कागद राजस्थानी

गुरुवार, 6 जून 2013

वसंत पांच्यूं

माघ मईनै रै चानणपख री पांच्यूं वसंत पंचमी बजै । आपां राजस्थानी इण नै बस्त पांच्यूं कथां । वसंत पांच्यूं नै विद्या , बुद्धि , ग्यान, वाणी , सिरजण , परकिरती , कळावां , अभिव्यक्ति , अन्न अर धन्न री धिराणी मा सुरसत रो जलम होयो । 
विष्णू जी री भोळावण परोटतां बिरमा जी सिरस्टी बणाई । आ सिरस्टी गूंगी ही । सिरस्टी रा जीव-जंत अबोला । कठै ई कोई ध्वनि नीं ही । च्यारूं कूंट सूं-सप्प । आ देख विष्णू जी बिराजी होया । बिरमा जी नै भळै भोळावण दी कै जगत में ध्वनि अर जीव-जंत नै वाणी बपराओ । बिरमा जी आपरै कमंडळ सूं महालक्ष्मी माथै जळ छिड़क्यो । उण सूं च्यार हाथां आळी मा सुरसत परगटी । मा सुरसत रै दो हाथां में वीणा , एक हाथ में पोथी अर एक हाथ वर मुदरा में । 
मा सुरसत परगट होंवतां ई वीणा रा तार झंकार्‌या । उण सूं समूळी सिरसटी नै ध्वनि मिली । पोथी खोली तो लोगां नै बुद्धि अर ग्यान मिल्यो । कळा , संगीत , आखर , सबद , भाख , वाणी , गायन , सिरजण , अभिव्यक्ति आद रो ग्यान पसर्‌यो । 
एक दिन सुरसत किरसन जी रो मोवणों रूप देख उणां माथै रीझगी । ब्यांव रो परस्ताव राख्यो । किरसण जी बोल्या म्हैं तो रुकमण साथै परणीज्योड़ो हूं अर म्हारै साथै राधा भी है । इण कारण म्हैं आपसाथै ब्यांव नीं कर सकूं । सुरसत जी अणमणां होया तो किरसण जी उणां नै वरदान दियो । बै बोल्या आज पछै आपरी पूजा माघ मईनै रै चानण पख री पांच्यूं नै आखी सिरसटी करसी । इण पछै मा सुरसत री पैली पूजा वसंत पंचमी नै खुद भगवान किरसण करी । दूजी पूजा सिरस्टी रा सिरजणहार बिरमा जी करी । इण भांत वसंत पंचमी थरपीजी । 
मा सुरसत विद्या, बुद्धि , वाणी , भासा , आखर , सबद री जलम देवाळ बजै । इणीज कारण भारतीय संस्कृति में विद्या वसंत पंचमी नै ई सरु करीजती । गुरूकुल में गुरू जी टाबर नै पाटी माथै पैलो आखर सिखांवता । आज रो भारत तो पच्छम रो पिछलग्गू बणग्यो । अंगरेजां रै ढाळै जुलाई में पोसाळ खोलै । गुरूवार री सेवा रो होंवतो । इण दिन भणाई री छुट्टी होंवती । रविवार ओज अर तेज रो दिन होंवतो । इण दिन गूढ़ ग्यान दीरीजतो । पण अब तो अंगरेजां री भोळायोड़ी रविवार री छुट्टी होवै । शुक्रवार राखसगुरू शुक्राचार्य रो बजै । इण दिन तंत्रमंत्र अर तामसी ग्यान री शिक्षा दीरीजती । 





मा सुरसत कळावां री धिराणीं बजै । साहित्य , संगीत , गायन , वादन , नृत्य आद कळावां रा कळाकार आज रै दिन ई मा सुरसत नै ध्यावै । मा सुरसत ई सगळै रसां री जामण बजै । 
परकिरती नै सोवणी अर मनमोवणी मा सुरसत ई बणाई । रूंख , बेलां , भांत भंतीला पुहुप , पखेरू , पतंगा अर भंवरा बणाया । झरना अर नद्‌यां में कल कल री वाणी । भंवरां री गुंजार । पखेरुआं रो कलरव । मोरियै री पीहू । कोयल री कूक आद सो कीं मा सुरसत रो वरदान । इण कारण आज सुरसत नै याद करतां परकिरती री पूजा होवै । 
वसंत में कामदेव जागै । आज रै ई दिन बै काम नै जग में पसारै । रति सूं भेंटा करै अर उण माथै रीझै । इण सारु आज रै दिन कामदेव री भी पूजा होवै । कामदेव अर रति रो मिलण फागण में होवै । फागण में कामदेव रा काम बाण चालै अर समूळी जगती काम री भेंट चढै । इणीज कारण फागण नै मदन मास भी कैवै । 

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