कागद राजस्थानी

गुरुवार, 20 जून 2013

*खुद री राख्या चींत*

सांची बातां सुणै नीं, कूड़ी भावै भोत ।
सांची आयां सामनै, पड़तख आवै मौत ।।
करो बडाई मोकळी , तो हो व्हाला मींत ।
सांची भाख्यो आप जे, खुद री राख्या चींत ।।
बै है ठाडा राजवी , बां सूं ठाडो राम ।
राम बिगाड़ै काम तो , मिलै राम नै डा'म ।।
बां रो भाख्यो सांच है, जग रो भाख्यो कूड़ ।
आंख दिखाई आप तो, धोळां पड़सी धूड़ ।।
थे हो बां रा लारला, बै है आगीवाण ।
थे लेवो घर सांकड़ै, काढो मत ना काण ।।

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