कागद राजस्थानी

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

दूहा

धरती तपगी सुरजड़ा, कोजी थारी आंच ।
चिड़ी कागला तड़फड़ै,खोलै कीकर चांच ।।
पान फूल सै झुळसिया, गयो मिनखड़ो हार ।
नभ थळ पाणी चूसियो, मुरधर सेवै मार ।।
सीवण बूई फोगड़ा,मुरधर रो सिणगार ।
सगळा नै तू झपटिया, बैठी मनड़ो मार ।।
ऐक बिचारी खेजड़ी, डटी सामने आय ।
मुरधर लागी काळजै,जीया जूण बचाय ।।
बादळ थारो भायलो, मुरधर रो भरतार ।
बेगो नीचै भेजदे, मानांला करतार ।।

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