कागद राजस्थानी

गुरुवार, 6 जून 2013

*मूंजी क्यूं हो बादळां*

पाणीं पाणीं कूकतां, होग्या सरवर ताल ।
सूक्या घास'र रूंखड़ा, जीयां बळगी खाल ।। 
बरसो भाई बादळां, करो न कोई आंट ।
धरती मांगै धन नहीं, मांगै थोड़ी छांट ।।
मूंजी क्यूं हो बादळां, थांरै कांईं लाग ।
फोकट पाणीं सागरां, पीयो हो अणथाग ।।
पाणी है धन धरा रो , थे लेयग्या अकास ।
चोर बण्या थे बादळां, धरती बधगी प्यास ।।
बिन पाणीं रै देखलै , मरता जीया जंत ।
पाप लागसी बादळां, भाखै मुरधर संत ।।

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