कागद राजस्थानी

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

घरू कुचरण्यां


1.
छात बोली
करावड़ण में क्यूं
ऊभी हो भींतड़्यां
साळ में बैठ्या लोगड़ा
थांरी ओट नीं
म्हांरी छींयां बैठ्या है
म्हारै बिन्यां साळ

साळ नी बजै !

भींतड़्यां बोली

बोली रै कुचमादण
थांरों कांईं डोळ
जकी म्हारै बिन्यां टिकै
म्हारै बिन्या तो रांड
थूं एक पळ नीं धिकै
म्हे सिरकां तो
थूं नीचै आ पड़ै
थूं हालै-चौवै तो
थांरै नीचै कुण बड़ै ?
2.
दरवाजो बोल्यो
म्हारै ताण ई
घर री सोभा है
म्हारै बिन्यां
थांरै में गधा ई नीं मूतै
थंन्नै कुत्ता ई नीं पूछै
आकड़खोरा आंगणां !

आंगणों बोल्यो

घणीं सेखी ना बघार
थूं घर रै बारै रैवै
म्हैं रैऊं भीतर
म्हन्नै काळजै लगावै घर
म्हारै माथै
भला मिनख बैठै
थांरै माथै गंडक मूतै
अर मंगता ऊभै !
3.
अलमारी बोली
जा रे डोफा आळा
थूं सारै दिन
मुंडो बायां बैठ्यो रैवै
पण थांरै में घर आळा
कोई कीमिया चीज
नीं धरै
जे धरै तो काळी धार मरै !
आळो बोल्यो
घणीं गर-फर ना कर
थांरो-म्हारो कांईं मेळ
थांरै भीतर तो
लुकत री चीजां धरीजै
अर ताळा जड़ीजै
थांरै भीतर रांड
निरो अंधारो है
म्हैं दिवला साम्भूं
समूळै घर में चानणों करूं !

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