कागद राजस्थानी

रविवार, 18 सितंबर 2011

"राजस्थानी भाषा समृद्ध : श्री औंकार सिंह लखावत

"राजस्थानी भाषा समृद्ध : संविधान की आठवीं सूची में जोडें" राज्य सभा में पैली आळा सांसद श्री औंकार सिंह लखावत रो डंको


श्री औंकार सिंह लखावत-मैं आज एक विशेष उल्लेख के द्वारा उन आठ करोड़ लोगों की भाशा की ओर जो संविधान की आठवीं अनुसूची में अभी तक शामिल नहीं हुई है,ऐसी राजस्थानी भाषा को को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने के नाते एक उल्लेख करना चाहता हूं । जिस देश का साहित्य यदि उज्ज्वल और दैदीप्यमान न हो तो एक साहित्यकार ने कहा है-"दीपै वांरा देश,ज्यांरा साहित जगमगै ।"
जिस देश का साहित्य जगमगाता हो,वह देश अपने आप में जगमगाता है ,और इस लिए संस्कृति की जो मौलिक अभिव्यक्ति है,उसकी भाषा संवाहक होती है । बिना खुद की जुबान के राष्ट्र ,प्रदेश या व्यक्ति के स्वाभिमान का होना बडा़ असम्भव काम है और इस लिए मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि, भारतीय भाषाओं के शब्द भंडार से हिन्दी बहुत समृद्ध हुई है । दुर्भाग्यवश पांच दशक बीत जाने के बाद स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का वर्ष आ गया फ़िर भी इन पच्चास वर्षों के अन्दर जिस राजस्थानी भाषा के अन्दर आज़ादी के गीत लिखे गए थे,जिन गीतों को, जिस साहित्य को सुन कर लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए,आज उस राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अन्दर मान्यता नहीं मिली । इस कारण से राजस्थानी साहित्य बहुत उपेक्षित हो रहा है । हम मीरा के गीत ,उसके पद को ठीक प्रकार से नहीं समझ पा रहे है । नरहरि दास,बांकीदास,चंदरबरदाई,राजिया के दूहे, और पृथ्वीराज की कविताओं का हम अभी तक इंतजार कर रहे हैं । एक विजयदान देथा ज़रूर हैं, जिनकी कहानियां सुन कर हम देश-देशान्तर में गौरव का अनुभव करते हैं । इस लिए मैं आप से निवेदन करना चाहता हूं कि, चाहे राजस्थान हो,चाहे महाराष्ट्र हो, चाहे पश्चिम बंगाल हो, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश, असम में बसे हुए लगभग 8  करोड़ के आसपास राजस्थानी भाषा का उपयोग करने वाले लोग हैं, जिनकी मातृभाषा आज संविधान की आठवीं सूची का इंतजार कर रही है । मैं निवेदन करना चाहता हूं कि राजस्थान वासियों का और राजस्थान की भाषा बोलने वालने वालों का हक छीनने का कोई औचित्य प्रकट नहीं होता । राजस्थानी भाषा का जहां तक सवाल है, इसका अस्तित्व आठवीं शताब्दी में आया, और इस में लिखे हुए ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं । मैं लगभग दो लाख किलोमीटर इस देश में घूमां हूं ।मैंने लगभग साढे़ चार हज़ार ऐसी पांडुलिपियां एकत्रित की हैं , जिन में राजस्थानी के जैन साहित्य से ले कर वीरगाथा काल का साहित्य उपलब्ध हैं ।

राजस्थानी को मान्यता से हिन्दी समृद्ध होगी

हिन्दी साहित्य का आदिकाल चंदरवरदाई से प्राम्भ होता है । आज वह साहित्य , वह गाथा अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रही है। कर्नल टोड से ले कर ग्रियर्सन, टैस्सेटोरी, ठाकुर रविन्द्रनाथ टैगौर, मदन मोहन मालवीय, सुनीति कुमार चाटुर्ज्या, के.एम. मुंशी,भोलानाथ तिवारी ने भी राजस्थानी भाषा की समृद्धि की सराहना की है । एक भाषा के लिए चार तत्वों की बात कही गई है जिसको आठवीं अनुसूची में जोडा़ जा सकता है । वह भाषा है क्या ? उसके लिए सब से पहले आवश्यक है शब्दकोश । राजस्थानी में 15 से अधिक शब्दकोश हैं ।  
पद्मश्री सीताराम लालस ने जो शब्दकोश लिखा उसके सात वोल्यूम हैं , सात हज़ार पृष्ठ हैं और तीन लाख से अधिक उस के अन्दर शब्द हैं । जबकि हमारे देश की किसी भी भाषा में इस से कम शब्द हैं ।

मै चुनौती के साथ इस सदन में कहता हूं कि दुनिया की सारी भाषाओं का इतिहास उठा कर देख लें, राजस्थानी के जितने शब्द हैं , जितना यहां का शब्द्कोश है, किसी भाषा के अन्दर नहीं है । यदि यह तीन लाख वाला शब्दकोश आठवीं अनुसूची में जाएगा तो हमारी हिन्दी उस से समृद्ध होगी ।


एक दूसरा निवेदन करना चाहता हूं कि,हमारे यहां जो विदेषी भाषाएं हैं, उन विदेशी भाषाओं का भी मैंने सबका अध्ययन किया समालोचनात्मक दृष्टि से ,तुलनात्मक दृष्टि से किया है । मुझे दुनिया की किसी भी भाषा का इस से बडा़ शब्दकोश आज तक नहीं मिला । जहां तक व्याकरण का प्रश्न है, राजस्थानी में व्याकरण की बहुतायत है ।राजस्थानी भाषा में व्याकरण 14 वीं शताब्दी में प्राम्भ हो गया था । जर्मन के विद्वान कैलाग ने राजस्थानी की व्याकरण लिखी ।डाक्टर टैस्सीटोरी ने 1916 में राजस्थानी व्याकरण लिखी । डा. सुनीति कुमार चटुर्ज्या ने 1947 मे  राजस्थानी व्याकरण लिखी और शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बहल ने 1980 मे राजस्थानी की व्याकरण लिखी !

लिपि का जहां तक सवाल है,आज भी मुडि़या लिपि और महाजनी लिपि राजस्थानी के लिखने के लिए है लेकिन हम ने देवनागरी को अपनाया है । हिन्दे,संस्कृत,मराठी,कौंकणीं, और नेपाली को भी देवनागरी लिपि में लिखा जाता है ।
राजस्थानी के लिखने के सम्बन्ध मेंलिपि भी है । समृद्ध साहित्य का जहां तक सवाल है, वीरगाथा काल का साहित्य,भक्ति काल का साहित्य,शृंगार का साहित्य और नीति माहित्य के अन्दर भंडार हैं हमारे पास ।  
मैं निवेदन करना चाहता हूं कि सिंधी को जब मान्यता मिले थी तो उसके बोलने वाले 20 लाख लोग थे । नेपाली को जब मान्यता मिली तो उसके बोलने वाले 15 लाख लोग थे । कौंकणीं जब मान्यता मिली तो उसके बोलने वाले उस समय 11 साढे़ 11 लाख लोग थे । राजस्थानी के 8 करोड़ बोलने वाले लोग हैं । मैं आपकी मार्फ़त निवेदन करना चाहता हूं कि बोलियों का जहां तक सवाल है  तमिल में 22 बोलियां ,तेलगू में 36, कन्नड़ में 32, मलयालम में 14, मराठी में 65 कौंकणीं में 16, उडिया में 24, बंगाली में 15, हिन्दी में 43, पंजाबी में 29, गुजराती में 25 और राजस्थानी में 73 बोलियां हैं । भाषा की ड्रुष्टि से हम सब से ठीक हैं ।
श्रीमती इंदिरा गांधी के सामने जब वे प्रधानमंत्री थीं ,यह प्रश्न आया । श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा,मैं उनको कोट कर रहा हूं -जब राजस्थानी के लोगों ने कहा कि आप आशीर्वाद दीजिए तो श्रीमती गांधी ने कहा-" राजस्थानी भाषा को प्रोत्साहन दिया जाए। इस में आशीर्वाद की क्या बात है ? प्रोत्साहन के पक्ष में मैं खुद हूं । प्रोत्साहन तो मिलना ही चाहिए ।" यह बात 24 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी ने कही । बात आई श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के सामने ,जो आज प्रधानमंत्री हो गए हैं , तो उन्होनें कहा-" राजस्थानी एक बहुत समृद्ध भाषा है,जिस से देश प्रेम की बात सीखने को मिलती है । इसको संविधान की मान्यता मिलती है तो हिन्दी को इस से कोई नुक्सान नहीं होगा, परन्तु राजस्थानी के विकास से पूरे विश्व साहित्य में हिन्दी को विस्तार मिलेगा । मैं मन से चाहता हूं कि राजस्थानी को संविधान में मान्यता मिले । सिंधी भाषा को जब मान्यता का प्रश्न आया तो मैंने राज्य सभा में उसकी जोरदार हिमायत की । मै आपको विश्वाश दिलाता हूं कि जब संसद में राजस्थानी  के संवैधानिक मान्यता का मामला आएगा तो मैं और मेरी पार्टी के लोग इसका पूरा समर्थन करेंगे ।"
श्री लाल कृष्ण आडवाणी  [ जो अब गृह मंत्री है ] ने 10अक्टूबर 1987 को एक साक्षात्कार में कहा था कि " मैं राजस्थानी भाषा के पक्ष में हूं ।------भविष्य में जब भी राजस्थानी का मुद्दा उठेगा तो मैं राजस्थानी भाषा के मामले में राजस्थानियों का पक्ष लूंगा ।"
इस लिए  मैं निवेदन करना चाहता हूं किम आज राजस्थान में आंदोलन हो रहा है । आज इसको आठवीं अनुसूची में जोड़ने  को ले कर लोगों का मन उद्वेलित हो रहा है । इस लिए इसको आठवीं अनुसूची में जोडा़ जाए-----

सरसुति रै   भंडार री  ,  बडी़ अपूरब बात ।
ज्यूं खरचै त्यूं त्यूं बढै,बिन खरचै घट जात ।।

[ राज्य सभा सांसद श्री औंकार सिंह लखावत  जी री हालिया छपी थकी पोथी " बोल सांसद बोल युग चारण बन कर बोल" सूं साभार }
प्रकाशक-तीर्थ पैलेस प्रकाशन, 125 हैलोज रोड , पुष्कर ,जिला अजमेर [राजस्थान]

पुस्तक-बोल सांसद बोल युग चारण बन कर बोल
प्रकाशक- तीर्थ पैलेस प्रकाशन, 125 हैलोज रोड , पुष्कर ,जिला अजमेर [राजस्थान]
पानां -  152
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