कागद राजस्थानी

रविवार, 28 अक्टूबर 2012

आंख-कान री कुचरणीं


आंख बोली
थे तो जाबक मोथा
डोफ्फा हो कानड़ां
थांन्नै तो कोई कतरल्यो
कीं देखो न भाळो
बात सुणो अर टोरो
थे चुगल्यां सुणो
जिण माथै मिनख लड़ै
थे तो घर बिगाड़ू हो
थांरै माथै
कोई बिसवास नीं करै
म्हैं चतर सुजान हूं
हरेक चीज देखूं
फेर बताऊं
म्हारी देख्योड़ी
कदै ई झूठ नीं होवै !

कान बोल्या

जावण दे ऐ
सांच री देबी
थांरै में तो कोई भी
धूड़ न्हाख सकै
थांरै आगै पड़दा आवै
थांरै माथै चसमा चढै तो
मिनख कूड़ो आंकड़ै
थूं है जद ई तो
मिनख नै रोवणों पड़ै
म्हे कान मिनख री स्यान
म्हारै माथै जूं रैंगै
लेखक अर बोपारी
म्हां माथै ई पैन टांगै
बिरामण अर पंडा
म्हां माथै जिनोई टांग्यां बिन्यां
मूत नीं सकै
टाबरां नै बिलमावण सारु
म्हारै में ई
कानिया मानिया करीजै
और बात तो छोडो
देखो थे
पण
चसमै रो भार
म्हांनै ई ढोवणों पड़ै !

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