कागद राजस्थानी

रविवार, 20 मई 2012

बात ही बात में

गाडी में मायड़भासा
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भादरा जावण सारु बस में बैठ्यो । बस पिंचर होयगी । बस छोड गाडी चढ्यो । गाडी में बैठ्या हा बूढा-बडेरा अर स्याणा मिनख । हताई चलै । बातां में रस अणथाग । सगळा राजस्थानी बोलै । ऐक सिक्ख डोकरो अर ऐक यूपी रो बाबो भी बैठ्यो । बात जीम'र घर सूं निळण पर घुळगी । सरदार जी मून बैठ्या बैठ्या सुणता रैया , सुणता रैया । छेकड़ बोल्या ई । बोल्या तो चाळा ई काट दिया । रंग ई लगा दिया । खांटी राजस्थानी में बोल-
"जीम-जूठ'र पोढ जाणों अर कूट-काट'र भाज जाणों ! घर सूं कीं न कीं खाय'र ई निकळणों चाईजै , चावै मा री थाप ई खाय'र निकळो ! फेर फोड़ा कोनीं पड़ै ! "
म्हैं सरदार जी रो मुंडो देखतो ई रैयग्यो ! म्हारी आंख्यां साम्ही एक अफसर रो मुंडो घूमग्यो ! बो ठेट राजस्थानी है पण दफ्तर में राजस्थानी बोलणियां नै टोकै -"ये गंवारों की तरह मत बोला करो !"
रीस तो घणीं ई आवै पण..... फगत जाड़ पीसल्यां !

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