कागद राजस्थानी

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

दांत-जीभ री कुचरणीं


दांत बोल्या
थूं मा राड़ री
चटोरी बळै जीभड़ली
थंन्नै तो माल-मलीदा भावै
थूं आखै दिन
चपर चपर करै
थूं चालै तो भायां में
करवा देवै राड़

म्हे राखां थांरै आडी बाड़
पण लोगां नै गाळ काढ
थूं तो लुक जावै
पण मार म्हे खावां
थूं म्हांनै ई तुड़वा देवै
थंनै चीणां भावै तो
म्हे ई चाबां
थूं तो पोला-पोला गटकावै
म्हे मिर्च चाबां
पण बळत थांरै लागै
म्हे नीं होवां तो
नाक ठोडी रै चिप जावै
फेर तो सेडो सीधो
थांरै माथै आवै
मिनख रै हांस्यां म्हे ई दिखां
म्हे ई हां मुंडै री ओप !

जीभ बोली

घणीं हुंस्यारी ना करो
राखसिया राछ दांतां
थे खारो-खाटो चाब
म्हारै आगै ई धरो
थांरै कारण ई
म्हांन्नै बळणों पड़ै
बोलूं तो म्हैं हूं
थे पण चौधर रा भूखा
आगै आय दिखो
इणी खातर टूटो मरो
थे चांचड़ा-फूसड़ा फंसा दूखो तो
म्हैं ई फिर फिर काढूं
म्हारै ताण ई राम रटीजै
म्हैं तो एक ई हूं
थे बत्तीस अनै बत्तीस लखणां
थे ई हो जका
खावण रा और
अर
दीखण रा और होवो !

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