कागद राजस्थानी
॥
ओम पुरोहित "कागद"-
हिंदी
/
राजस्थानी
॥
कागद हो तो हर कोई बांचै...
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गुरुवार, 10 अप्रैल 2014
कुचरणीं
काया बूढी
मन पण छक जुवान
मन नै बिलमावण
खेचळ अणथाग
होटां लाली
थोबड़ै पोडर
गालां करीम
आंखां काजळ
काळो चसमो
छींटछिंटाळा गाभा
ऊपर अंतर छिड़काव
बाळां डाई
घणीं ई सजी
डोकरड़ी बाई
गोडां में पण नीं आयो
रत्ती भर तंत
सूझै नीं आंख्यां
कियां बिलमावै कंत ?
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