कागद राजस्थानी

गुरुवार, 20 जून 2013

पंचलड़ी

बिरथा है प्रीत नै जापणों अठै ।
कुण है इण भीड़ में आपणों अठै ।।
मुंडै मीठा अंतस साव खारो ।
दोरो मिनखा जैर मापणों अठै ।।
असली तो कमांवतां लागै बरस । 
नकली भोत सोरा छापणों अठै ।।
जग री पीड़ बळ-बळ बण्या भूंगड़ा ।
हराम देस खातर तापणों अठै ।।
माटी-कोयला-देस तक जीमग्या ।
मुसकल है उणां रो धापणों अठै ।।

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