कागद राजस्थानी

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

भांडा-बरतण री कुचरणीं

भांडा-बरतण री कुचरणीं
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1.
गिलास बोली
सुण रे बावळा
गोळ गट्टूड़ा लोटिया
थंन्नैं लोगड़ा
ऊंडै घड़ै में डुबोवै
थूं गड़-गड़ करै रोवै

पण पिंड नीं छूटै
थंन्नै कुण मुंडै लगावै
थूं जे होवै
बिन्यां पींदै रो
तो दुनिया हांसै
म्हैं पतळी कन्यां सी
म्हंनै सगळा मुंडै लगावै
थांरो पाणीं
म्हारै में रितावै !

लौटो बोल्यो
थांरो सित्यानास जावै
भगतण गिलासड़ी
थूं ढाबां माथै रुळै
दारूड़ियां में रळै
जणैं कणैं रै
होठां लागती फिरै
इण में कांईं बडाई है
थांरै नीं धरम है
नीं कोई सरम
म्हैं पलींडै रो राजा
घड़ां माथै विराजूं
थांरै दांईं
बटाऊंवां में नीं भाजूं !

2.
थाळी बोली
म्हैं सम्पत राखूं
गीगलो होवण री खबर
आखै गांव नै सुणाऊं
थां कटोरी-बाटकी नै
काळजै लगाऊं
पांती आई चीजां
थां सगळां में घलाऊं
पण थे चमचां सागै रळ
सम्पत खिंडाओ
एकली-एकली
दूध-चा गटकाओ !

कटोरी-बाटकी बोली
टाबर जामै कोई
पण छात माथै थूं कूटीजै
म्हारै ताण ई
थंन्नै फलका मिलै
म्हे जे म्हारै में
लगावण नीं साम्भां
तो थांरै खातर
कुण बाजोट ढाळै
म्हारै बिन्यां बावळी
चमचा थंन्नै कद संभाळै !

3.
घिलोड़ी बोली
थूं भोत कुचमादण है
कुलछणीं हटड़ी
लूण-मिरच समेत
खारी-बैड़ी चीजां
काळजै लगाय'र राखै
लोगां रा मुंडा बाळ न्हाखै
आ तो म्हैं हूं जकी
घी-चूंटियो राखूं
थारा दाझ्योड़ा
काळजा ठारूं
नीं तो थंन्नै कुण पूछै !

हटड़ी बोली
म्हैं बैदां री बैद हूं
इणीं खातर
मिनखां री कैद हूं
थूं साम्भै
चीकणीं अळबाद
म्हारै बिन्यां बता
किसो बणै साग सुवाद
म्हारा सांभ्या मसाला
चूल्है चढ़
सुवाद चौगणों करै
थांरो घी तो बावळी
चूल्लो देखतां ई डरै !

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