कागद राजस्थानी

बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

मा जद तू ही


कठै गया बै दिन
जद मा सारती
आपरे हाथां उपाड़्यो
नीम रो काजळ
म्हारी आंख्यां में ।

कित्तो मोवणों-सावळ
दीखतो बां दिनां दिन
आंख्या में बसता
हेत अर भेळप रा
सतरंगी सुपना
जका देखता म्हे
पड़तख दाईं रात्यूं !

बरस बीतग्या

आंख्यां में नीं ऊतरी
बा सुपनां आळी रात
मा तूं ही जद ई
आंवता सुपना
दिन भी बै ई
जकै दिनां
तूं सारती काजळ
अब तो ऊगै
आंख्या में
अबखायां रा पड़बाळ !

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