कागद राजस्थानी

रविवार, 2 जून 2013

*मुरधर ओखद राबड़ी*

खाटी रांधी राबड़ी , छाछ लीवी मिलाय ।
उठतां ठोक्यो सबड़को , लूआं भाजी जाय ।।
डोवै आळी राबड़ी , भीतर न्हाना प्याज ।
धोरी मारै सबड़का , लूआं माथै गाज ।।
धोरी सूत्यो झूंपड़ै , सेर राबड़ी ठोक ।
लूआं घूमो बांअंडै, भीतर आवण रोक ।।
मुरधर माणस कोतकी, किण बिद रांधी राब ।
गरमी पर भारी पड़ै , ओखद ऐड़ी साब ।।
मुरधर ओखद राबड़ी , मेटै गरमी ताप ।
नींदां ल्यावै सांतरी , मेटै सै संताप ।।

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