कागद राजस्थानी

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

मिंदर री कुचरणीं

मिंदर री कुचरणीं
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1.
पुजारी बोल्यो
थूं मकराणैं रो भाठो
घड़ीज'र बणग्यो
मिंदर में देवता
म्हैं पुजाऊं जद
थूं पूजीजै
म्हारै ताण ई

थांरी ध्यावना है
नीं तो थूं देवळ नीं
खाणां रो भाठो ई बजतो ।

देवळ बोली
किणीं री किरपा सूं नीं
भागां ई पूजीजै भाठा
थांरी कांई जाड़ है
जे पुजा सकै तो पुजा
घर-बंगलां में
मकराणै रा आंगणां
आपणैं क्यां री राड़ है ।

2.
देवळ बोली
म्हांरै ताण ई
थांरी पूछ है फूलां
म्हैं जे नीं होंवती तो
थे डाळ्यां ई बळता
थे म्हांरै पगां चढो
जद ई थांरी स्यान है
नींस थांरो कांईं उनमान है ।

फूल बोल्या
जावण दे
भाठा काळजै आळी
थूं आखै दिन ऊभी रैवै
बैठ सकै नीं
चावै तो सो सकै नीं
ना है थां में सौरम
ओ तो म्हे ई
निभावां धरम
म्हांरै बिन्यां थांरी
पूजा हुवै तो बोल
नींस क्यूं देवै डोळ !

3.
भगत बोल्यो
थूं क्यांरो देवता है
फगत लेवता है
म्हैं जीमाऊं जद
थूं जीमै
म्हैं भोग लगाऊं जद
बणै थांरो परसाद
निरो रिसपतखोर है थूं
सोनै-चांदी रा छतर
चढै नगद दाम
सवामणीं पर काढै काम ।

देवता बोल्यो
थांरो चढाओ म्हैं खाऊं
ओ थांरो बैम है
म्हनै बावळा कठै
मुंह खोलण नै टैम है
थे चढाओ अर थे ई खाओ
म्हारै तो फगत नाम लगाओ
म्हैं देवळ पाषाणीं
पेट खोल'र देखल्यो
भीतर ना दाणों है ना पाणीं !

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