कागद राजस्थानी

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

*सतलड़ी*

जाग सकै तो जाग भायला ।
नीँ-स लगा दे आग भायला ।
मनड़ै री कथ बेगो बेगो ।
क्यां भी काढै राग भायला ।
उछाळ आज मत माथै राख।
नीचै पड़गी पाग भायला ।
थारी पांती खोसण ढूक्या । 
मुंडै अणवा झाग भायला।
गोदा घुसग्या आंख्या सांमीं।
क्यूं लुटवावै बाग भायला ।
भाषा थारी भूंडै नुगरा ।
कर दे बां रा दाग भायला ।
लेय लाम्पो लगावण चालां ।
बूजा है अणथाग भायला।

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