कागद राजस्थानी

बुधवार, 1 जून 2011

ढोली ढोल बजाओ,गैरिया गैर रमै

ढोली ढोल बजाओ,गैरिया गैर रमै

 -ओम पुरोहित 'कागद'

 रंग रूड़ो राजस्थान। चोगड़दै रंगां री रेळ-पेळ। रंग-रंगीलै तीज-तिंवारां री छोळ। तातै लोही री राती होळी रमण री रीत। मोट्यार रंगारा। धरा रंगीजै। सीळवत्यां हथळेवै सूं सीधी अगन री पीळी झाळां साम्ही। रंगां री ऊजळी कीरत। आ कीरत होळी सूं कमती कद!                  

बसंत पांच्यूं धरा रंगीजै। रूंखां-झाड़कां, बांठकां माथै कूंपळां फूटै। फोगड़ा पांगरै। चीणा अर कणक माथै होळा लागण ढूकै। हरिया पानका। लाल, पीळा, केसरिया, हिरमिच, बैंगणियां अर धोळा पुहुप। फागण रो बाजै बायरियो। फूल-पानका लहरियो करै। फागणियो फरफरावै। लोगड़ा कैवै- भगवान किरसण फाग रमै। आठ्यूं सूं लागै होळका। होळी रो डांडो रुपै। मोट्यार साम्भै डफ, झींझा, बांकिया, थाळी, झालर, घूघरा, चिमटा अर ढोल। चूनड़ी रा साफा। लेहरियो, मोलियो, पंचरंगी पेचा बांध आय ढूकै चौपाळां। डांडिया रमै। तरवारां भांजै। लट्ठ बजावै। झीणी-झीणी गुलाबी सर्दी पड़ै। धूणी चेतन करै। डफ ताता करै अर बजावै। भेळा होय गोळ में गावै-   'उठ मिल लै रे भरत भाई,
हर आयो रे, कै उठ मिल लै।'  

दूजै गोळ में सुणीजै- "
थारै तो कारण म्हैं मोहन हिरणी होई,
 होय हिरणी जंगळ सारो हेरयो रे।' '
ढोली ढोल बजाओ, गैरिया गैर रमै |                                

छोरयां आठ्यूं सूं ही गोबर रा बड़कूलिया बणावणां सरू करै। गोबर सूं शंख, तारा, झेरणो, गट्ट, चाँद, सूरज, पान, दिवलो, होळका री मूरत आद बणावै। होळी मंगळावण सूं पैली बड़कूलिया सूकै। आं री माळा बणावै। होळी रै दिनां बैनां भायां रै सिर सूं उंवारै। वारणा लेवै। भाई री लाम्बी उमर री कामना करै। आई उतार'र बड़कूलियां री माळा नै झळती होळी में न्हांखै। पून्यूं रै दिन होळी मंगळाइजै। इण दिन लोगड़ा छाणा, थेपड़ी, लकड़ी आद बळीतै री चौक में ढिगली करै। बड़कूलियां भेळीजै। ढिगली रै सूंऐ बिचाळै प्रहलाद रूपी खेजड़ी रो हरियो डाळो रोपीजै। पंडितजी मंगळावण रो मुहरत काढै। पूजा करै। बडेरो लांपो लगावै। होळी मंगळाइजै। कुंवारा मोट्यार इण प्रहलाद नै काढ भाजै। सुगनी झळ में सुगन देखै। झळ जिण दिस जावै उण दिस जमानो जबर बतावै। लोग-लुगाई होळी रै खीरां में पापड़, खीचिया, कणक रा सिट्टा सेकै। होळा करै। आं नै बारा म्हीनां साम्भै। मानता है कै ऐ पापड़-खीचिया टाबरां रो खुलखुलियो ठीक करै। कुंवारी छोरयां राख सूं पिंडोळ्यां बणावै। आं पिंडोळ्यां सूं सोळा दिन गवर पूजै।                

होळका मंगळावण रै दूजै दिन गैर रमीजै। इण दिन नै छारंडी, धुलंडी अर धूड़िया-फूसिया कैवै। लोग-लुगाई अर टाबर-बडेरा झांझरकै ई घरां सूं निकळै। हाथां में रंग-गुलाल, पिचकारी अर रंग री बोतलां। साथी-संगळी, भायेला-पापेला अर सग्गा सोई नै रंगै। टोळ रा टोळ बगै। धमाळां गावै। डफ बजावै। सूगला बोलै। मसखरियां करै। गळी-गळी में भाठां, डोलच्यां रा फटीड़ अर कोरड़ां रा सरड़ाट सुणीजै। देवर-भोजाई रंगण नै खसै। कादो मसळै। थोबड़ा ऐड़ा रंगीजै कै बेमाता ई नीं पिछाणै। गधे़डां चढै। मींगणां री माळा। खल्लां रा मौड़। डील माथै राख-धू़ड-कादो मसळै। मै'री नचावै। गैर रम्यां पछै भोजायां देवर अनै दूजां नै पैलड़ै दिन बणायोड़ा पकवान परोसै। कनाणा (बाड़मेर) री गैर, शेखावाटी री गींदड़, बीकाणै री अमरसिंघ हेड़ाऊ, मै'री री रम्मत अर हरसां-ब्यासां री होळी। भरतपुर री लट्ठमार होळी अर रसिया इणी दिन रंग में आवै।                  

हिरणाकुस री बैन होळका। होळका नै अगन सिनान रो वरदान। अगन सिनान सूं उणरो रूप निखरै। होळका रो भतीजो प्रहलाद बिस्णु रो भगत। हिरणाकुस बिस्णु नै मानै दुसमण। होळका प्रहलाद नै बाळ मारण री धारै। प्रहलाद नै गोदी में लेय'र अगन-सिनान करै। वरदान फुरै। होळका बळै। पण प्रहलाद बच जावै। इण री साख में होळी मंगळाइजै। हिरणाकुस री बैन होळका रो ब्याव राजस्थान रा ईलोजी साथै बसंत पांच्यूं नै तय। ईलोजी जान लेय'र ढूकै। होळका रै बळ मरण रो समचार मिलै। ईलोजी बगना हो जावै। गैलायां करै। भौमका जाय'र राख में लिटै। धूळ-कादो मसळै। लोगड़ा उण माथै पाणी फैंकै। गुलाल-कादो न्हाखै। ईलोजी बसंत पांच्यूं सूं पून्यूं तक गै'ला हुयोड़ा फिरै। छेकड़ हरीसरण होय देवता बणै। लोगां नै परचा देवै। एकर सीतळा माता वरदान देवै- ईलोजी रूसो मती ना, जिका थानै होळी रै दूजै दिन पूजैला, वांका कारज सरैला। बस उणी दिन सूं धुलंडी मनाईजै। इण दिन लोगड़ा ईलोजी दांई बगना होय गैलायां करता दोपारै तांईं गैर रमै। दोपारां पछै जाणकारां रै घरां राम रमी करण निसरै।

राजस्थानी भाषा-लूंठी भाषा

राजस्थानी भाषा-लूंठी भाषा

१.राजस्थानी भाषा १० करोड राजस्थानियों की भाषा है ।राजस्थानी भाषा बोलने वालों का छेतर र्राजस्थान ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत व विश्व के विभिन्न देशों तक फ़ैला हुआ इसका विस्त्रित छेतर है ।
२.राजस्थानी साहित्य १२ वीं शताब्दि से गद्य व पद्य में निरन्तर लिखा जा रहा है ।
३.१२ वीं शताब्दि से लिखे गये राजस्थानी साहित्य से सम्बन्धित लगभग ४ लाख हस्तलिखित ग्रन्थ रजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिस्ठान में तथा निजी संग्रहों मेंआज भी सुरक्शित हैं ।
४.इस भाषा का लोक सहित्य भी लोक्गीत ,लोकगाथा, लोककथा ,लोकोक्तियों,लोकनाट्य,कहावतों,मुहावरों एवम पहेलियों में सुरक्शित हैं जो विशाल परिमाण मॆ तथा काफ़ी स्म्रिध है । एसा स्म्रिध लोक सहित्य देश की किसी भी भाषा में नहीं है ।
५.राजस्थानी भाषा का शब्द्कोश ४ लाख शब्दों क है,जो विश्व की किसी भी भाषा के राजस्थानी भाषा से बडा है ,एसा व इतना विशाल शब्द्कोश और किसी भी भाषा का नहीं है।उदाहरणार्थ राजस्थानी भाषा में ऊंट शब्द के प्रयाय्वाची शब्द २०० से ज्यादा हैं ।
६.राजस्थानी भाषा में लगभग ५९ तरह के शब्द्कोश पांडुलिप्यों के रूप में सुरक्शित हैन पद्मश्री सीता राम लालस के प्रकाशित शब्दकोशों में लगभग २ लाख शब्द हैं।
७.राजस्थानी साहित्य का प्रारम्भिक लेखन यों तो १० वीं शताब्दि से आरम्भ होता है किन्तु स्वतंत्र एवम विधिवत साहित्य लेखन १२ वीं शताब्दि से मिलने लग्ता है।यह लेखन गद्य व पद्य दोनो में तथा इन दोनो के साहित्यिक रूप भी पद्य मॆं ६० से अधिक तो गद्य में ३० से अधिक विविध रूपों में प्राप्त होता है ।
८.राजस्थानी सहित्य क अपना काव्यशाश्त्र है ,कई तरह के लक्शण ग्रन्थ हैं।अपना छंद विधान,अपना अलंकार शाश्त्र है, भाषा विग्यान की अपनी विशेश्ता है,व्याकरण भी राजस्थानी की निजी विशेश्ताओं से युक्त है ।
९.इस भष में अनुवाद कार्य १७ वीं शताब्दि से होना आराम्भ हो गया था । संस्मरण जैसा आधुनिक लेखन भी १९ वीं शताब्दि में अन्य भाषाओं से पहले आराम्भ हो गया था ।
९.राजस्थानी भाषा में लगभग ४ लाख हस्त्लिखित ग्रन्थ विभिन्न ग्रन्थ भंडारों मे प्रकशन की प्रतीक्शा में पडे हैं। ये पाडुलिपियां हमारे पूर्वजों के संचित ग्यान कए कोश के रूप में है।
१०.इस प्रदेश की संस्क्रिति मानव सभ्यता के ऊषाकाल से अर्थात पाषाणकाल से उपलब्ध होती है जो काफ़ी वैविध्यपूर्ण,स्म्रिध,विस्त्रित एवम मानवीय मूल्यों व मर्यादाओं से औत-प्रौत है।
११.इस भाषा की लिपी भी देवनागरी है जो राष्ट्रभाषा हिन्दी की भी है।अत यह राष्ट्रीय एकता की द्रिस्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण है ।
{डा.देव कौठारी,अध्यक्श,राजस्थानी भाषा,सहित्य एवम संस्क्रिति अकादमी,बीकानेर[ अकादमी की पत्रिका "जागती जोत" ,जनवरी-
२००७, पेज -९२ से१०४}

मायड़ भाषा पेटै दोय पंचलड़ी

मायड़ भाषा पेटै दोय पंचलड़ी

-ओम पुरोहित 'कागद'

१. पंचलड़ी

आ मन री बात बता दादी।
कुण करग्यो घात बता दादी।।

भाषा थारी लेग्या लूंठा।
कुण देग्या मात बता दादी।।

दिन तो काट लियो अणबोल्यां।
कद कटसी रात बता दादी।

मामा है जद कंस समूळा।
कुण भरसी भात बता दादी।।

भींतां जब दुड़गी सगळी।
कठै टिकै छात बता दादी।।


२.पंचलड़ी

पूछो ना म्हे कितरा सोरा हां दादा।
निज भाषा बिना भोत दोरा हां दादा।।

कमावणो आप रो बतावणो दूजां रो।
परबस होयोड़ा ढिंढोरा हां दादा।।

अंतस में अळकत, है मोकळी बातां।
मनड़ै री मन में ई मोरां हां दादा।।

राज री भाषा अचपळी कूकर बोलां।
जूण अबोली सारी टोरां हां दादा।।

न्याव आडी भाषा ऊभी कूकर मांगां।
अन्याव आगै कद सैंजोरा हां दादा।।

मायड़ भाषा पेटै डांखळां सिक्सर

मायड़ भाषा पेटै डांखळां सिक्सर

-ओम पुरोहित"कागद"


डांखळा अंग्रेजी रै छंद लिमरिक रो उळथौ है !लिमरिक छंद नै राजस्थानी में आदरजोग मोहन जी आलोक डांखळा रूप में पै’लपोत ढाळ्यौ ! पछै तो गणपत-शक्ल्ति माथुर,विद्या सागर शर्मा,बजरंग सारस्वत,रामस्वरूप किसान,सत्यनारायण सोनी आद घणै ई लौगां लिख्या !म्हैं भी लिखूं ई हूं !
इण री खास बात आ हुवै कै ऐ ऐब्सोरड़ हुवै !आं मै तुक्क तो मिलै पण बेतुक्की हुवै ! हास्य री सांवठी विधा है डांखळा ! निहायत ई बेअरथी बात करीजै इण में !
भाई विनोद सारस्वत अर हनवंतसिंघ जी री मांग है कै कीं डांखळा मायड़ भाषा सारू भी लिखौ-सो ६ डांखळा मांड रेयौ हूं ! माफ़ी चाऊं कै इणां में कीं अरथ है:-

[१]

मायड़ भाषा बिना क्यांरी है जियारी ।
कोई पूछौ नीं आय’र हालत म्हारी ॥
               दूजा दळै है मूंग
               म्हारै बतावै गूंग
खोस’र नौकरियां मोकळी सरकारी ॥

[२]

दिल्ली-जयपुर भेजै अंग्रेजी में राज रा फ़रमान ।
म्हानै तो भाईडां कोनी ठीकसर हिंदी रो ई ग्यान ॥
                   जामां गूंगा ई
                     मरां गूंगा ई
ठाह नीं कद मिलसी मायड़ भाषा में बोलण रो विधान ॥

[३]

आपणै लौकराज री देखौ कारसतानी ।
नेता बोट तो मांगै बोल’र राजस्थानी ॥
          जनता सूं करै वादा
           संसद में बणै दादा
मानता री बात माथै ताकै बगलां खानीं ॥

[४]

गोगो जांभौ रामदेव है राजस्थानी ।
जकां नै धौकै समूळा हिंदुस्तानी ॥
   पेट पिलाण भाज्या आवै
      राजस्थानी भजन गावै
संसद क्यूं टाळै भाषा राजस्थानी॥

[५]

पंछी बोल्या आपां बोलां हां आपणी भाषा ।
आं राजस्थान्यां रै पड़ रैया है देखौ सांसा ॥
                 सब कीं जाणतां
                 देवै नी मानता
साठ साल सूं आं बापडा़ नै मिलै है झांसा ॥

[६]

त्रिपाठी सर ढाळ नै क्यूं बोलै है ढाल ।
म्हे नीं बोलां तो कूट कूट काढै खाळ ॥
      भाषा बिन्यां तो दुरगत है
       गूंगां री ई     कोई गत है
मायड़ भाषा में क्यूं नी पढावै ऐ हाल ॥

अपने बच्चों की जुबान

         अपने बच्चों की जुबान काटकर

    राष्ट्र के चरणों में रखी राजस्थानियों ने 

                                 -ओम पुरोहित’कागद’





राजस्थानी भाषी लोग जब भी अपनी मातृभाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने अथवा प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा राजस्थानी में देने की गुहार करते हैं, तो न जाने क्यों गैर राजस्थानी भाषी चिंतित हो जाते हैं। जबकि राजस्थान में उनकी संख्या नगण्य है। बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व गुजरात आदि प्रान्तों में रहने वाला राजस्थानी भाषी वहां कभी प्रतिकार करता नजर नहीं आता। सर्वविदित है कि बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व गुजरात में राजस्थानी भाषियों का संख्या बल कम नहीं है। राजस्थानी भाषी जहां भी रहता है, वहां प्रतिकार नहीं करता, अपितु वहां समरस हो जाता है। यह बात राजस्थान में रहने वाले गैर राजस्थानी भाषियों ने आज तक नहीं सीखी। इन लोगों की जो भी मातृभाषा है, उसका हम सम्मान करते हैं। उनकी भाषा से प्रान्त में हमारा कोई विरोध नहीं है। वे अपनी मातृभाषा के हित में बात करें। हम उनके साथ हैं, मगर इस कीमत पर नहीं कि हम अपनी मातृभाषा को भाषा ही न मानें और आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विचार छोड़ दें। राजस्थानी भाषा को भाषा न मानने वाले व इसको आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विरोध करने वाले वे मुट्ठी भर लोग हैं, जिनके पूर्वजों को राजस्थान के रजवाड़ों ने अपने यहां हिन्दी के प्रचार-प्रसार के निमित्त सम्मान से बुलवाया था। उस समय हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का जिम्मा रजवाड़ों ने आगे बढ़कर उठाया था। उस काल में राजस्थान के समस्त रजवाडों में राजकाज, शिक्षा, पट्टे, परवाने, हुण्डी आदि सब राजस्थानी भाषा में होते थे। इसके प्रमाण राजस्थानी के प्राचीन ग्रंथागारों-संग्रहालयों में देखे जा सकते हैं।
अन्य प्रदेशों से आए हिन्दी के विद्वानों व अध्यापकों ने जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, अजमेर, उदयपुर, चित्तौड़, भरतपुर, डूंगरपुर, धौलपुर, बांसवाड़ा, नागौर आदि में डेरे डाले व राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया तथा विद्यालयों में हिन्दी की शिक्षा दी। तब तक इन समस्त रजवाड़ों में राजस्थानी भाषा में ही पढ़ाया जाता था। इन विद्वानों को रजवाड़ों ने भूमि के पट्टे, ताम्रपत्र, मंदिर-माफी की भूमि के परवाने दिए, जो आज भी इन विद्वानों के घरों में देखे जा सकते हैं। ये विद्वान जिन घरों में बैठते हैं, यदि वे घर रियासत काल के हैं तो उनके पट्टे पढ़ लें। उसमें मिल जाएगी राजस्थानी भाषा।
आजादी के बाद जब भाषा के आधार पर प्रान्त बने तो अन्य भाषाई प्रान्तों की तरह राजस्थानी भाषा के आधार पर हमारा राजस्थान बना। उस समय प्रान्तीय भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाने लगा। मराठी, तमिल, तेलुगु, उडिय़ा, मलयालम, गुजराती, कश्मीरी, पंजाबी, उर्दू आदि भाषाएं प्रान्तीय भाषाएं बनीं तो हमारे तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं को हिन्दी सिमटती नजर आई। उन्होंने राजस्थान के नेताओं से अपील की कि आप कुछ वर्ष रुक जाओ। जब हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित हो जाएगी जब राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में डालकर राज्य की द्वितीय राजभाषा बना दी जाएगी।
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास व महात्मा गांधी तथा पूर्व गृहमंत्री सरदार पटेल के बीच बनी इस सहमति का समूचा राष्ट्र, भारतीय संसद, हिन्दी के तत्कालीन तमाम विद्वान गवाह हैं। आज भी हिन्दी साहित्य इतिहास के तटस्थ विद्वान इस बात को स्वीकार करते हैं। इस बात को भलीभांति समझना है तो हिन्दी के आदिकाल को पढ़ें। जहां 12 में से 10 ग्रंथ राजस्थानी भाषा के हैं। राजस्थान में आकर प्रचार-प्रसार करने वाले विद्वानों का राजस्थानियों ने ''पधारो म्हारै देश" की सनातन परम्परा के अनुसार स्वागत किया। इतिहास गवाह है कि विरोध की एक भी चिंगारी किसी भी रजवाड़े में कभी भी नहीं उठी। आजादी के 63 वर्ष बाद जब राजस्थानी अपनी मातृभाषा वापिस मांग रहे हैं तो उन्हीं बाहरी विद्वानों के वंशजों के पेट में मरोड़े उठ रहे हैं। वे ऊल-जलूल बोल रहे हैं। व्यर्थ प्रलाप कर ऐसे-ऐसे कुतर्क दे रहे हैं, जो भाषा विज्ञान की किसी भी कसौटी पर खरे नहीं उतर सकते। इनकी हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी कि वे एलपी तैस्सीतोरी, सुनीति कुमार चटर्जी, ग्रियर्सन, टैगोर, गांधी, नेहरू, पटेल व नामवर सिंह के मनन को नकार रहे हैं। ऐसे लोगों को अपने मकान के पट्टे, कृषि भूमि के कागजात, मंदिर-मस्जिद की भूमि के पट्टे, ताम्रपत्र देखने चाहिएं। इनमें उन्हें मिल जाएगी राजस्थानी भाषा। इस पर भी भरोसा न हो तो अपने बही भाटों से संपर्क कर पूछें कि उनके पूर्वज राजस्थान क्यूं आए थे?
आज समूचा राजस्थान चाहता है कि उसे अपनी मातृभाषा वापिस मिले। उसके बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा संस्कार प्राप्त करें तो सबको आगे बढ़ कर राजस्थानियों का सहयोग करना चाहिए। राजस्थान के अहं पर चोट न करें। इतिहास गवाह है कि राजस्थानी अपनी आन-बान व शान के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। राजस्थान को राजस्थान ही रहने दें। गोरखालैण्ड मत बनाइए। हम महाराणा प्रताप के वंशज हैं। हम अपने अहं को घास की रोटी खाकर भी सुरक्षित रख सकते हैं, पर भाषा नहीं छोड़ेंगे। हम भाषा का मुद्दा शांति व सरलता से हल करना चाहते हैं। क्योंकि हमने राष्ट्रभाषा हिन्दी की स्थापना के लिए अपने कीमती 63 वर्ष खोए हैं। अपने बच्चों की जुबान काटकर राष्ट्र के चरणों में रखी है। अब और त्याग के लिए हमें मत उकसाइए। अब हमारे बच्चों की देह, दान में न मांगें।
अपने इस तर्क को समेट लें कि कौनसी राजस्थानी। आपका दिल जानता है कि कौनसी राजस्थानी है। जिस भाषा में अधिक बोलियां होती हैं वह सबसे बड़ी होती है। ये भाषा वैज्ञानिक कहते हैं। यदि तेलुगु-36, कन्नड़-32, मलयालय-14, मराठी-65, कोंकणी-17, तमिल-22, नेपाली-6, गुजराती-27, पंजाबी-29, बंगाली-15, उडिय़ा-24, अंगेजी-57 व हिन्दी-43 बोलियों के होते हुए भी एक भाषा है, तो तिहेतर बोलियों वाली राजस्थानी इन सबसे समृद्ध भाषा है। ये जेहन में अभी से बैठा लें। यह भी ध्यान रखें भाषाई एकरूपता मान्यता के बाद तय होती है। जैसे हिन्दी में स्थापित की गई है। जिस दिन राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाएगा तो सरकारी स्तर पर स्वत: एकरूपता कायम की जा सकेगी। इसलिए फिलहाल एकरूपता का मुद्दा बेमानी है।

ओम पुरोहित 'कागद'
24 दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम-335512
कानाबाती : 9414380571

राजस्थानी भाषा सूं अळगाव

             राजस्थानी भाषा सूं अळगाव

                  में हिन्दी रो ई घाटो

                           -ओम पुरोहित 'कागद’


 भारत के संविधान की प्रस्तावना और भाग-3 के अनुच्छेद 344 व 351 को मिलाकर पढ़ा जाए तो मालूम होगा कि हिन्दी संघ सरकार की भाषा है और वह जबरन किसी प्रांत की भाषा नहीं बन सकती। प्रदेश की विधानसभा इसके लिए संकल्प पारित करके संघ सरकार को भेजे, यह तभी संभव है। हिन्दी के विकास के लिए आठवीं अनुसूची में शामिल और जो शामिल न भी हैं उन्हें साथ लेकर चलना पड़ेगा। हिन्दी भाषा के विकास के लिए संविधान के भाग ङ्गङ्कढ्ढढ्ढ के अध्याय ढ्ढङ्क तथा अनुच्छेद 351 में इस संबंध में साफ लिखा हुआ है कि 'संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का विस्तार तथा उसका विकास करे जिस से वह भारत की प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में शामिल भारत की अन्य भाषाओं में आए रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां जरूरी या वांछनीय हो वहां उसके शब्द भंडार के लिए मुख्य रूप से संस्कृत और शेष भाषाओं से शब्द लेकर उस की समृद्धि सुनिश्चित करे|
 संविधान की इस मंशा से साफ है कि किसी राज्य की कोई भाषा क्षीण न हो अर हिन्दी का भी वर्धन हो। इस से यह भी साफ है कि हिंदी किसी राज्य की भाषा नहीं है, पर बनाई जानी है। संविधान की इस भावना को राजस्थान के लोगों ने स्वीकार किया। ठेठ राजस्थानी लेखकों ने राजस्थानी के साथ-साथ हिन्दी में भी खूब लिखा। इनमें गणेशी लाल व्यास 'उस्तादÓ, विजयदान देथा, मेघराज मुकुल, सत्यप्रकाश जोशी, तारा प्रकाश जोशी, हरीश भादाणी, नंद भारद्वाज, चंद्रप्रकाश देवळ, हबीब कैफी, सांवर दईया, मोहन आलोक, मालचंद तिवाड़ी, अर्जुनदेव चारण, करणीदान बारहठ जैसे अनेक विख्यात रचनाकार हैं। दूसरी ओर  देखें तो राजस्थान में रहने वाले या अन्य प्रांतों से आकर राज की हाजरी बजाकर राजस्थान की बाजरी खाने और पचाने वाले हिन्दी लेखकों ने राजस्थानी भाषा में एक पक्ति तक नहीं लिखी और न ही यहां की भाषा और संस्कृति को मन से स्वीकार किया। उलटे उन्होंने राजस्थानी में लिखने वालों को धिक्कारा कि 'राजस्थानी कोई भाषा नहीं, राजस्थानी में लिखना आत्महत्या के समान है। राजस्थानी में लिखे का कोई भविष्य नहीं है। उन्होंने इस तरह के हेय शब्द बोल-लिखकर राजस्थानी लेखकों में हीनता भरने की कवायद ही की।

                     भारत का संविधान बनते वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू के नजदीकी मित्र और पूर्व मुखमंत्री स्वर्गीय जयनारायण व्यास मात्र अकेले राजस्थानी थे, जिन्होंने राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने हेतु बहुत प्रयास किए, मगर तत्कालिक गृह मंत्री सरदार पटेल ने उनकी एक न चलने दी। नेहरू और पटेल की जगजानी अनबन और नेहरू और व्यास की निकटता के चलते राजस्थानी भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हो सकी, परन्तु उस वक्त आश्वासन दिया गया कि जब हिन्दी अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी, तब राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाएगा। उस वक्त राजस्थान को तोडऩे के प्रयास भी किए गए। उत्तरप्रदेश से लगते ब्रज क्षेत्र को राजस्थान में शामिल किया गया तो राजस्थानी की बोली मालवी के क्षेत्र को मध्यप्रदेश में। इसी भांति माउंट आबू तक के ठेठ राजस्थानी इलाके को गुजरात में शामिल करने की कवायद की गई, परन्तु यह पार नहीं पड़ी। यदि माउंट आबू हाथों से निकल जाता तो 'मोर बोलै ओ आबू रै पा'ड़ा में लोकगीत का गुमेज राजस्थानी न पाल सकते।  ऐसे ही धूर्त लोग आज फिर राजस्थानियों को नकार रहे हैं। राजस्थान में ही राजस्थानी की खिलाफत करते हैं। ये लोग राज के ओहदे पर बैठ राजस्थानियों की जीभ कतरने का हीन कर्म करते हैं। खासकर बड़े शहरों में रहने वाले ये राजस्थानी विरोधी लोग नहीं जानते कि गांवों में हिन्दी नहीं है। यदि भरोसा न हो तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रसारित होने वाली रपटों में घटनाओं पर ग्रामीणों की बाइट सुनलें। उनके हृदय में स्वत: ही उजाला हो जाएगा।  
                     आज राजस्थानी अगर अपने बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा राजस्थानी भाषा में दिए जाने की मांग सविधान के अनुच्छेद 350 अ और तीसरी भाषा के रूप में राजस्थानी पढ़ाने की मांग अनुच्छेद 345 के अन्तर्गत करते हैं तो राष्ट्रद्रोही क्यों गिने जाते हैं? उलटे वे लोग राष्ट्र विरोधी घोषित होने चाहिएं जो संविधान के पेटे मिले हुए इस हक की खिलाफत करते हैं। अपने बालकों को प्राथमिक शिक्षा राजस्थानी भाषा में दिलवाना राजस्थानियों का संविधान प्रदत्त मूल अधिकार है और यह  प्राकृतिक न्याय भी है। समस्त संसार जानता है कि मां की गोदी में खेलकर बालक पांच बरसों में अपनी मातृभाषा के बीस हजार से अधिक शब्द सीख लेता है और उसी के बल पर अन्य भाषाएं सीख सकता है। यदि राजस्थानी बालकों को उनकी मातृभाषा से अलग रखा जाएगा तो हिन्दी का ही नुकसान होगा। आज तक राजस्थान के विद्यार्थी हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में हीन हैं तो उसके मूल में यही कारण है।

राजस्थानी भाषा-म्हारी टीप


राजस्थानी भाषा कहीं से भी कमजोर नहीं ! इसकी ७३ बोलियां तो इसकी ताकत है जिन से कमजोर लोग डरते हैं । कमजोर लोग खुद की कमजोरी को छुपाने के लिए राजस्थानी भाषा को कमजोर बताते हैं ! ऐसे लोगों पर तरस के सिवाय कुछ नहीं किया जा सकता । खैर ! चिन्ता म...त करो सोनी जी , यह अंधेरा छंटने वाला है ! हमारी मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता भी मिलेगी और विश्व की तमाम भाषाओं में पुन: सिरमोर भी बनेगी फ़िर वह दुनिया को दिखाएगी कि साहित्य क्या होता है
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अपनी मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता देनी पडे़गी और देनी ही पडे़गी-आज नहीं तो कल ,बस !आप देखना बहुत ही जल्दी वह दिन आएगा जब राजस्थानी भाषा अपने सम्पूर्ण वज़ूद,मठोठ,बांकपन और वैभव के साथ दुनिया के सामने दमकेगी !तब देखना राजस्थान... ही नहीं पूरे देश की तकदीर और तसवीर ही बदल जाएगी क्यों कि यह वह भाषा है जिसने पूरी दुनिया को आर्थिक बादशाह ही नहीं विद्वान दिए है । त्याग , तप, बलिदान, समर्पण,ईमानदारी, हठ,योग,योजना,
निर्णय,कोल,उद्यम,बिणज-व्यपार,प्रबंधन. कला-संस्कृति,साहित्य-संगीत जैसे गुरों एवम मूल्यों से अटी यह राजस्थानी धरती अपनी वैभवशाली राजस्थानी भाषा के माध्यम से पूरे देश में नई क्रांति लाएगी !
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मायड़ सारु मानता,चालो चालां ल्याण।
जोग बणाया सांतरा,जोगेश्वर जी आण ।।

दिल्ली बैठगी धारगै,मून कुजरबो धार ।
हेलो मारां कान मेँ,आंखां खोलां जा'र ।।

हक है जूनो मांगस्यां, जे चूकां तो मार ।
दिल्ली डेरा घालस्यां,भेजै लेवो धार ।।

माथा मांगै आज भी,राज चलावणहार ।
माथा मांडो जाय नै,दिल्लड़ी रै दरबार ।।

लोकराज मेँ भायला, माथां रो है मान ।
जाय गिणाओ स्यान सूं.चोड़ा सीना ताण ।।

भाषण छोडो भायलां,आसण मांडो जाय।
अब जे आपां चूकग्या,लाज मरै ली माय ।।

देव भौमिया धोक गै, हो ल्यो सारा साथ ।
माथां सूं माथा भेळ,ले हाथां मेँ हाथ ।।

झंडा डंडा छोड गै,छोड राज गो हेत ।
दिल्ली चालो भाईड़ां,निज भाषा रै हेत ।।
                                  [ओम पुरोहित "कागद"]
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आज खुद राजस्थान्यां राजस्थानी बपरावणी छोड़ दी । राजस्थान्यां नै खुद राजस्थानी बोलतां हीणता लखावै । पैँटड़ी आळा राजस्थान्यां रै घरां चूल्है ताणीँ राजस्थानी री जाग्यां हिन्दी अंग्रेजी आ ...बड़ी । लोगड़ा आपरै टाबरां नै हिन्दी अंग्रेजी मेँ बोल बंतळ करतां नै देख हरखावै । ऐड़ी राम्पारोळ कारण राजस्थानी री राजमानता अनै भणाई रो माध्यम नी होवणो इज है। जकी भाषा राज बोलै बा ई प्रजा बोलै । जद राज काज अर भणाई री भाषा राजस्थानी होसी अनै जूण हर छेतर मेँ राजस्थानी बपराइजसी तो मतै ई राजस्थानी घर घर मेँ पाछी सागी ठिकाणै ढूकसी । इण दौर मेँ बा ई भाषा बिगसै जकी नै राजमानता है ।इण सारु आ भोत जरूरी है कै राजस्थानी भाषा नै आठवीँ अनुसूची मेँ भेळीजै ।
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[] मायड़भाषा सारू दिल्ली में मंडसी " अखूट मरणों-धरणों " []



 अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश महामंत्र्री डा.राजेन्द्र जी बारहठ,प्रदेश सचिव,डा.सत्यनारायण जी सोनी,प्रेदेश प्रचार प्रभारी श्री विनोद जी स्वामी,राजस्थानी चिन्तन परिषद रा प्रदेश पाटवी श्री प्रहलाद राय जी पारीक, राजस्थानी छात्र मोर्चा रा प्रदेश संयोजक श्री गौरी शंकर जी निम्मीवाळ ,मोट्यार परिषद रा ज़िला पाटवी श्री अनिल जी जांदू,पै’लडा़ प्रदेश पाटवी डा.भरत जी ओळा, राजस्थानी भाषा रा ऐकळडा़ सिख कवि सरदार रूप सिंह राजपुरी जी इण 23 अर 24 अप्रेल नै हनुमानगढ़ अनै श्री गंगानगर जिलै में राजस्थानी भाषा मानता आंदोलन सारू "जन-जागण" अभियान टोरयो !  दोनूं ज़िलां रा मोट्यारां में जोस भर दियो यानी जोरदार ढंग सूं मायड़ भाषा री आं  अलख जगाई ! हरेक मोट्यार रै मुंडै "समर चढै मुख नूर " जेडा़ भाव दिखै हा !

आं दो दिनां में आं परलिका,नोहर,रावतसर,श्री गंगानगर,सूरतगढ़ अर 18SPD[ लाफ़्टर चैम्पियन अर फ़िल्मी हीरो ख्याली सहारण रो गांव ] में जोरदार बैठकां करी ! कई ठोड़ म्हैं भी इण टीम साथै हो ! ख्याली सह्हारण भी अखूट मरणै धरणै माथै फ़िल्मी हस्त्यां नै लेय’र बैठण रो पतियारो दियो !

सगळी ई ठोड़ लोगां कै’यो-- 
"रोज-रोज रै रोळै सूं म्हे तो आखता होग्या-अब तो बस दिल्ली में मरणों मांडो ! "


मरां चावै जीयां - दिल्ली सूं मायड़ भाषा नै आठवीं अनुसूची में जुडा़यां बिन्यां पाछा कोनी आवां ! थे तो बस दिल्ली रै जंतर-मंतर माथै ऐकर तप्पड़ बिछा देवो फ़ेर तो म्हे जाणां अर म्हारो काम जाणै ! बैठकां में ठोड़-ठोड़सैंकडूं लोगां हाथ उठाय’र मरणै - धरणै माथै बैठण री हामल भरी ! लोगां री भावनां देखतां थकां डा.राजेन्द्र बारहठ छेकड़ घोषणां करी कै अब तो बस दिल्ली रै"जंतर-मंतर" माथै " अखूट मरणों-धरणों " मंड ई सी ! उणां री घोषणां माथै लोगां ताळी ठोक’र "जै राजस्थान-जै राजस्थानी" री हुंकार भरी !


सूरत गढ री जन जागण बैठक रै बाद समिति रै लोगां बात -चीत करी जिण रो सार इण भांत है -

१-दिल्ली रै जंतर-मंतर माथै मई रै छेकड़लै हफ़्तै का जून रै पै’लै हफ़्तै "अखूट मरणों-धरणों" मंडसी !

२-मरणै धरणै री त्यारी सारू जयपुर में संघर्ष समिति रै बडेर री बैठक होसी ! इण बैथक में सरकार नै ज्ञापन,धरणै रो अळ्टीमेटम, धरणै री स्वीकृति ,रूट कंफ़र्मेशन, धरणै माथै खरच होवण आळी धनराशि रो प्रबन्ध,"अखूट मरणै-धरणै" अर रोज रा अरथाऊ धरणै माथै बैठणियां री  सूची बणावणी आद बातां रा फ़ैसला होसी !

३-अप्रेल रै अंत में का पछै मई रै पैलै ई हफ़्तै मुख्यमंत्री जी रै बारणै आगै चेतावणी रो डंको बजाय’र मोट्यार परिषद अर छात्र मोर्चो आरटेट RTET अनै RTE  में राजस्थानी भाषा  नै भेळण री मांग करसी !

४ तेरा करोड़ राजस्थानी बोलणिया आखै जग में है राजस्थान में तो फ़गत साढे च्यार करोड़ ई है इण सारू मरणै धरणै माथै आखै देश रै राजस्थान्यां रो तन-मन-अर धन सूं सै’योग लेवणों भोत ई जरूरी मान्यों !


५-गांव-गांव,ढाणी-ढाणी अर सै’र नगर में रैवणियां हरेक राजस्थानी नै मरणै धरणै माथै बैठणियां री पक्की सूची अभी सूं बणावणी सरू कर देवणी चाइजै ! सूची में नांव, जी सा रो नांव,ठावो ठिकाणों.घर रा फ़ोन नम्बर अर मोबाइल नम्बर लिखणा जरूरी है ! धरणै माथै बैठण सारू किणी नै नूंतो का तेडो़ नीम दिरीजै ला ! हरेक राजस्थानी आपरै 10 भायलां नै मोबाइल सूं SMS करसी !राजस्थानी भाषा रै  प्रचार -प्रसार सारू SMS आज सूं ई करणां सरू कर देवो ! SMS सूं  MLA अर  MP ज़िला प्रमुख अर प्रधानां नै मरणै धरणै री सूचना अनै आप रै सामल होवण री हुंकार तो भेज-भेज’र आखता कर ई देवो !

६- नेतावां नै आज सूं ई चेतावण सारू -"सुणल्यो नेता डंकै री चोट-पै’ली भाषा पछै बोट" , "सगळी भाषावां नै मानता-राजस्थानी नै टाळो क्यूं , म्हारी जुबान पर ताळो क्यूं ?" जो राजस्थानी की बात करेगा-वही राजस्थान में राज करेगा !"  भेजणां सरू करो ! ऐ मूळ नारा होयसी !
  
७- मरणै धरणै माथै बैठणियो आपरा समूळा खरचा खुद करै लो !

आपणो राजस्थान-आपणी आजस्थानी !
जै राजस्थान-जै राजस्थानी !

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जकी भाषा नै राज बपरावै उणी नै प्रजा बपरवै ! लोकराज रो रोळो है कै राज बा ई भाषा बपरावै जकी संविधान में है ! लोगां आपणै सागै ज़बरो अन्याव करियो है ! आंख्यां में धूळ घाल’र आपणी भाषा खोस ली अर आपणै राजस्थान रै राज नै पारकी भाषा रो खुणखुणियो झला ......दियो जको आपां नै बजावणो ई नी आवै न सावळसर आपणै घरू राज नै ई बजावणो आवै ! ईं कारण आपां बिन्या खेल्यां ई लगो लग हार रैया हां भाषा रै इण झुणझुणियां खेल में ! आज राज नै प्रजा री भाषा दिरावणी अर उणी रै हाथां बिगसावण रो काम दिरावणो है ! ओ काम लोकराज में प्रजा ई कर सकै ! जद राजस्थान रा सगळा लोग भेळा सामल होयर सामल बाज्जो बजासी तो ईं गूंगी बोळी केंद्र सरकार रूपी भैंस नै सुणीज सी ! बा घडी़ अब आयगी है कै आपां सामल बाज्जो बजावां ! राज रा कान खोलां ! अब नेतावां नै साफ़-साफ़ सबदां में केवणो पड़सी-
सुणल्यो नेता
डंकै री चोट
पैली भाषा
पछै बोट !
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21 फरवरी नै बंगला देश री भाषा बंगला नै संयुक्तराष्ट्र मानता दी अर इण री याद मेँ आखी दुनियां सारु इण दिन नै "मातृभाषा दिवस" घोषित करीज्यो । आज आखो संसार आप आप री मायड़ भाषा रो दिवस हरख कोड सूं मनावै पण आपां राजस्थानी इत्ता निरभागी हां कै आपरो काळजो झूरां अर छाती मेँ धमीड़ा खावां कै "हे मावड़ी ,म्हे म्हारै नेतावां रै मिजळापै रै कारण थारी मानता तक नीँ दिराय सक्या !"जद कै भारत री 22 भाषावां रा प्रदेश आपरी भाषावां नै आठवीं अनुसूची मेँ भिळवा'र ठरकै सूं ओ दिन मना रै'या है । काळजै में लाय उपड़ै पण रोवां किण रै आगै ? जका 35 सांसदां अर 200 विधायकां नै आपणै काळजै री पीड़ सुणनी चाईजै बां तो कानां मेँ तेल अर रूई घाल राखी है ।राजस्थान री विधानसभा सर्वसम्मति सूं राजस्थानी भाषा नै आठवीँ अनुसूची मेँ भेळण रो संकळप प्रस्ताव पारित कर'र संसद मे संविधान संशोधन सारु 8 सालां सूं भेज राख्यो है पण हाल कोई गिनार नीँ है ।जनगणना आयगी । अब आपां नै चेतो राखणो है अर ऐको राखणो है अर ऐक सुर में जनगणना रै प्रपत्र रै कोलम 10 मेँ मातृभाषा राजस्थानी ई लिखावणी है । ध्यान रै'वै कै इण प्रपत्र मेँ वागड़ी,बागड़ी,मेवाड़ी,मेवाती, हाड़ोती,शेखावाटी, ढुंढाड़ी,मारवाड़ी आद आपणी 73 बोल्यां-उपबोल्यां नीँ लिखावणी है। ऐ बोल्यां तो आपणै घर,गुवाड़ी,गांव,गळी अर परवार मेँ बरतारै री है । आं सगळी बोल्यां री धिराणी है राजस्थानी भाषा !दुनियां री हरेक भाषा मेँ बोल्यां होवै । जियां हिन्दी मेँ 42, अंग्रेजी मेँ 62, पंजाबी मेँ 29 अर गुजराती मेँ 27 बोल्यां है पण हिन्दी,अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी, मराठी, तमिल ,तेलगु, मलयालम, उड़िया,कोँकणी, सिंधी, आद सगळा आपरी भाषा ई लिखावै बोल्यां नीँ ।बोल्यां रै ओसत नै अंवेरती ऐक भाषा होवै जकी सगळी बोल्यां रो नेतृत्व करै । नेतृत्व करण आळी भाषा मेँ उण बोल्यां री सौरम होवै । आपणी राजस्थानी भाषा भी आपणी 73 बोल्यां-उपबोल्यां रो नेतृत्व करै अर इण मेँ आपणी सगळी बोल्यां री सौरम है । तो आओ आपां ऐक हो परा भारत सरकार नै जनगणना रै मारफत चेतावां कै देखो म्हे इत्ता करोड़ राजस्थानी ऐक हां अर अब म्हारी मायड़ भाषा नै मानता देओ ! इण जणगणना नै राजस्थान अर राजस्थान्यां री ऐकता री पड़छिब बणा'र साम्हीँ ल्याओ
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आज आखो जगत मात भाषा दिवस मना रै'यो है पण आपां निरभागी राजस्थानी कीकर मनावां ओ दिन ? काळजै मेँ लाय री लपटां उठै अर छाती मेँ धमीड़ा लेवां अनै राज नै झींकां जकै म्हारी जबान दिल्ली मेँ हिन्दी पेटै अडाणै राख राखी है ।
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राज बणायो राजव्यां,
जनता घाली ज्यान ।
मायड़ भाषा रै बिना,
मून है राजस्थान ।।

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अब ऐकर भूलो बोल्यां अर मायड़ भाषा राजस्थानी लिखवाओ जनगणना मेँ ! राजस्थानी आपणी मायड़ भाषा है अर मेवाड़ी,वागड़ी,बागड़ी,ढुंढाड़ी,हाड़ोती,शेखावाटी, ब्रज,मेवाती अर मारवाड़ी समेत इण री 73 बोल्यां अनै उपबोल्यां है । जनगणना प्रपत्र रै कोलम 10 मेँ आपां नै बोल्यां नी लिखावणी है ।
बस अब तो आ ई याद राखो
आपणो राजस्थान !
आपणी राजस्थानी ! !

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[*] आर.ए.एस. परीक्षा हेतु सुझाव [*]





अध्यक्ष
कार्मिक विभाग
शासन सचिवालय
राजास्थान सरकार
जयपुर                        
                               विषय-आर.ए.एस. परीक्षा हेतु सुझाव !
महोदय,

उपर्युक्त विषय में अग्रानुसार सुझाव प्रेषित हैं ! कृपया इन पर गौर फ़रमाएं तथा परीक्षण करवा कर लागू करवाएं ताकि राजस्थान मूल के बेरोजगार युवकों तथा राजस्थान की आम जनता को प्रत्यक्ष लाभ मिल सके-

१- राजस्थान प्रशासनिक लोक सेवकों की प्रस्तावित भर्तियां राजस्थान की जनता को सुशासन देने हेतु की जानी हैं अत: ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों का चयन सुनिश्चित किया जए जो राजस्थान राज्य की जनता की भाषा,संस्कृति व व्यवहार को जानते हों ! ऐसा राजस्थान को छोड कर अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग भी कर रहे हैं ! आप इस हेतु अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग की परीक्षा प्रणालियों का अवलोकन करवा कर उचित एवम समुचित कदम उठाएं !

२-यदि राज्य में ऐसा किया जाता है तो इन भर्तियों में बाहरी राज्यों के लोगों को राज्य में भर्ती होने से रोका जा सकता है , जिस से प्रदेश को अपने बेरोजगार युवकों को प्राशासनिक सेवाओं में रोजगार देने का अवसर मिलेगा ! राज्य की जनता को भी उनकी भाषा व संस्कृति जानने वाले उनके बीच के अधिकारी मिल पाएंगे ! ऐसे अधिकारियों के समक्ष जनता अधिक मुखर हो कर अपनी बात आत्मीयता से कह पाएगी ! जनता व सरकार में संवाद बढेगा तथा दोनो के बीच दूरी कम होगी ! यह लोक कल्याण एवम सुशासन के लिए कारगर कदम भी होगा , जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की जाएगी !

परीक्षा प्रणाली हेतु सुझाव
 वर्तमान में अपनाई गई प्रणाली तो दुरुस्त है मगर प्रश्न पत्रों के विषय एवम सामग्री पर अग्रानुसार विचार किया जाए-
प्रथम चरण-
प्राम्भिक अथवा छंटनी परीक्षा-
यह आवश्यक है ! दो सो नम्बर के इस प्रश्न पत्र में 25% अंक भार राजस्थानी भाषा और उसकी बोलियां , 25% राजस्थानी कला ,संस्कृति व राजस्थानी लोक जीवन शैली , 25% अंक भार राजस्थान का इतिहास,कृषि,,उद्योग, व्यपार,खनिज,जलवायु से सम्बन्धित हो तथा 25% अंक भार हिन्दी व अंग्रीजी भाषाओं का ज्ञान व राष्ट्रीय सामान्य ज्ञान का शामिल किया जाए !

द्वितीय चरण-
  
प्रथम प्रशन पत्र-     राजस्थान का सामान्य ज्ञान और सामान्य अध्ययन
द्वितीय प्रश्न पत्र-     भारत का सामान्य ज्ञान और सामान्य अध्ययन
तृतीय प्रश्न पत्र-      विश्व का सामान्य ज्ञान और सामान्य अध्ययन

चतुर्थ प्रश्न पत्र-       भाषागत ज्ञान [ 50 % अंक भार राजस्थानी भाषा और उसकी बोलियों  का ,
30%हिन्दी का व  20 % अंक भार अंग्रेजी के ज्ञान का रखा जाए  ]               
                              आशा है इन सुझाओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार करेंगे तथा राजस्थान के लोगों को उन्हें जानने समझने वाले अधिकारी उपलब्ध करवाने तथा राजस्थान के अपने बेरोजगार युवकों को रोजगार देने की ओर सार्थक कदम उठाएंगे !



              भवदीय

ओम पुरोहित"कागद"
24- दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ संगम-335512
Email-omkagad@gmail.com
BLOG-omkagad.blogspot.com

मायड़ भाषा राजस्थानी अर राजस्थान रा हेताळू भाई बैन ईण ID माथै बेसी सूं बेसी सुझाव खिन्दाओ-

dopcomputer@yahoo.co.in

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जय हो सगळां री !
ऐको राखो
अर
चेतो राखो !
चेतै रै च्यानणै चावना पूरीजै !
...भाई जे.एस. परमार री बात ठीक है !
आपणी मांग रो पै'लड़ो लाजमी सूत्र आपणी विधानसभा सूं पारित है । आ बात दिल्ली सरकार नै अखरावणी है । लोकराज है ! कोई भी लोकलाडी सरकार लोक री मांग री अणदेखी नीँ कर सकै , आ अखरावणी है । मरणै मारणै री कठै दरकार ! आपां नै फगत मरणोँ मांडणोँ है । लोकलाडी सरकार आंदोलनकारी नै मरण नीँ देवै । सरकार जाणै है कै ऐक भी आंदोलनकारी री मौत रो काईँ मोल होवै ! इण वास्ते आपां नै भगवान महावीर रै अहिँसा रै गेलै चाल'र सरकार नै झुकावणोँ है । अहिँसा रै हथियार रै आगै सरकार कियां झुकै , आप लारलै दिनां भ्रष्टाचार रै खिलाफ लोकपाल विधेयक ल्यावण सारु होयै आंदोलन मेँ देख्यो ई है । आपां खुद री काया नै कष्ट देय आखै देस री अर आपणै विरोध्यां री भी सहानुभूति कमास्यां !
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आज संसद में मन-काळजै सूं मुद्दौ उठायो है तो काल बात भी बण सी !आप नै घणा-घणा रंग !
म्है राजस्थानी अब भूखा तो रै सकां पण भाषा बिना नी रै सकां ! राजस्थानी भाषा म्हारी आन-बान-शान-ज......्यान है ! म्हारी जुबान है । म्है ६३ सालां सूं अबोला बैठ्या हां-उडीकां हां कै देश री संसद-विधान सभा-ज़िला परिषद,पंचायत समिति अर गांव पंचायत में म्हारा जनप्रतिनिधि राजस्थानी भाषा में बोलसी अर मन री बात करसी !आ आस पूरीज जावै तो सातूं सुख मिल जावै !म्हारा टाबरिया भी न्याल होय जावै अर आप नै आसीस पुगावै !
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म्हारी रोटी बेटी राजस्थानी-म्हारी बोटी-बोटी राजस्थानी !
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