()
एक लुगाई पांच सेर सूत लेय'र हाट माथै गई। परचूणियै सूं बोली, म्हनै पांच सेर सूत सट्टै पांच सेर परचूण इण भांत देयद्यो-
सूत सवाई सूंठ दे, आधी दे अजवाण।
घिरत बराबर तोल दे, दूणो दे मीठाण।।
()
एकर री बात। सौदागर री नार दरपण में मूंढो देख हार पैर्यो। हार दाय नीं आयो। उण हार नै तोड बगायो। हार में आधा अटक्या। सेज में पन्दरा पटक्या। गोदी में रैया चाळीस। पल्लै में रैया सवाया। तीजो भाग पड़्यो भू पर। हिस्सा नौ का पता न लाग्या। गणित सार में जे हो चतर तो बताओ, हा कित्ता मोती?
अकल-चरख रा सवाल तो म्हे अंवेर लिया। ऊथळा पण थे सोधो। कीं भोडकी पाठकां नै भी घुमावणी चाईजै। लीलावती रा कीं सवाल भी अंवेरण लागर्या हां। उडीक करो। आपरै औळै-दोळै जे अकल-चरख, अल-जबरा अर लीलावती रा सवाल लाधै तो अंवेरो अर भेजो।
आओ, छेकड़ में गणित री एक आडी बांचां-
एक घरां घणा बटाऊ आया। मनवार होयी। बेळू, मतलब रात रा जीमण पछै पोढण री बेळ्यां आई। मांचा कमती पड़ग्या। दोय-दोय बटाऊ भेळा सोवै तो एक मांचो बधै। न्यारा-न्यारा सोवै तो एक बटाऊ बधै। बताओ कित्ता मांचा अर कित्ता बटाऊ?
ल्यो, आडी रो पडूत्तर तो बांच ई ल्यो- तीन हा मांचा अर च्यार हा बटाऊ।
आज रो औखांणोकीड़ी संचै तीतर खाय, पापी रो धन परळै जाय।
चींटी संचय करे, तीतर खाए, पापी का धन यों बह जाए।
पापी का धन बुरे कामों ही खर्च होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...