कागद राजस्थानी

बुधवार, 1 जून 2011

मायड़ भाषा पेटै डांखळां सिक्सर

मायड़ भाषा पेटै डांखळां सिक्सर

-ओम पुरोहित"कागद"


डांखळा अंग्रेजी रै छंद लिमरिक रो उळथौ है !लिमरिक छंद नै राजस्थानी में आदरजोग मोहन जी आलोक डांखळा रूप में पै’लपोत ढाळ्यौ ! पछै तो गणपत-शक्ल्ति माथुर,विद्या सागर शर्मा,बजरंग सारस्वत,रामस्वरूप किसान,सत्यनारायण सोनी आद घणै ई लौगां लिख्या !म्हैं भी लिखूं ई हूं !
इण री खास बात आ हुवै कै ऐ ऐब्सोरड़ हुवै !आं मै तुक्क तो मिलै पण बेतुक्की हुवै ! हास्य री सांवठी विधा है डांखळा ! निहायत ई बेअरथी बात करीजै इण में !
भाई विनोद सारस्वत अर हनवंतसिंघ जी री मांग है कै कीं डांखळा मायड़ भाषा सारू भी लिखौ-सो ६ डांखळा मांड रेयौ हूं ! माफ़ी चाऊं कै इणां में कीं अरथ है:-

[१]

मायड़ भाषा बिना क्यांरी है जियारी ।
कोई पूछौ नीं आय’र हालत म्हारी ॥
               दूजा दळै है मूंग
               म्हारै बतावै गूंग
खोस’र नौकरियां मोकळी सरकारी ॥

[२]

दिल्ली-जयपुर भेजै अंग्रेजी में राज रा फ़रमान ।
म्हानै तो भाईडां कोनी ठीकसर हिंदी रो ई ग्यान ॥
                   जामां गूंगा ई
                     मरां गूंगा ई
ठाह नीं कद मिलसी मायड़ भाषा में बोलण रो विधान ॥

[३]

आपणै लौकराज री देखौ कारसतानी ।
नेता बोट तो मांगै बोल’र राजस्थानी ॥
          जनता सूं करै वादा
           संसद में बणै दादा
मानता री बात माथै ताकै बगलां खानीं ॥

[४]

गोगो जांभौ रामदेव है राजस्थानी ।
जकां नै धौकै समूळा हिंदुस्तानी ॥
   पेट पिलाण भाज्या आवै
      राजस्थानी भजन गावै
संसद क्यूं टाळै भाषा राजस्थानी॥

[५]

पंछी बोल्या आपां बोलां हां आपणी भाषा ।
आं राजस्थान्यां रै पड़ रैया है देखौ सांसा ॥
                 सब कीं जाणतां
                 देवै नी मानता
साठ साल सूं आं बापडा़ नै मिलै है झांसा ॥

[६]

त्रिपाठी सर ढाळ नै क्यूं बोलै है ढाल ।
म्हे नीं बोलां तो कूट कूट काढै खाळ ॥
      भाषा बिन्यां तो दुरगत है
       गूंगां री ई     कोई गत है
मायड़ भाषा में क्यूं नी पढावै ऐ हाल ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...