कागद राजस्थानी

बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

*चिँतया*

()

म्हारै घरआळी
चिँत्या करती बोली
थानै जे
साग नीँ भावै तो
पापड़ तळदयूं !
म्हैँ बोल्यो-
तूं ऊंधा काम
मत करिया कर
म्हनै तो रोज ई तळै
बापड़ै पापड़ नै तो
बख्स दिया कर !

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