कागद राजस्थानी

बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

फ़ळ-फ़्रूट री कुचरणीं


1.
सेव बोल्यो
जा रे डोफ्फा मतीरिया
थंन्नै कुण खावै
थूं तो मोथो है
भीतर सूं थोथो है
बीजां री पांड न्यारी
मत कर

फळां में बैठण री हुंस्यारी !
म्हैं मीठो फळ
लोग म्हनै कोड सूं खावै
बीमार खावै तो
निरोग हो जावै !

मतीरो बोल्यो

जावण दे रै सेवड़ा
थांरै मुंडै बडाई नीं जंचै
थंन्नै खायां पछै बावळा
खावणियैं रै कीं नीं बंचै
म्हारा बीज
काजू-बिदाम री गरज पाळै
इण सारु आगै खातर
लोग म्हारा बीज टाळै !

2.

केळो बोल्यो
जा ऐ रांड काकड़ी
थूं तो तुलै ताकड़ी
थांरी कोईं गिणत नीं
म्हे तो गिण-गिण बिकां
थूं तो चक्कू सूं कटै
म्हानै तो लोगड़ा
हेत सूं छोल-छोल गिटै !

काकड़ी बोली

जा रे बिन्यां बीज रा डूजा
एक इळायची थारो
पाणीं बाणा देवै
म्हैं मुरधर री लाडकंवरी
मुरधर छोड जाऊं नीं
इण खातर चक्कू चालै !

3.


अंगूरियां सू

बोरिया बोल्या
थे तो पोल्ला बळो
मुंडै में जांवतां ई
थांन्नै मौत आवै !

म्हे कांटां में पळां

फेर भी नीं बळां
सेव री गरज पाळां
टाबर म्हारै सूं
भोत राजी रैवै
म्हांनै बागड़ रो
मेवो कैवै !

अंगूरिया बोल्या

दूजां खातर मरणों
म्हारो धरम है
थे तो लाडी बेसरम हो
थांरै पेट में काठ है
थांन्नै खावण में
क्यां रा ठाट है !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...